उत्तर प्रदेश में मुख्य सचिव के पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात राजनीति में प्रवेश करने वाले पीएल पुनिया के सितारे बुलन्दी पर हैं। कम समय में ही यूपी ही नहीं अन्य राज्यों में अपनी काबिलियत से रूबरु करवाने वाले पीएल पुनिया को कांग्रेस हाई कमान यूपी कांग्रेस की बागडोर देने की तैयारी कर रहा है। ये वही पीएल पुनिया हैं जो कभी मायावती के कार्यकाल में मुख्य सचिव के पद पर रहते हुए न सिर्फ उनके विशेष चहेते अधिकारियों की सूची में शामिल थे बल्कि राजनीति की शुरुआत भी उन्होंने बसपा से की थी। श्री पुनिया राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के चेयरमैन भी रह चुके हैं।
वैसे राजनीतिक लिहाज से देखा जाए तो उन्हें दलित चेहरा माना जाता रहा है लेकिन मंच से दिए गए भाषणों और पत्रकार वार्ता के दौरान उनके शब्द इतने सधे हुए होते हैं कि कोई इन्हें दलित चेहरा साबित नहीं कर सकता। मंच से दिए जाने वाले भाषणों में भी वे सर्वसमाज की बात करते रहे हैं। उनका कहना भी यही है कि उनके लिए राजनीति से पहले समाज है लिहाजा जाति और धर्म के नाम पर वे समाज का बटवारा नहीं कर सकते। बाबा साहब अम्बेडकर पर भी उनकी सोच अन्य दलित नेताओं से अलग है। वे हमेशा कहते आए हैं कि बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर सिर्फ दलितों के ही मसीहा नहीं थे बल्कि वे सर्वसमाज के मसीहा था। बाबा साहब द्वारा महिलाओं के लिए बनाए कानून का लाभ सभी समाज के लोगों को बराबर मिल रहा है।
आईएएस होने के नाते प्रशासनिक जानकारियों का उनके पास अभाव नहीं रहा है। वे राज्य के मुख्य सचिव बनने से पूर्व कई जिलों में डीएम भी रह चुके हैं लिहाजा जिले स्तर पर भी राजनीति में प्रशासनिक घालमेल करना उनके लिए कोई कठिन कार्य नहीं है। शायद कम लोग ही जानते होंगे कि पीएल पुनिया को कम उम्र में ही आईएएस बनने का सौभाग्य प्राप्त है।
वैसे भी कहा जाता है कि जिस किसी नेता के पास प्रशासनिक जानकारियां होंगी उसके लिए वोट बैंक का रुख बदलना कोई बड़ा काम नहीं है। और जब किसी शख्स के पास जिलाधिकारी के रूप में कई जिलों की कमान रही हो तो उसके लिए वोट बैंक का ध्रुवीकरण करना कोई मुश्किल नहीं। यही वजह है कि पीएल पुनिया को अपने दल में शामिल करने के प्रयास सपा-बसपा और भाजपा के साथ कांग्रेस भी करती रही है। मौजूदा समय में श्री पुनिया कांग्रेस के एक बड़े नेता के रूप में अपनी पहचान बना चुके है। कांग्रेस ने इन्हें हाल ही में सम्पन्न हुए छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव का प्रभारी बनाया था। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जीत के बाद से हाई कमान की नजरों में श्री पुनिया की एक विशेष पहचान बन चुकी है। तोहफे के रूप में श्री पुनिया को यूपीसीसी की कमान सौंपी जाने वाली है। मौजूदा समय में यूपी की कमान राज बब्बर के हाथों में है। राज बब्बर पिछले कई वर्षों से यूपीसीसी की कमान संभालने के दौरान अनेकों बार विवादों में रह चुके हैं। यूपीसीसी के कई बड़े नेता श्री बब्बर के काम करने के तरीकों से खुश नहीं है। कहा जा रहा है कि श्री बब्बर को यूपी से हटाने के लिए कई बार कांग्रेस हाई कमान की मीटिंग में मंथन हो चुका है लेकिन योग्य नेता न मिल पाने की वजह से श्री बब्बर को हटाया नहीं जा पा रहा था।
अब श्री पुनिया के रूप में कांग्रेस को एक योग्य नेता नजर आ रहा है। कहा जा रहा है कि यदि श्री पुनिया को यूपीसीसी की कमान सौंपी जाती है तो निश्चित रूप से कांग्रेस के कई रूठे नेताओं की वापसी संभव है। वैसे भी श्री पुनिया यूपी की राजनीति में काफी मंजे हुए हैं। श्री पुनिया को कमान सौंपे जाने की स्थिति में कांग्रेस को फायदा यह नजर आ रहा है कि उनकी मौजूदगी यूपी के पिछड़े वोट बैंक को कांग्रेस की तरफ डायवर्ट करने में मददगार साबित हो सकती है।
फिलहाल श्री पुनिया को यूपीसीसी की कमान सौंपे जाने की खबर के बाद से यूपी के राजनीतिक गलियारों में हलचल नजर आने लगी है। खासतौर से बसपा में राजनीति के इस नवेले खिलाड़ी को लेकर नुकसान-फायदे पर चर्चा हो रही है।