नए संसद भवन की इमारत पर राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न का अनावरण होते ही विपक्षी नेताओं और कुछ इतिहासकारों ने आरोप लगाया है कि अशोक स्तंभ पर शेरों की छवि को ‘सुंदर-आकर्षक और राजसी आत्मविश्वास’ से बदलकर ‘क्रूर और आक्रामक’ कर दिया गया है। यह विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है
गत सप्ताह नए संसद भवन की इमारत पर राष्ट्रीय प्रतीक चिÐ का अनावरण होते ही यह चर्चा का विषय बन गया। बीते हफ्ते प्रधानमंत्री मोदी ने पूजा-पाठ के बाद इसका उद्घाटन किया। विपक्षी नेताओं और कुछ इतिहासकारों ने आरोप लगाया है कि अशोक स्तंभ पर शेरों की छवि को ‘सुंदर-आकर्षक और राजसी आत्मविश्वास’ से बदलकर ‘क्रूर और आक्रामक’ कर दिया गया है। यह विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। सवाल है पीएम की मौजूदगी पर, संदेह है डिजाइन पर और आरोप है कि इस स्तंभ के जरिए राजनीति हो रही है। यह विवाद टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा के सिंहमेव जयते वाले ट्वीट के बाद शेर को लेकर सियासी घमासान शुरू हो गया है। गौरतलब है कि नए संसद भवन की छत पर पीएम मोदी ने विशालकाय अशोक स्तंभ का अनावरण किया था जिसके बाद से विपक्ष ने सवालों और आरोपों की झड़ी लगा दी है। सबसे ताजा आरोप यह है कि इतिहास से छेड़छाड़ कि गई है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का आरोप है कि राष्ट्रीय प्रतीक को मोदी सरकार बदलने का प्रयास कर रही है।
क्यों है विपक्ष को नई प्रतिकृति पर आपत्ति
सम्राट अशोक ने देश में विभिन्न स्थानों पर युद्ध और शांति के प्रतीक स्तंभ बनवाए हैं। इस स्तंभ के चारों शेरों के चेहरे पर शांत भाव है। ये शेर आत्मविश्वास के प्रतीक हैं। लेकिन संसद के सामने बने शेर के चेहरे की विशेषताओं, आत्मगुणों को जानबूझकर नजरअंदाज किया गया है और नई प्रतिकृति में शेर उग्र और अनावश्यक रूप से आक्रामक दिखते हैं। नई प्रतिकृति में शेरों के मूल लक्षणों को बदल दिया गया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश का आरोप है कि यह संविधान का स्पष्ट उल्लंघन है। राष्ट्रीय चिन्ह में किसी भी बदलाव को प्रतिबंधित करने वाला एक कानून 2005 में बनाया गया था। मोदी सरकार ने भी इस कानून का उल्लंघन किया है। तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जवाहर सरकार ने शेर के चेहरे में बदलाव को शर्मनाक करार दिया है। विरोधियों का यह भी आरोप है कि उग्र, आक्रामक और गुस्सैल शेर मोदी युग के नए भारत का प्रतीक है।
लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने अपील करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी जी, इस शेर के चेहरे को गौर से देखिए। क्या वह वास्तव में सारनाथ की प्रतिमा को परिलक्षित कर रहा है या गिर के सिंह की छवि का प्रतिनिधित्व करते हैं? यदि आवश्यक हो, तो इस प्रतिकृति को बदल दें।’ तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जवाहर सरकार ने ट्विटर पर अशोक स्तंभ पर शेर और नए अनावरण किए गए शेर की तस्वीर पोस्ट करते हुए कहा, ‘यह राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान है। एक तरफ शाही छवि के सुंदर- आकर्षक, आत्मविश्वास से भरे शेर हैं, तो दूसरी तरफ मोदी के संस्करण के दहाड़ते, बेवजह आक्रामक, असंगत शेर हैं।’ यह मोदी का नवभारत है। वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि राष्ट्रीय प्रतीक पर शांत, शानदार शेर अब गुस्से में दिखेगा और दांत दिखाएगा।
क्या कहना है भाजपा नेताओं का
बीजेपी नेताओं के मुताबिक विपक्ष महज विरोध के लिए विरोध कर रहा है। उनका लक्ष्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की
आलोचना करना है। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने संविधान का पालन नहीं करने वालों की आलोचना की कि कांग्रेस ने आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी है। जो काली माता का सम्मान नहीं करते हैं उन्हें अशोक स्तंभ पर बोलने का कोई अधिकार नहीं है।
इस मामले में विशेषज्ञों की राय अलग है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह शेर सम्राट अशोक के शेरों की तरह दिखते हैं। दोनों शेरों में कोई खास अंतर नहीं है। तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा के एक ट्वीट के बाद इस मामले में विवाद और तेज हो गया है। महुआ मोइत्रा ने एक ट्वीट के जरिए अशोक काल के शेरों से बने आज के राष्ट्रीय चिन्ह पर तंज कसा है। उन्होंने ट्वीट कर पूरे मामले में विवाद को गरमा दिया है। महुआ मोइत्रा ने लिखा है कि अगर सच कहा जाए तो हम सत्यमेव जयते से ‘सिंहमेव जयते’ तक पहुंच गए हैं। अब उनके इस ट्वीट पर सेंट्रल विस्टा के शेरों का मुद्दा खूब गरमा गया है। दावा किया जा रहा है कि शेर का मुंह खुला हुआ है। इससे साफ है कि वह आक्रामक मुद्रा में हैं। यह देश की शांत और सौम्य छवि के
विपरीत है। ‘आप’ सांसद संजय सिंह ने कहा कि 130 करोड़ देशवासियों को देखना चाहिए कि देश के साथ क्या हो रहा है?
क्या कहते हैं मूर्तिकार
अशोक स्तंभ की नई प्रतिकृति मूर्तिकार सुनील देवरे और लक्ष्मी व्यास द्वारा तीन स्थानों, औरंगाबाद, जयपुर और दिल्ली में बनाई गई है। राष्ट्रीय मानक की प्रतिकृति 6.5 मीटर ऊंची है और यह कांस्य धातु से बनी है। इस प्रतिकृति का वजन साढ़े नौ हजार किलो है और यह साढ़े छह किलो के स्टील बेस द्वारा समर्थित है। मूर्तिकार देवरे के अनुसार, हमें बताया गया था कि प्रतिकृति कैसे बनाई जाती है। इस रेप्लिका को बनाने में हमें 9 महीने लगे। यह सारनाथ में मूल सिंह मुहर की सटीक प्रतिकृति है। हमें प्रतिकृति के लिए टाटा द्वारा अनुबंधित किया गया था। केंद्र और हमारा सरकार या भाजपा से कोई सीधा अनुबंध नहीं था। अशोक स्तंभ का मॉडल दिखाया गया, हरी झंडी मिलने के बाद उसे बनाने का काम किया गया।
अशोक स्तंभ का इतिहास
अशोक स्तंभ का निर्माण सम्राट अशोक ने करवाया था। इसे देश में कई जगहों पर बनाया गया है। अशोक स्तंभ को स्वतंत्र भारत के प्रतीक के रूप में अपनाया गया था। वाराणसी में सारनाथ संग्रहालय में रखे अशोक लाट को 26 अगस्त 1950 को देश के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया था। यह प्रतीक सरकारी लेटरहेड का हिस्सा है। साथ ही यह देश की मुद्राओं पर परिलक्षित होता है। भारतीय पासपोर्ट की पहचान अशोक स्तंभ से होती है। इस स्तंभ के नीचे अशोक चक्र को भारतीय ध्वज के मध्य भाग में रखा गया है। यह प्रतीक-चिन्ह देश में सम्राट अशोक की युद्ध और शांति नीति को दर्शाता है।
सम्राट अशोक को युद्ध और शांति का प्रतीक माना जाता है। सम्राट अशोक को मौर्य वंश के सबसे शक्तिशाली सम्राटों में से एक माना जाता है। उनका जन्म 304 ईसा पूर्व में हुआ था। 232 ईसा पूर्व तक उनका साम्राज्य हिंदुकुश, उत्तर में तक्षशिला से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी, सुवर्णागिरी पहाड़ियों, मैसूर तक फैला हुआ था। सम्राट अशोक ने पूर्व में बांग्लादेश से लेकर पश्चिम में ईरान, अफगानिस्तान, बलूचिस्तान तक शासन किया। इतिहास के प्रोफेसर डॉ सुरेंद्र कुमार बताते हैं कि अशोक को चक्रवर्ती सम्राट अशोक कहा जाता है। इसका अर्थ है सम्राटों का सम्राट। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई युद्ध लड़े और जीते।
सम्राट अशोक ने तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला और कंधार विश्वविद्यालयों की स्थापना की थी। 261 ईसा पूर्व में कलिंग पर आक्रमण और नरसंहार के बाद अशोक ने बुद्ध के शांति का मार्ग चुना। डॉ कुमार कहते हैं कि राजा हर जगह मौजूद नहीं हो सकता, इसलिए अशोक ने इस तरह के स्तंभ लगवाए थे।
स्तंभों का संदेश
अशोक स्तंभ का अपना अलग संदेश है। इन स्तम्भों के माध्यम से अशोक ने हर जगह अपनी उपलब्धता दिखाई थी। अब तक मिले अशोक स्तम्भों को देखें तो पाएंगे कि सारनाथ और सांची में सिंहों का ऊपरी भाग दिखाई देता है। राष्ट्रीय चिन्ह में शामिल सारनाथ का अशोक स्तंभ चार एशियाई शेरों को दर्शाता है। ये शेर ताकत, साहस, आत्मविश्वास और गर्व का प्रदर्शन करते हैं। इसके नीचे एक घोड़ा और एक बैल है। इसके बीच में धर्म चक्र है। पहिए के पूर्वी भाग में एक हाथी, पश्चिमी भाग में एक बैल, दक्षिणी भाग में एक घोड़ा और उत्तरी भाग में एक सिंह होता है। इन्हें बीच में बने पहियों से अलग किया जाता है।
सम्राट अशोक ने बिहार में वैशाली, लौरिया और रामपुरवा में भी स्तंभों का निर्माण किया था। यहां बने स्तम्भ पर दो शेर बैठे नजर आ रहे हैं। एक शेर चौंक जाता है और दूसरा सुस्त दिखता है। चीनी यात्री फाह्यान ने अपने भारत यात्रा वृतांत में मौर्य वंश की राजधानी पाटलिपुत्र में अशोक स्तंभ के निर्माण का भी उल्लेख किया है। हालांकि इस स्तंभ का अभी तक पता नहीं चल पाया है।
अशोक चक्रवर्ती सम्राट थे। यानी सभी छोटी रियासतों को एक स्पष्ट संदेश था कि आप हमारे नियंत्रण में हैं। अपने साम्राज्य में उन्होंने इसे एक प्रतीक के रूप में स्थापित किया और संदेश दिया कि हम आप पर नजर रख रहे हैं। किसी प्रकार की बगावत के बारे में भी मत सोचो। रियासतों में सम्राट अशोक की शक्ति के प्रतीक के रूप में स्तंभ स्थापित किए गए थे। बिहार के वैशाली, लौरिया और रामपुरवा के स्तंभ भी इसकी गवाही देते हैं। राजनीति के बादशाहों के साथ-साथ जनता को यह संदेश भी दिया गया कि राजा आप पर नजर रख रहे हैं। शेर की तरह वह भी आप पर आने वाले हर खतरे से सतर्क रहता है।
माना जाता है कि इन क्षेत्रों में बने शेरों को अशोक के बौद्ध धर्म में परिवर्तन से पहले का है। साथ ही सारनाथ और सांची में पाए जाने वाले शेर शांतिप्रिय बनने के बाद बौद्ध धर्म के सदा गतिशील रहने के संदेश को प्रदर्शित करते हैं।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक भूगोल और विरासत अध्ययन के प्रोफेसर राणा पीबी सिंह का कहना है कि सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अपने मंत्री स्तरीय समूह और बौद्ध भिक्षुओं के साथ चर्चा करके लोगों के बीच शांति का संदेश देने के लिए शेरों की इस मुद्रा का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि सिंह की मुद्रा को लेकर कोई विवाद नहीं है। उनका कहना है कि दोनों अशोक स्तम्भों के निर्माण का समय अलग है और बहुत बड़ा अंतर भी है। जब कोई चीज किसी की प्रतिकृति बन जाती है तो यह तय है कि वह उससे थोड़ी अलग होगी। इस पर विवाद करने की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि देश एक ऐसे देश का है जो शांति और सद्भाव को अपनाता है। नकल पर विवाद अनावश्यक है।
क्या कहता है कानून
अशोक स्तंभ को जब राष्ट्रीय प्रतीक माना गया तो उसको लेकर कुछ नियम भी बनाए गए। अशोक स्तंभ का इस्तेमाल सिर्फ संवैधानिक पदों पर बैठे लोग ही कर सकते हैं। इसमें भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सांसद, विधाक, राज्यपाल, उपराज्यपाल और उच्च अधिकारी शामिल हैं। राष्ट्रीय चिÐों का दुरुपयोग रोकने के लिए भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह् (दुरुपयोग रोकथाम) कानून 2000 बनाया गया। इसे 2007 में संशोधित किया गया। इसके मुताबिक अगर कोई आम नागरिक अशोक स्तंभ का उपयोग करता है तो उसको दो साल की कैद या 5 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।