दिल्ली में पिछले डेढ़ दशक से एमसीडी पर भाजपा काबिज है। आम आदमी पार्टी ‘डस्ट पॉलिटिक्स’ के जरिए भाजपा के इस कब्जे को तोड़ना चाहती है। इसकी काट के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद मैदान में हैं। इस कूड़े के पहाड़ की ओट में केजरीवाल भाजपा पर राजनीतिक तीर छोड़ रहे हैं। फिलहाल आप-भाजपा की इस ‘डस्ट पॉलिटिक्स’ में एक बार फिर पर्यावरण संबंधी उस समस्या का निदान होना संभव नहीं लग रहा है, जिससे दिल्लीवासी बेहाल हैं
दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने हाल ही में पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा था कि कूड़े के पहाड़ों पर राजनीति करना नहीं बल्कि उसे खत्म करने की जरूरत है। तब उन्होंने यह भी कहा था कि उनके उपराज्यपाल बनने से पहले लैंडफिल साइटों से कूड़ा हटाने के काम में केवल 6 ट्रायल मशीनें लगी थीं, जबकि आज 46 मशीनें लगी हैं। जल्द ही 100 महीने हो जाएंगी, कूड़े के पहाड़ खत्म भी होंगे और बहुत जल्द इसका असर भी दिखने लगेगा। लेकिन दूसरी तरफ दिल्ली में आगामी एमसीडी चुनाव को देखते हुए कूड़े के पहाड़नुमा ढेरों पर सियासी जंग शुरू हो चुकी है। इस मुद्दे पर भाजपा और आप आमने-सामने आ गई है। दोनों एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। फिलहाल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 27 अक्टूबर को गाजीपुर लैंडफिल साइट देखने पहुंचे, जहां भाजपा कार्यकर्ताओ ने उनका विरोध किया। जिस पर उन्होंने कहा कि आसुरी शक्तियां हमेशा सच और ईमानदारी को दबाने की कोशिश करती हैं। दिल्लीवासियों ने देखा कि जब आम आदमी पार्टी की सरकार को स्कूल-अस्पताल की जिम्मेदारी मिली, तो उन्हें अच्छा कर दिया है। दिल्ली की जनता राजधानी में साफ-सफाई के लिए नगर-निगम से भाजपा को हटाने और आम आदमी पार्टी को मौका देने का मन बना चुकी है। भाजपा ने पिछले 15 सालों में 3 बड़े कूड़े के पहाड़ खड़े कर दिए हैं। इतना ही नहीं भाजपा ने 16 से ज्यादा जगहों को कूड़े के ढेर बनाने के लिए चिÐत किया है। यही नहीं मुख्यमंत्री केजरीवाल ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पर आरोप लगते हुए कहा कि वह मुझ पर दिल्ली नगर निगम को फंड न देने का आरोप लगाते हैं।
मैं गृहमंत्री अमित शाह से पूछना चाहता हूं कि आपने एमसीडी को कितना फंड दिया है? दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश कहकर अपनी जिम्मेदारी से दूर भागते हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि केंद्र की भाजपा सरकार ने पहले ही दिल्ली के तीनों नगर निगम को एकीकृत कर दिया है। यहां तक कि सीटों का परिसीमन भी किया है। ऐसे में जल्द ही दिल्ली में एमसीडी चुनाव की औपचारिक घोषणा चुनाव आयोग कर सकती है। इसलिए राजनीतिक पार्टियों ने ‘डस्ट पॉलिटिक्स’ को शुरू किया है।

गाजीपुर में काला झंडा दिखा केजरीवाल का विरोध करते भाजपा समर्थक
गौरतलब है कि दिल्ली में 5 लैंडफिल साइट हैं, जो ओखला, गाजीपुर, तेहखंड, भलस्वा, नरेला में है। दिल्ली में रोजाना लगभग 10100 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है, जिसे इन्हीं लैंडफिल साइट पर लाया जाता है। जहां कूड़े से बिजली बनाने का काम भी किया जाता है, लेकिन कूड़े के पूरी तरह से निस्तारण न होने के चलते कूड़े के पहाड़ खड़े हो गए हैं। दिल्ली के गाजीपुर लैंडफिल साइट पर तो लगभग 2500 मीट्रिक टन कूड़ा रोज डाला जाता है। यहां 10 मेगावाट के बिजली संयंत्र में 1200 मीट्रिक टन कूड़े का निस्तारण प्रतिदिन होता है। उत्तरी निगम इलाके के भलस्वा लैंडफिल साइट पर 1500 मीट्रिक टन कूड़ा प्रतिदिन डाला जाता है। नरेला -बवाना लैंडफिल साइट पर 2500 मीट्रिक टन कूड़ा डाला जाता है। इसमें से 2000 मीट्रिक टन कूड़े से रोजाना 24 मेगावाट बिजली बनाई जाती है। बाकी 500 मीट्रिक टन कूड़े से खाद बनती है। ओखला और तेहखंड की दो लैंडफिल साइट पर 3600 मीट्रिक टन कूड़ा प्रतिदिन डाला जाता है। इसमें से 1800 मीट्रिक टन कूड़े से ओखला लैंडफिल साइट पर 15 मेगावाट बिजली बनाई जाती है। तेहखंड के लैंडफिल साइट पर कूड़े से 25 मेगावाट बिजली बनाने के लिए संयंत्र लगाया जा रहा है।
इन लैंडफिल साइट को लेकर साल 2008 में ही यह कहा गया था कि यहां और कचरा नहीं डाला जा सकता है, लेकिन कोई दूसरी जगह नहीं होने की वजह से यहां लगातार कूड़ा डाला गया। इस वजह से समस्या का समाधान नहीं हो पाया। यहां तक इस मामले में उच्चत्तम न्यायालय को कहना पड़ा था कि गाजीपुर लैंडफिल साइट भूमि से 65 मीटर ऊंची परत बन गई है, जो दिल्ली के कुतुब मीनार से कुछ ही कम है। (कुतुब मीनार की लंबाई 73 मीटर है।) यह कूड़े के ढेर दिल्लीवासियों के लिए समस्या बनते जा रहे हैं। इससे मीथेन गैस भी निकलती है, जो ग्लोबल वार्मिंग का कारण है। मीथेन गैस के ज्वलनशील होने के चलते आग का खतरा भी बना रहता है।
कचरे की आग से निकलने वाला धुआं बेहद जहरीला होता है। दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल और पर्यावरण विभाग की ओर से किए गए अध्ययन के मुताबिक 25 से 30 साल पुराने कूड़े के पहाड़ से एक प्रकार का द्रव लीचेट निकलना शुरू हो जाता है, जो जहरीला होता है। यह कूड़े के पहाड़ों के आस- पास के भूजल और मिट्टी में मिलकर उसे जहरीला बना देता है। दिल्ली के तीनों लैंडफिल साइट पर जमा कचरे के सड़ने से बेहद खतरनाक लीचेट निकलता है, जो भूमिगत जल को जहरीला बनाता है। इसका लोगों और पशुओं के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। विशेषज्ञों के मुताबिक गाजीपुर लैंडफिल साइट से 3 से 5 किलोमीटर दूर तक इसके हानिकारक तत्व पाए जा रहे हैं। इतना ही नहीं दिल्ली के भलस्वा, गाजीपुर और ओखला लैंडफिल साइट पर डंप होने वाले कचरे से निकलने वाले हैवी मेटल्स और केमिकल के चलते ग्राउंड वाटर में प्रदूषण बड़े पैमाने पर बढ़ गया है।