राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर उर्फ पीके का करिश्मा अब उतार की तरफ जाता नजर आ रहा है। 2012 में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान पहली बार पीके का नाम चर्चाओं में आया था। तब उन्हें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी कम्पैन और रणनीति का काम सौंपा था। 2014 में भाजपा की लोकसभा चुनाव के लिए कम्पैन का काम भी पीके को ही दिया गया। इसके बाद पीके चौतरफा छा गए। राजनीतिक दलों में उनकी सेवाएं लेने के लिए होड़ शुरू हो गई। पीके ने भी इसका जमकर लाभ उठाया। भाजपा ने उनके हाशिए पर डाला तो वे नीतीश कुमार के बगलगीर हो गए। बिहारी बाबू तो उन पर इस कदर फिदा हुए कि अपनी पार्टी जनता दल का उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तक बना डाला। पीके का लेकिन जल्द ही नीतीश संग नाता टूट गया। इस बीच पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह संग उनका प्रेम बढ़ने लगा था तो जद(यू) से पल्ला झाड़ वे पंजाब के सीएम संग हो गए।
पश्चिम बंगाल की तेजतर्रार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भला कैसे पीछे रहतीं। उन्होंने भी प्रशांत किशोर से ‘नई राजनीति’ के दांव-पेंच सीखने शुरू कर डाले। बीच-बीच में खबरें यह भी सुनने को मिलती रही कि पीके कांग्रेस में शामिल हो राष्ट्रीय राजनीति में पारी खेलने की तैयारियां कर रहे हैं। बढ़ती राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते प्रशांत किशोर ने इलेक्शन मैनेजमेंट के अपने धंधे से रिटायरमेंट तक लेने की घोषणा कर डाली लेकिन परशेप्शन मैनेजमेंट के इस गुरू की रणनीति खुद के लिए सफल न हो सकी। कांग्रेस ने न तो उन्हें पार्टी में शामिल कराया, न ही उनकी सेवाओं का लाभ हालिया संपन्न पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में लिया। अब खबर आ रही है कि विपक्षी दलों की धुरी बनने को बेताब ममता बनर्जी ने भी पीके से दूरी बना ली है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा गर्म है कि दीदी इन दिनों पूरी तरह एंटी पीके हो चली हैं। तृणमूल सूत्रों की मानें तो पश्चिम बंगाल नगर निकाय चुनावों में पार्टी का काम देख रहे पीके ने ममता से सलाह-मश्विरा किए बगैर दार्जिलिंग के गोरखा नेताओं को वायदा कर डाला कि तृणमूल उनके लिए कुछ सीटें छोड़ देगी। ममता तक जब यह बात पहुंची तो वे आग बबूला हो उठी।
दीदी का कहना था कि भाजपा के करीब रहे इन गोरखा दलों संग तृणमूल भला क्योंकर समझौता करे? हालात इतने बिगड़े की टीम पीके द्वारा तय किए गए उम्मीदवारों की सूची ममता ने पूरी तरह रिजेक्ट कर डाली जिस चलते प्रशांत किशोर बिदक गए। उन्होंने ममता संग काम न करने की धमकी दी तो दीदी ने उन्हें तत्काल बाहर का रास्ता दिखा डाला। जानकारों की मानें तो ममता बनर्जी पीके के खिलाफ उम्मीदवारों से टिकट के एवज में धन वसूलने की एफआईआर तक करने का मन बना चुकी थी। उन्हें राज्य की खुफिया पुलिस ने जानकारी दी थी कि कई ऐसे उम्मीदवार सामने आ रहे हैं जिनसे टिकट के बदले धन मांगा गया है। सूत्रों का कहना है कि अपने भतीजे और पीके के मित्र अभिषेक बनर्जी के समझाने पर दीदी ने पीके पर एफआईआर तो दर्ज नहीं कराई लेकिन उन्होंने तृणमूल भीतर पीके के करीबी हो चुके नेताओं को ठिकाने लगाना शुरू कर दिया है। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा भी जोरों पर है कि तेलंगाना के सीएम चन्द्र शेखर राव की भी प्रशांत किशोर संग खासी बिगड़ चुकी है। महाराष्ट्र के दिग्गज शरद पवार भी इन दिनों प्रशांत किशोर को खास भाव नहीं देते बताए जा रहे हैं। स्पष्ट है कि प्रशांत किशोर का खुमार अब राजनेताओं के दिमाग से उतरने लगा है। लगता है अब प्रशांत रिटायर हो अपने अनुभवों पर पुस्तक लिखने का काम करेंगे क्योंकि राजनीति में करने योग्य उनके लिए हाल-फिलहाल कुछ नजर आ नहीं रहा है।