“नीतीश कुमार मेरे पिता तुल्य है। उनके कार्यकाल में बिहार का विकास भी हुआ। स्कूलों में साईकिल बटी छात्रों को पोशाक मिली लेकिन उचित शिक्षा नहीं मिली। बिहार के हर गांव में बिजली बेशक पहुंची लेकिन महंगी इतनी कर दी गई कि एक आदमी एक पंखा चलाने और बल्फ तक जलाने तक ही सिमित रहा। जब बिहार का व्यक्ति देश के लोगो को ट्विटर चलाना सीखा सकता है तो बिहार के गांव का व्यक्ति क्यों नहीं ? 2005 में जहा बिहार था आज वही खड़ा है। आखिर कब तक नीतीश कहते रहेंगे की लालू की सरकार में बिहार ऐसा था। तब ऐसा था तो अब कैसा है। आज भी बिहार देश में 22 वे नंबर पर खड़ा है। क्या किसी का पिछलग्गू बनना ही विकास है। अगर ऐसा है तो क्यों बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिला पाए नीतीश ? और लाख कोशिशों के बावजूद भी पटना विश्विधालय को सेंट्रल यूनिवर्सटी बनवा पाए। ऐसे ही बहुत से सवाल है जिनका जनता उनसे जवाब चाहती है।”
आज पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कुछ इसी अंदाज में अपने कड़े तेवरों में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर वार करते नजर आए पीके यानी प्रशांत किशोर। चर्चा थी की आज वह अपनी नई पार्टी का एलान कर सकते है। लेकिन उन्होंने ना ही पार्टी का एलान किया और किसी पार्टी को बिहार में गठबंधन करने समर्थन करने की बात से भी इंकार किया। इसी के साथ उन्होंने ‘बात बिहार की’ का उद्घोष कर दिया।
इस कार्यक्रम के तहत प्रशांत किशोर अब 20 मार्च तक 10 लाख युवाओ को इस अभियान से जोड़ेंगे। यह युवा बिहार को विकास का मॉडल बनाने के प्रशांत किशोर के सपने को साकार करेंगे। इस तरह बिहार में कभी नितीश का गुणगान करने वाले प्रशांत किशोर ने आज उनकी कमियों का बखान कर संकेत दे दिए की राज्य की राजनीति में वह अब किसी के प्यादे नहीं बल्कि राजा बनकर अपना सिहांसन खुद तैयार करेंगे।
पीके यानी प्रशांत किशोर देश की राजनीति में एक नया नहीं, बल्कि काफी पुराना सितारा है। यूं कहे कि प्रशांत किशोर ने सारथी बनकर न जाने कितनों को सत्ता के दरवाजे तक पहुंचा दिया। लेकिन अब यह सारथी खुद कमान अपने हाथ में लेने और महारथी बनने की तैयारी कर रहे हैं। इसी के तहत आज का उनका बिहार की बात अभियान एक आगाज है सत्ता के गलियारों से।
प्रशांत किशोर को लोग एक रणनीतिकार के रूप में ज्यादा जानते हैं। लेकिन बिहार के चुनाव उनको रणनीतिकार की बजाय राजनेता के रूप में चर्चित कर रहे हैं। आज प्रशांत किशोर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सर्दी में राजनितिक गर्मिया ला दी जिसमें उन्होंने अपनी भावी योजनाओं का खुलासा किया और कहा कि मैं किसी का एजेंट नहीं हूं। साथ ही उन्होंने नीतीश और मोदी सरकार के गठबंधन को चुनौती देते हुए कहा की अब गांधी और गोड्से एक साथ नहीं चल सकते है।
पटना में आज हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस पर पूरे देश के राजनेताओं की नजर थी। कुछ दिन पूर्व ही प्रशांत किशोर दिल्ली में अरविंद केजरीवाल को विधानसभा चुनाव जीता कर आए हैं। ”अच्छे बीते पांच साल लगे रहो केजरीवाल” का नारा देने वाले प्रशांत किशोर केजरीवाल के लिए दिल्ली की राह आसान करने के बाद अब बिहार में महत्वपूर्ण भूमिका में नजर आएंगे। राजनीति के जानकारों का कहना है कि पीके बिहार में ‘केजरीवाल मॉडल’ लाकर युवाओं को अपनी और आकर्षित करेंगे।
सभी जानते है कि प्रशांत किशोर कभी नरेंद्र मोदी के साथ तो कभी राहुल गांधी के साथ तो कभी केजरीवाल के साथ सत्ता की सरगर्मियां बढ़ाते रहे हैं। वह राजनेताओं को सत्ता के दरवाजे तक पहुंचने के उपाय बताते रहे हैं। प्रशांत किशोर की टेक्नोलॉजी का ही नतीजा है कि आज उनका राजनीतिकरण कौशल पूरे देश में सराहा जाता है। फ़िलहाल उनके इसी राजनितिक रणकौशल की बिहार में परीक्षा होगी। उनके गृह प्रदेश बिहार में अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने है। जिसमे पीके का जलवा दिखाई देगा।
अमूमन बिहार के निवासी प्रशांत किशोर अब अपने प्रदेश में रणनीतिकार नहीं बल्कि राजनीति के रूप में नया सितारा बनकर सामने आ सकते हैं। हालांकि, 2 साल पूर्व ही वह जेडीयू में जा चुके थे। लेकिन नीतीश कुमार की भाजपा को समर्थन देने और अल्पसंख्यकों के विरोध में खड़ा होने के खिलाफ प्रशांत किशोर मुखर हो गए थे। यहां तक कि प्रशांत किशोर ने सीएए का विरोध किया जबकि नीतीश कुमार इसके समर्थन में। यहीं से दोनों में तलवारें खिंच गईं और प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार का साथ छोड़ दिया।
बावजूद इसके कि नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को जेडीयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया था। उसी दौरान प्रशांत किशोर में बिहार के लाखों युवाओं को अपने बैनर के नीचे जोड़ लिया था। प्रशांत किशोर ने पीसी में बताया कि करीब साढे चार लाख युवा उनके बैनर से जुड़ चुके हैं और आज इन युवाओं को वह अपने नए राजनीतिक मंच में लाकर राजनीति की नई शुरुआत करने की ओर अग्रसर है।
गौरतलब है कि प्रशांत किशोर ने 2014 में नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार अभियान का जिम्मा संभाला था। इसी दौरान वो चर्चा में आए। लेकिन जल्दी ही वहां से उनका मोहभंग हो गया। फिर वह 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार के चुनाव प्रचार अभियान के संचालक बन गए। माना जाता है कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव की दोस्ती और उसके बाद बने महागठबंधन और उसकी पूरी चुनावी रणनीति के पीछे प्रशांत किशोर की बेहद अहम भूमिका रही थी।
2017 में प्रशांत किशोर ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान की जिम्मेदारी ली और उनके द्वारा आयोजित राहुल गांधी की खाट सभाएं और सोनिया गांधी के वाराणसी के रोड शो में उमड़ी जबरदस्त भीड़ ने कांग्रेस में जान डाल दी।लेकिन इसके बावजूद उन्हें यूपी में सफलता नहीं मिल सकी थी। कारण मोदी मैजिक रहा।
हालांकि, इस दौरान यूपी में उरी की सर्जिकल स्ट्राईक के बाद बने राष्ट्रवादी माहौल, कांग्रेस का सपा के साथ गठबंधन और कांग्रेस के कुछ दिग्गज नेताओं की साजिश ने पीके की चुनावी रणनीति को विफल कर दिया। कांग्रेस उत्तर प्रदेश चुनावों में महज सात सीटों पर सिमट गई। जबकि दूसरी तरफ पंजाब में प्रशांत किशोर कैप्टन अमरिंदर सिंह के चुनाव अभियान के संचालन में बेहद कामयाब रहे।
दो साल पूर्व बिहार में प्रशांत किशोर उस दौरान चर्चा में आये जब नीतिश कुमार ने उन्हें जनता दल (यू) में शामिल करके पार्टी का उपाध्यक्ष बना कर अपना उत्तराधिकारी बनाने का संकेत दिया। तब माना जा रहा था कि पीके के जरिए नीतीश राज्य के सवर्ण विशेषकर करीब चार से छह फीसदी ब्राह्मण मतदाताओं को साधना चाहते हैं। इस बीच प्रशांत किशोर ने आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी के चुनाव प्रचार अभियान की कमान संभाल ली और विधानसभा चुनावों में मिली जगन को जबरदस्त कामयाबी ने पीके को फिर से चमका दिया।
इसके बाद प. बंगाल में ममता बनर्जी और तमिलनाडु में एम.के.स्टालिन ने विधानसभा चुनावों के लिए प्रशांत किशोर की सेवाएं लीं। जबकि दिल्ली अरविंद केजरीवाल ने उन्हें अपने चुनाव प्रचार अभियान की जिम्मेदारी दे दी। कहा जाता है कि ‘अच्छे बीते पांच साल लगे रहो केजरीवाल’ का नारा पीके ने ही रचा था।
जद (यू) में नीतीश कुमार के साथ रहते हुए भी प्रशांत किशोर ने अपनी अलग पहचान बनाए रखी और सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर उन्होंने खुलकर केंद्र सरकार और गृह मंत्री अमित शाह का विरोध किया। उनके बयानों से नीतीश कुमार बेहद असहज हुए और आखिरकार उन्होंने प्रशांत किशोर को जद (यू) से निकाल दिया। उसके बाद ही प्रशांत किशोर ने तय कर लिया था कि अब वह बिहार में खुलकर राजनीति के मैदान में बल्लेबाजी करेंगे।