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पर्वतीय मंच पर सियासी नौटंकी

पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान के जिस मंच पर पहाड़ की संस्कृति को प्रचारित-प्रसारित किया जाता है वह मंच सियासी अखाड़े में तब्दील हो गया है। यहां पहले से ही गोलज्यू महाराज की प्रतिमा लगी थी लेकिन एक पक्ष यहां शिव मंदिर की स्थापना पर अड़ गया। रातोंरात मंदिर खड़ा कर दिया गया। जब इसका विरोध हुआ तो पर्वतीय और गैर पर्वतीय का विवाद पैदा हो गया। देखते ही देखते मामला अवैध अतिक्रमण तक जा पहुंचा

उत्तराखण्ड की संस्कृति को संजो कर रख रहे पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच के स्थल पर हक को लेकर उपजा विवाद कई कड़वी यादें छोड़ गया। भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत के हस्तक्षेप के बाद ये विवाद ठंडा तो हो गया, लेकिन कई ऐसे सवाल अपने पीछे छोड़ गया जिनका उत्तर उस परिप्रेक्ष्य में खोजने की आवश्यकता है जिसने इस विवाद के चलते पर्वतीय और गैर पर्वतीय के मुद्दे को सतह पर लाकर खड़ा कर दिया जिसका सामना कुमाऊं के मुख्य द्वार हल्द्वानी ने इतने मुखर रूप में शायद पहले कभी नहीं किया था। अगर स्थापित संस्थाओं पर कब्जे की मंशा को इस तरह क्षेत्रवाद के रूप में उभारकर विवाद खड़ा करने का प्रयास किया जाता रहा तो इस खाई को पाटना मुश्किल हो जाएगा।

पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच पर विवाद की स्थिति की शुरुआत उस वक्त हुई जब मंच परिसर में गोलज्यू देवता मंदिर के समीप शिव मंदिर बनाने की जिद् एक पक्ष द्वारा की गई। हीरानगर हाउसिंग सोसायटी से जुड़े कतिपय लोगों द्वारा जबरन शिव मंदिर की स्थापना के प्रयास का पर्वतीय उत्थान मंच के पदाधिकारियों द्वारा विरोध किया गया। मंच से जुड़े पदाधिकारियों का कहना था कि हाउसिंग सोसायटी के नाम पर कुछ अराजक तत्व माहौल बिगाड़ने का प्रयास कर रहे हैं जबकि मंच की भूमि का हाउसिंग सोसायटी से कुछ लेना-देना नहीं है। घटनाक्रम कुछ ऐसा होता है कि मंच के पदाधिकारी गैरकानूनी रूप से मंदिर निर्माण की शिकायत लेकर प्रशासन के पास जाते हैं। प्रशासन मंदिर निर्माण पर रोक लगा देता है। साथ ही विवाद की स्थिति मानकर पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच पर रिसीवर बैठा देता है। हालांकि 3 जनवरी को भारी जनदबाव के चलते रिसीवर को हटा दिया गया है। इसे पर्वतीय समाज की जीत बताया गया।

थोड़ा पीछे जाएं तो हीरानगर जो कि हल्द्वानी के पॉश इलाकों में शुमार किया जाता नजूल भूमि पर बसा है। हालांकि हल्द्वानी का अधिकांश क्षेत्र नजूल भूमि पर बसा है। इस नजूल भूमि पर सरकार द्वारा लोगों और संस्थाओं को भूमि लीज पर दी गई है। हीरानगर में भी गवर्मेंट ऑफिसियल्स को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी लि ़ जो कि 27 अप्रैल 1955 को पंजीकृत हुई को पिच्चासी प्लॉट लीज पर दिए गए थे। इस हाउसिंग सोसायटी में जिन पिच्चासी लोगों को ये लीज आवंटित की गई थी उनमें से सभी सरकारी कर्मचारी थे। खास बात ये है कि आज इस नजूल की भूमि पर अधिकांश लोगों ने अपने भूखंड दूसरों को बेच दिए हैं जबकि नजूल भूमि का स्पष्ट कानून है कि ये जमीन अहस्तांतरित होती है तथा इस भूमि को लीज होल्डर बेच नहीं सकता क्योंकि वो इसका स्थाई मालिक न होकर सिर्फ लीज होल्डर हैं। आज अगर देखा जाए तो यहां अधिकांश लोग वे काबिज हैं जिन्हें भूमि आवंटित ही नहीं हुई थीं। इनमें हल्द्वानी के कई बड़े पूंजीपति, राजनेता भी शामिल हैं। सूत्रों की बात पर यकीन करें तो आज इस हाउसिंग सोसायटी का पंजीकरण नवीनीकृत नहीं है। सवाल है कि नियमों को तोड़कर विकसित हीरानगर क्या प्रशासन की नजरों में वैध क्षेत्र है? शायद प्रभावशाली लोगों के चलते इस जगह पर प्रशासन अपनी नजरें डालना उचित न समझता है। खास बात यह है कि जिन लोगों को पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच की भूमि पर दिलचस्पी है उसी हाउसिंग सोसायटी के कई लोग शीशमबाग से लगी सड़क, जो कि सुशीला तिवारी अस्पताल को जोड़ती है पर अतिक्रमण करके बैठे हैं। कई बार की शिकायतों के बावजूद न ही प्रशासन और न ही लोक निर्माण विभाग ने इस अतिक्रमण को हटा कर सड़क के चौड़ीकरण का प्रयास किया।

हल्द्वानी शुरुआत से ही मिश्रित संस्कृति वाला स्थान रहा है। यहां पर पहाड़ी, वैश्य या अन्य गैर पर्वतीय लोग, सिख एवं मुस्लिमों का सामंजस्य बहुत पुराना है। सभी वर्ग के लोग अपने पारंपरिक उत्सवों को धमूधाम से मनाते आए हैं। जहां अन्य वर्ग के लोगों में एकजुटता के चलते उनके उत्सवों में भव्यता का पुट रहता था, वहीं यहां का पर्वतीय समाज इस प्रकार के आयोजनों को अपने स्तर पर आयोजित नहीं करता है जो उत्तराखण्ड की संस्कृति की झलक दिखाता है। किसी विद्वेषवश नहीं वरन् उत्तराखण्ड की संस्कृति के संरक्षण और उसको जीवित रखने की मंशा से एक सांस्कृतिक मंच के गठन का विचार कुछ लोगों में आया। पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच का गठन बहुत आसानी से हो गया हो ऐसा नहीं है। इसकी स्थापना और इसके लिए भूमि आवंटन की मांग के चलते कई लोगों को जेल तक जाना पड़ा। इस संस्था से जुड़े लोगों ने 14 जनवरी 1982 को पहली बार हल्द्वानी में पहाड़ की सांस्कृति को प्रदर्शित करने के लिए आयोजन किया। जिसका आयोजन हल्द्वानी के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में किया गया। हल्द्वानी में शायद पर्वतीय समाज के लोगों का सांस्कृतिक प्रदर्शन का यह पहला अवसर था। स्वतःस्फूर्त भीड़ का आ जाना और पर्वतीय संस्कृति की झलकों के साथ तीन किलोमीटर लंबा सड़कों पर सैलाब मंच के संस्थापकों का हौसला बढ़ाने के लिए काफी था। ये अवसर लोगों के लिए अपनी उन भावनाओं को व्यक्त करने का अवसर था जो टीस उन्हें दूसरे उत्सवों के आयोजन से होती कि उनकी समृद्ध संस्कृति के प्रदर्शन का मंच उन्हें अब तक नहीं मिल पाया था। ये पहला आयोजन उनकी संस्कृति के संवाहक बनने का एक अवसर बना। एक गैरराजनीतिक संगठन द्वारा अपने स्तर से राजनीतिक हलकों में भी बेचैनी पैदा कर गया। समय के साथ अपने लिए स्थाई कार्यालय मंच की आवश्यकता थी। जिसे पाने की जद्दोजहद में मंच से जुड़े लोगों का संघर्ष कम नहीं था जिसके चलते दो सौ के आस-पास लोगों को जेल तक जाना पड़ा।

दिसंबर 1982 में अंततः पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच को हीरानगर में प्रशासन से समझौते के तहत भूमि उपलब्ध करवाने का आश्वासन मिला। 1982 से लेकर आज तक निर्बांध रूप से उत्तरायणी का मेला पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच सम्पन्न कराता आ रहा है। इस संस्था की पहली कार्यकारिणी में ललित मोहन भट्ट, एडवोकेट बलवंत सिंह चुफाल, केडी बल्यूटिया, आनंद बल्लभ उप्रेती, शेर सिह नौलिया, भुवन चंद्र जोशी, प्रेम सिंह अधिकारी, किरन चंद्र पाण्डे सहित कई सदस्य थे। 2006 में उत्तराखण्ड में नारायण दत्त तिवारी सरकार ने हीरानगर में मंच को 90 सालों की लीग का शासनादेश किया था जिसे गवर्मेंट ऑफिसियल्स को- परेटिव हाउसिंग सोसायटी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने 2018 में सरकार के आदेश को रद्द कर दिया था। मामला अब उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय की डबल बेंच में विचाराधीन है। उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय के 2018 के निर्णय का हवाला देकर हीरानगर गवर्मेंट ऑफिसियल्स को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी उक्त स्थल पर अपना दावा करती है। उत्थान मंच से जुड़े संस्थापक सदस्यों में से एक वरिष्ठ अधिवक्ता हुकुम सिंह कुंवर का कहना है कि हाउसिंग सोसायटी का इस मंच की भूमि से कोई लेना देना नहीं है। उनका मंतव्य एक जमी जमाई संस्था पर अवैध रूप से कब्जा करना है।

शायद शिव मंदिर की स्थापना का उद्देश्य भी यही था कि धार्मिक भावनाओं को उभार कर लोगों को अपने पक्ष में किया जा सके। खास बात ये है कि उक्त परिसर में प्रशासन द्वारा निर्माण की रोक लगाए जाने के बाद भी कुछ तत्व रात को एक बजे के करीब उस निर्माण में लेंटर डाल जाते हैं मगर प्रशासन बेखबर रहता है। फिलहाल विधायक बंशीधर भगत और लालकुआं से पूर्व विधायक नवीन दुम्का दलगत राजनीति को दर किनार कर मंच के पक्ष में खुलकर आ गए हैं।

हालांकि पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच विवाद का वक्ती तौर पर पटाक्षेप हो गया है और उत्तरायणी पर्व का आयोजन सम्पन्न होने की ओर अग्रसर है। सवाल है कि इस विवाद को जन्म देने वाले सिर्फ स्थानीय लोग हैं या फिर इसमें राजनीतिक दलों के लोग भी शामिल है। जिस प्रकार हीरानगर से पार्षद मधुकर क्षेत्रिय इसमें काफी प्रखर नजर आ रहे थे उससे भाजपा भीतर से ही कुछ लोगों के इसके पीछे होने की आशंकाएं हैं। सूत्र बताते हैं कि इसके पीछे भाजपा के जिले स्तर के पूर्व पदाधिकारी की भूमिका है जो सामने न आकर पर्दे के पीछे अपना किरदार निभा रहे हैं।

पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच के पदाधिकारियों का मानना है कि चालीस सालों के शानदार सफर में उत्थान मंच ने पर्वतीय संस्कृति को जिस प्रकार संरक्षित किया है वह कुछ लोगों को रास नहीं आ रहा है। वह गलत तरीके से मंच पर कब्जा कर अपने हितों को साधना चाहते हैं। जमी-जमाई संस्थाओं पर कब्जा कर अपनी छवि चमकाने की कवायद में कई संस्थाएं इस प्रकार के स्वघोषित लोगों ने कब्जा ली या फिर रिसीवर नियुक्त करवा अपने राजनीतिक हितों को पोषित कर रहे हैं। अब पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच पर इन तत्वों की निगाह टिक गई है।

भावना ने साधा भट्ट पर निशाना
पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच विवाद में राजनीति का धालमेल भी सामने आया है। समाज सेविका भावना पांडे के एक वीडिया के वायरल होने से कड़कड़ाती ठंड में सियासी पारा गर्म है। भावना पांडे ने अपनी वीडियो में केंद्रीय राज्य मंत्री अजय भट्ट को इस प्रकरण में दोषी ठहराते हुए चेतावनी भरे लहजे में कहा कि वह अपने सहकर्मियों के जरिए पर्वतीय मंच पर राजनीति न कराए अन्यथा न केवल उनका 2024 में टिकट कटेगा बल्कि पर्वतीय समाज उनको सबक सिखाएगा। इस मामले को तूल देने के पीछे आरएसएस के संगठन मंत्री अजेय कुमार के साथ ही केंद्रीय राज्यमंत्री अजय भट्ट को पांडे द्वारा आरोपित करने से उत्तराखण्ड की भाजपा राजनीति में भी कयासबाजियों का दौर शुरू हो चुका है।
भावना पांडे द्वारा अपनी वीडियो में स्पष्ट कहा गया है कि केंद्रीय राज्यमंत्री अजय भट्ट इस प्रकरण के जरिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को डिस्टबर्ड करना चाहते है। इससे उत्तराखण्ड की सियासत में गुटबाजी को भी बल मिलता दिख रहा है। सवाल यह भी है कि अगर अजय भट्ट उत्थान मंच में पर्दें के पीछे से राजनीति कर रहे थे तो उनको इसका क्या फायदा होगा? हालांकि फिलहाल यह प्रकरण शांत हो गया है और पर्वतीय मंच स्थल पर उत्तरायणी मेला भी आयोजित हो रहा है। लेकिन भावना पांडे के आरोपों ने एक बार फिर से प्रदेश भाजपा की आंतरिक कलह को सामने ला दिया है।

कब हटेगा कुंदन की रहस्यमय मौत से पर्दा
पर्वतीय मंच में चौकीदार के रूप में कार्यरत रहे कुंदन सिंह जीना की 8 जुलाई 2011 को हुई रहस्यमय मौत से आज तक पर्दा नहीं हट सका है। इस मौत को आत्महत्या करार दिया गया था। बताया जाता है कि कुंदन सिंह जीना की मौत के बाद एक पत्र बरामद हुआ था जिसमें उसने संस्था के पदाधिकारियों को आत्महत्या के लिए मजबूर करने का दोषी ठहराया था। गवर्नमेंट ऑफिसियल्स को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी हीरानगर के अध्यक्ष एमएन जोशी और सचिव राहुल जोशी के अनुसार पुलिस की मिलीभगत से कुंदन सिंह जीना की मौत का कारण शराब पीना दिखाया गया। लेकिन बिसरा जांच में मौत का कारण विषैला पदार्थ खाना पाया गया। इसका खुलासा न्यायालय के समक्ष होने पर न्यायालय द्वारा 15 नवंबर 2022 को कोतवाल को आदेश दिए हैं कि मामले की स्पष्ट जांच करें। एमएन जोशी और राहुल जोशी प्रशासन से मांग की है कि कुंदन सिंह मामले की निष्पक्ष जांच हो और आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का हीरानगर में प्रवेश बंद किया जाए।

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