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पायलट बनेंगे राजस्थान के मुख्यमंत्री,गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष !

कांग्रेस की उत्तर प्रदेश महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने पार्टी की कमान किसी गैर गांधी शख्स को सौंपे जाने की वकालत क्या की कयासों का दौर शुरू हो गया है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की उस बात का समर्थन किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि गांधी परिवार के बाहर के व्यक्ति को कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त किया जाना चाहिए। इसके मद्देनजर अब प्रियंका के इसी बयान को राजस्थान के मौजूदा राजनीतिक हालातों से जोड़ कर देखा जाने लगा है।

कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि पार्टी आलाकमान राज्य के सियासी संकट को पूरी तरह समाप्त करने के लिए गंभीरता से विचार कर रहे हैं। फिलहाल राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि केंद्र में गहलोत और प्रदेश में पायलट फॉर्मूले पर भी फैसला हो सकता है। हालांकि इसका फैसला उसके बाद ही होगा जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा बनाई गई तीन सदस्यीय समिति इस मामले में निर्णायक मोड़ पर पहुंचेगी। फिलहाल की स्थितियों को देखें तो राजस्थान में हालात अभी सामान्य नहीं हैं। हालात सामान्य होते ही राजस्थान की राजनीति में फेरबदल संभव है।

1 सप्ताह पूर्व प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के कांग्रेस आलाकमान के हस्तक्षेप के बाद हाथ मिल चुके हैं । लेकिन दिल अभी नहीं मिले है । इसका उदाहरण है प्रदेश में पायलट गुट और गहलोत गुट के लोगों का एक दूसरे पर आपसी वार करना । 2 दिन पहले नदबई विधायक जोगिंदर अवाना जब अपने क्षेत्र में भ्रमण पर निकले तो सचिन पायलट समर्थकों ने उनकी घेराबंदी कर दी। इससे विधायक जोगिंदर अवाना असहज हो गए।

हालांकि, इसे गुर्जर बिरादरी द्वारा जोगिंदर अवाना के सचिन का साथ ना देने का आक्रोश कहा जा रहा है। लेकिन इसके पीछे की राजनीति पर गौर करें तो इसमें पायलट गुट का गहलोत समर्थकों पर हावी होना है। 1 सप्ताह पूर्व जब कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के समझाने पर सचिन पायलट बगावत छोड़ घर वापसी को तैयार हुए तो तभी से लगने लगा था कि गहलोत अब कमजोर पड़ सकते हैं। सचिन पायलट ने सबसे पहले गहलोत की कमजोरी रहे प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे को हटाकर अपनी शक्ति का एहसास कराया।

हालांकि , पार्टी द्वारा यह कहा गया कि अविनाश पांडे अपना 3 साल का कार्यकाल पूरा कर चुके थे। लेकिन यह भी सर्वविदित है कि पायलट और गहलोत प्रकरण में अविनाश पांडे ने जिस तरह से मुख्यमंत्री के पक्ष में बयान बाजी की उससे यही संदेश गया कि वह निष्पक्ष तौर पर अपना कार्य नहीं कर पाए । वैसे भी अविनाश पांडे को मुख्यमंत्री कैंप का नेता माना जाता था।

हालांकि अब हवा बदल चुकी है । अविनाश पांडे के जाने के बाद पार्टी आलाकमान ने अजय माकन को प्रदेश का प्रभारी बना कर यह जता दिया है कि वह प्रदेश में किसी गुट को हावी नहीं होने देंगे। इसी के साथ ही कांग्रेस आलाकमान ने राजस्थान में बागियो द्वारा उठाए गए मुद्दों की जांच कराने के लिए 3 सदस्यीय समिति का गठन भी किया। जिसमें वरिष्ठ नेता अहमद पटेल के साथ ही अजय माकन और केके वेणुगोपाल शामिल है ।

गौर करने वाली बात यह है कि 1 सप्ताह से सचिन पायलट राजस्थान की राजनीति में बेहद ही सक्रिय तौर पर उभर रहे हैं। वह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जयंती पर ना केवल जयपुर में पार्टी कार्यालय में पहुंचे बल्कि प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को बधाई भी थी । पिछले 2 महीने से जो सचिन पायलट चुप्पी साधे हुए थे , वह आजकल मुखर हो चले हैं। इसका एक उदाहरण राजस्थान विधानसभा का भी है।

राजस्थान विधानसभा में विश्वास मत के दौरान चल रहे सत्र में सचिन पायलट को सबसे ज्यादा सराहा गया। इसका कारण रहा उनकी सीट को सबसे पीछे और विपक्ष के साथ सटा कर लगा देना । इस पर सचिन पायलट ने जो ” बॉर्डर ” वाला बयान दिया वह काफी सराहा गया और सुर्खियों में रहा। हालात यह रहे कि लोगों की दिलचस्पी विश्वास मत के परिणाम की बजाय सचिन की सीट पीछे लगाने पर ज्यादा रही। इससे मामला पायलट के प्रति भावनात्मक राजनीति में बदल गया। तब कहा गया कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सचिन पायलट और उनके गुट के 18 विधायकों के साथ सौतेला व्यवहार कर रहे हैं।

सचिन पायलट यही नहीं रुके बल्कि वह कोरोना काल में अपने विधानसभा क्षेत्र टाँक में जा पहुंचे। जहां उनके स्वागत में उमड़ा जनसैलाब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की नींद उड़ा गया । इसी दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बीमार पड़ गए । राजस्थान की राजनीतिक में कहा गया कि मुख्यमंत्री को पहला झटका प्रभारी अविनाश पांडे के जाने का था तो दूसरा झटका सचिन पायलट के विधानसभा क्षेत्र टाँक में उमड़ी भारी भीड का रहा। जिससे वह सदमे को सहन न कर सके और बीमार पड़ गए । इसी दौरान उनके खेमे के विधायक जोगिंदर अवाना के क्षेत्र में विरोध भी गहलोत के लिए काफी सदमे वाला रहा । वहां जिस तरह से सचिन पायलट जिंदाबाद के नारे लगें वह भविष्य का संकेत देता नजर आया।

अगर राजस्थान की राजनीति की गहराई से अध्ययन करें तो पता चलता है कि जादूगर अशोक गहलोत ने कभी हार नहीं मानी है। सचिन पायलट के बागी बनने के बाद भी वह जिस तरह से भाजपा और प्रदेश के राज्यपाल कलराज मिश्र के खिलाफ सामने आए वह उनकी राजनीति का चार दशक का अनुभव कहा गया। लेकिन, दूसरी तरफ सचिन पायलट मामले में वह ज्यादातर उग्र ही दिखाई दिए ।

यहां तक की पायलट को वह नाकाबिल और नकारा तक कह गए। जिसका जनता में उल्टा असर पड़ा । वहीं अपने बागी वाले रूप में सचिन पायलट ने आपा नहीं खोया। वह ज्यादातर मौन साधे रहे। जब उन पर भाजपा में जाने के आरोप लगे तो वह खुलकर बोले और कहा कि वह गद्दारों में शामिल नहीं है। सचिन ने यह भी साफ किया कि वह भाजपा के साथ नहीं जाएंगे। जिसपर वह अंत समय तक अमल करते दिखें। बताया जा रहा है कि पार्टी आलाकमान अब पायलट को उनकी इसी इमानदारी का इनाम राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाकर दे सकता है।

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