गोरखालैंड आंदोलन के केंद्र रह चुके दार्जिलिंग की पहाड़ियां आजकल सियासी पारे से तप रही हैं। यहां राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्यपाल जगदीप धनखड़ से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा तक कई राजनीतिक हस्तिया इस महीने दार्जिलिंग के दौरे पर गए थे । हालांकि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की यात्रा व्यक्तिगत बताई जा रही है,वहीं दो मुख्यमंत्रियों ने अलग-अलग कारण बताए गए हैं जो गत सप्ताह राज्यपाल जगदीप धनखड़ की मेजबानी वाली एक चाय पार्टी में गए थे वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि वे अपने लोंगो का दिल जीतने के लिए गई थी,वहीं मुख्यमंत्री सरमा को राज्यपाल ने वहां की समानता और विशिष्टता का अनुभव करने के लिए आमंत्रित किया था। लेकिन उनकी यह यात्रा गोरखा प्रादेशिक प्रशासन के नवनिर्वाचित अध्यक्ष अनीत थापा के शपथ ग्रहण समारोह के मौके पर हुई।
अजित डोभाल और उनका परिवार 2 जुलाई को उत्तर बंगाल के बागडोगरा एयरपोर्ट पर पहुंचे थे। उनके स्वागत के लिए भाजपा विधायक नीरज जिम्बा एयरपोर्ट पर मौजूद थे। डोभाल और उनका परिवार कुर्सेओंग के पास मकाइबारी चाय बागान में पांच दिनों तक रहे और 4 जुलाई को अपनी पत्नी के साथ एक प्राइमरी स्कूल का दौरा किया था।
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम की आधिकारिक व्यस्तताओं के बारे में तो कुछ पता नहीं है,लेकिन उनका यह दौरा जीटीए चुनाव परिणामों के तीन दिन बाद और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की उत्तर बंगाल के सिलीगुड़ी में राजनीतिक रैली के दो महीने बाद हुआ है। विधायक नीरज जिम्बा का कहना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की यात्रा निजी थी। लेकिन विधायक जिम्बा ने वर्ष 2021 में एक राजनीतिक रैली के दौरान दावा किया था कि डोभाल ने वर्ष 2017 में गोरखालैंड आंदोलन के दौरान गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट के अध्यक्ष मान घीसिंग के साथ दो बैठकें की थीं। हालांकि दार्जिलिंग के सांसद राजू बिस्ता ने दावा किया कि डोभाल की यात्रा राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर महत्वपूण थी। दार्जिलिंग एक संवेदनशील चिकन नेक क्षेत्र में स्थित है। इसलिए यहां के लोगों के कल्याण के बारे में सोचने में भारत सरकार की स्वाभाविक रुचि है। मेरा मानना है कि ‘राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल दार्जिलिंग में समय नहीं बिता रहे होते यदि यह राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण नहीं होता।’
महज तीन महीनों में ममता दूसरा दौरा
दार्जिलिंग पहुंचते ही ममता अचानक मोमोज बनाने में एक महिला की मदद करने लगीं।वो यहीं नहीं रुकीं। इसके बाद उन्होंने सड़क किनारे लगे स्टॉल पर पानी-पूरी भी बनाई । यह कोई सहयोग नहीं है इसके पीछे कई सियासी मायने निकले जा रहे हैं। 11 जुलाई को दार्जिलिंग जाते समय रास्ते में ममता ने भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा प्रमुख और जीटीए के नवनिर्वाचित मुख्य कार्यकारी अधिकारी अनीत थापा के साथ अपनी गाड़ी से बाहर निकल विजय का चिन्ह दिखाया था। इतना ही नहीं अनीत थापा के शपथ ग्रहण के दौरान ममता ने कहा कि उन्होंने मुख्य सचिव के साथ विकास परियोजनाओं पर चर्चा के लिए थापा को पहले भी कोलकाता बुलाया था। थापा गत 6 जुलाई को मुख्यमंत्री बनर्जी को जीटीए शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित करने के लिए राज्य सचिवालय नबन्ना गए थे। उन्होंने कोलकाता में तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी से भी मुलाकात की थी।
दार्जिलिंग में जीटीए चुनाव करीब एक दशक बाद 26 जून को सम्पन्न हुए थे। यह एक हिंसा मुक्त चुनाव था और 12 जुलाई को शपथ ग्रहण समारोह में थापा ने हमरो पार्टी के विपक्षी नेता अजॉय एडवर्ड्स के साथ मंच साझा किया था। इससे पहले वर्ष 2010 में अखिल भारतीय गोरखा लीग के अध्यक्ष मदन तमांग की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी, जब वह एक राजनीतिक रैली को संबोधित करने जा रहे थे। उस समय उत्तरी बंगाल की इन पहाड़ियों पर गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का प्रमुख बिमल गुरुंग का राज था। वर्ष 2017 में गोरखालैंड आंदोलन को छोड़कर यह क्षेत्र आमतौर पर शांतिपूर्ण ही रहा है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 12 जुलाई को शपथ ग्रहण समारोह के दौरान मंच पर कहा कि हमारा एकमात्र उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि दार्जिलिंग में शांति हो, मैं कोई टकराव नहीं चाहती हूं ,हम यहां पहाड़ियों पर कब्जा करने नहीं बल्कि लोगों का दिल जीतने आए हैं ।अगर पहाड़ शांत हैं, तो दार्जिलिंग की आर्थिक प्रगति बढ़ेगी। इसके साथ उन्होंने एक इंडस्ट्री हब सहित कई विकास परियोजनाओं की घोषणा की । इन घोषणाओं में सरकार ने युवाओं के रोजगार के लिए एक आईटी क्षेत्र उत्तर बंगाल की पहाड़ियों में स्थापित करने को कहा है। इस बीच राज्यपाल जगदीप धनखड़ भी 13 जुलाई को जीटीए अध्यक्ष अनीत थापा को शपथ दिलाई।टीएमसी ने दार्जिलिंग लोकसभा सीट कभी नहीं जीती है, जिसमें सात विधानसभा क्षेत्र है। माटीगारा-नक्सलबाड़ी, सिलीगुड़ी, चोपड़ा, फंसीदेवा , दार्जिलिंग, कलिम्पोंग और कुर्सेओंग शामिल हैं। यहाँ वर्ष 2009 से भाजपा जीतती आ रही है।
गौरतलब है कि तृणमूल कांग्रेस की सहयोगी पार्टी गुरुंग के नेतृत्व वाली जीजेएम ने जीटीए चुनावों का विरोध किया था। इसके गुरुंग भूख हड़ताल पर भी बैठे लेकिन कोई राजनीतिक लहर पैदा करने में असफल रहे। कहा जा रहा है कि गुरुंग की लोकप्रियता घटने के साथ तृणमूल कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले नए सहयोगियों थापा और एडवर्ड्सके के साथ नजदीकी बढ़ाने के लिए उत्सुक है। भाजपा और जीएनएलएफ सहित उसके सहयोगी दलों ने भी जीटीए चुनावों का बहिष्कार किया था। जीटीए चुनाव में एक साल से भी कम समय पहले बनी बीजीपीएम ने 45 सीटों में से 26 सीटें हासिल की हैं। जबकि तृणमूल कांग्रेस ने पांच फीसदी वोट शेयर के साथ पांच सीटें जीती हैं। हमरो पार्टी ने 8 सीटे जीती और निर्दलीय उम्मीदवारों ने 5 सीटें पर जीत हासिल की। वहीं बीजेपी देखती रही।
भाजपा सांसद राजू बिस्ता का कहना है कि ‘अनित थापा 2017 से और शायद उससे पहले से ही टीएमसी के लिए काम कर रहे हैं। हमने तबसे दो चुनाव लड़े हैं। वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव और 2021 का विधानसभा चुनाव लड़ा ,इसमें टीएमसी न केवल हारी, बल्कि उसका सूपड़ा भी साफ हो गया था। टीएमसी दार्जिलिंग में एक भी विधानसभा सीट नहीं जीत सकी है।
दार्जिलिंग का राजनीतिक इतिहास
दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में गोरखालैंड की मांग सदियों पुरानी है। इस मुद्दे पर लगभग तीन दशकों से कई बार हिंसक आंदोलन हो चुके हैं।दार्जिलिंग इलाका किसी दौर में राजशाही डिवीजन में शामिल था। उसके बाद वर्ष 1912 में यह भागलपुर का हिस्सा बना। लेकिन देश की आजादी के बाद वर्ष 1947 में इसका पश्चिम बंगाल में विलय हो गया।अखिल भारतीय गोरखा लीग ने वर्ष 1955 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु को एक ज्ञापन सौंप कर बंगाल से अलग होने की मांग उठायी थी। उसके बाद वर्ष 1955 में जिला मजदूर संघ के अध्यक्ष दौलत दास बोखिम ने राज्य पुनर्गठन समिति को एक ज्ञापन सौंप कर दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी और कुछ बिहार को मिला कर एक अलग राज्य के गठन की मांग उठायी गई लेकिन अस्सी के दशक के शुरूआती दौर में वह आंदोलन दम तोड़ गया। उसके बाद गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट के बैनर तले सुभाष घीसिंग ने पहाड़ियों में अलग राज्य की मांग में हिंसक आंदोलन शुरू किया। वर्ष 1985 से 1988 के दौरान यह पहाड़ियां लगातार हिंसा की चपेट में रहीं है। इस दौरान हुई हिंसा में कम से कम 13 सौ लोग मारे गए थे। उसके बाद से अलग राज्य की चिंगारी अक्सर भड़कती रहती है।