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सात साल पहले खत्म हुई धारा 66ए में पुलिस ने दर्ज किए हजारों केस, सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने सुप्रीम कोर्ट में एक मामला उठाया। उसने कोर्ट से केंद्र सरकार को ये निर्देश देने की मांग की थी कि तमाम पुलिस स्टेशन को आईटी एक्ट की धारा-66ए में केस ना दर्ज करने का आदेश दिया जाए। केस की सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि ये आश्चर्य की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने धारा 66-ए को निरस्त कर दिया, फिर भी इस धारा के तहत केस दर्ज हो रहा है। अब तक हजारों मामले दर्ज हो चुके हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई की। इसके बाद केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके दो हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा गया। इसी के साथ ही सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने गैर असरकारी संगठन (एनजीओ) ‘पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज’ (पीयूसीएल) की ओर से दायर आवेदन पर केंद्र को नोटिस जारी कर दिया है। इसके बाद केंद्र ने सभी प्रदेशों के पुलिस प्रमुखों को आदेश कर दिए हैं कि वह इस धारा के अंतर्गत पिछले 7 सालों में दर्ज किए गए सभी केस तुरंत वापस ले लें।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फैसले के बावजूद समाचार पत्रों की रिपोर्ट से यह स्पष्ट हो गया कि कथित प्रावधान का इस्तेमाल राज्य की मशीनरी के साथ-साथ न्यायपालिका द्वारा लगाया जा रहा है, शायद इस धारणा के तहत कि धारा 66ए कानून की पुस्तकों में बनी हुई है। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पीयूसीएल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारीख से कहा कि क्या आपको नहीं लगता कि यह आश्चर्यजनक और चौंकाने वाला है? श्रेया सिंघल फैसला 2015 का है। यह वाकई चौंकाने वाला है। जो हो रहा है, वह भयानक है।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च 2015 को श्रेया सिंघल बनाम भारत सरकार मामले में धारा-66ए को निरस्त कर दिया था। तब गृह मंत्रालय ने कहा कि उसी तारीख से आईटी एक्ट की धारा-66ए अमान्य है, इसलिए इस धारा के तहत कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है। 24 मार्च 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा को खत्म करते हुए कहा था कि यह कानून धुंधला असंवैधानिक और बोलने की आजादी का अधिकार का उल्लंघन है। इस धारा के तहत ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर आक्रमण या अपमानजनक कंटेंट पोस्ट करना पर पुलिस को यूजर को गिरफ्तार करने का अधिकार था। इस धारा को तत्काल खत्म करने के आदेश दे दिए गए। लेकिन बावजूद इसके पुलिस धारा 66 ए के तहत मामले दर्ज करती रही। पिछले 7 साल में हजारों से ज्यादा मामले दर्ज कर दिए गए। चौंकाने वाली बात यह है कि धारा-66ए के 6 साल पहले खत्म होने के बावजूद महाराष्ट्र में इस धारा के तहत 381 केस, झारखंड में 291 केस, उत्तर प्रदेश में 245, राजस्थान में 192 और देश भर में कुल मिलाकर 1,307 केस दर्ज किए गए ।

याद रहे कि वर्ष 2015 में जब ये धारा निरस्त हुई थी तब इस धारा के तहत 11 राज्यों में महज 229 मामले लंबित थे। अब पिछले कुछ सालों में इन्हीं राज्यों में 1307 मामले दर्ज किए गए हैं। यहां यह भी बताना जरूरी है कि महाराष्ट्र के ठाणे जिले के पालघर में सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर दो लड़कियों- शाहीन ढाडा और रिनू श्रीनिवासन को गिरफ्तार किए जाने के बाद अधिनियम की धारा 66ए में संशोधन के लिए कानून की छात्रा श्रेया सिंघल ने पहली बार 2012 में इस मुद्दे पर जनहित याचिका दायर की थी। शाहीन और रिनू ने शिवसेना नेता बाल ठाकरे के निधन के मद्देनजर मुंबई में बंद के खिलाफ सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था।

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