डॉ. हरिनाथ कुमार
उत्तर प्रदेश की अठारहवीं विधानसभा के लिए कुल सात चरणों में चुनाव होने हैं, जिसमें से चार चरण के चुनाव हो चुके हैं। यमुना-गंगा के उपजाऊं इलाकों से होता हुआ मतदान गोमती तट तक सम्पन्न हो गया है। अब इस मध्य चरण चुनाव के बाद सरयूपार पूर्वांचल में चुनावी घमासान और तेज़ हो गया है।
यूपी विधानसभा के चौथे चरण में 9 जिलों की 59 सीटों पर मतदान हुआ। इस तरह अब तक कुल चार चरणों में 45 जिलों की 232 सीटों पर मतदान हो चुके हैं। प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ चरण के मतदान का प्रतिशत क्रमशः 60.17, 62, 61.1 और 61.65 रहा। यानी कि अब तक औसतन 61.23 फिसदी मतदान हुए हैं। अभी 31 जिलों की कुल 171 सीटों पर मतदान होना बाकी है।
अखिलेश यादव अपने विधानसभा क्षेत्र करहल में मतदान निबटाकर अब सरयूपार ध्यान दे रहे हैं। जबकि योगी आदित्यनाथ को अभी बाक़ी जगह के साथ-साथ अपने विधानसभा क्षेत्र गोरखपुर पर भी नज़र रखनी है। वहीं बसपा मुखिया मायावती ने चौथे चरण में मतदान कर यह संदेश दिया है कि मतदान ही लोकतंत्र की बुनियाद है।
तीसरे चरण के मतदान तक एक बात पर राजनीतिक विश्लेषक सहमत रहे हैं कि इस बार चुनाव सीधे-सीधे योगी बनाम अखिलेश है। बसपा और कांग्रेस कम-से-कम अभी तक सरकार बनाने के खेल में शामिल नहीं दिख रही हैं। लेकिन तीसरे चरण के बाद से ही राजनीतिक गलियारों में यह सुगबुगाहट साफ हो गई कि यह चुनाव त्रिशंकु है। अभी तक बसपा को कमतर आंका गया है। इस बात की पुष्टि बीजेपी नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक प्राइवेट न्यूज़ चैनल न्यूज़-18 को दिए साक्षात्कार में की है। चुनाव के तीन चरण होने के बाद उनके इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं।
छह महीने पहले तक सबको लगता था कि उत्तर प्रदेश में विपक्ष बहुत कमजोर और निष्क्रिय है और भाजपा सरकार फिर बनेगी लेकिन एक के बाद एक घटनाक्रम इतनी तेज़ी से बदला कि आज भाजपा की जीत को लेकर संशय पैदा होने लगा है। उत्तर प्रदेश का राजनीतिक माहौल बदलने के श्रेय सबसे ज़्यादा पश्चिम में भारतीय किसान यूनियन नेता राकेश टिकैत और पूरब में योगी सरकार में मंत्री रहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर को दिया जा सकता है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि इस चुनाव में ऐसे तमाम ग़ैर-राजनीतिक संगठन और सिविल सोसायटी के लोग भाजपा के ख़लिफ़ काम कर रहे हैं जिन्हें लगता है कि मोदी और योगी की जोड़ी देश में लोकतंत्र और सामाजिक सद्भाव के लिए ख़तरा है। कारण भी है। इस चुनावी समर में भाजपा के स्टार प्रचारकों की भाषा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गर्मी कम करने की बात की तो जवाब में अखिलेश और जयंत ने भी गर्मी पर कुछ कहा। हालात यह हो गई है कि अब ये गर्मी अख़बार की आपराधिक ख़बरों की सुर्खियां लिखने में इस्तेमाल होने लगी है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी चुनावी जनसभाओं में लगातार पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश का नामकरण करते आ रहे हैं। क्या भाजपा इसी एक मुद्दे के सहारे जनादेश लेना चाहती है? इस पर इतना भरोसा है कि हर तरण में नामों को लेकर नए नए प्रयोग किए जा रही है। तमंचावादी, माफियावादी कहने के बाद अब मुख्यमंत्री अखिलेश को दंगेश कहने लगे हैं। अमित शाह ने माफिया कोरिडोर बनाम डिफ़ेंस कोरिडोर कहना शुरू कर दिया है। बीजेपी ने अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत गंगा कोरिडोर और पूर्वांचल कोरिडोर से की थी अब उसी कोरिडोर को माफिया कोरिडोर कहने लगी है। विकास के अपने ही मॉडल को वह अपराध और आतंक के शब्द दे रही है। ऐसा लगता है कि भाजपा को भाषा का संकट हो गया है।
चार चरणों के मतदान के बाद भाजपा के लिए चुनौती और बड़ी हो गयी है। पहले चरण में किसान आंदोलन का ज़बरदस्त असर रहा , दूसरे में किसान के साथ मुसलमानों की बड़ी संख्या और तीसरे मुलायम सिंह यादव अपना जनाधार वापस लाने के लिए खुद अखाड़े में उतरे। और चौथे चरण में लखीमपुर खीरी प्रमुख मुद्दा रहा। लेकिन अब शेष चरणों के चुनाव में स्थानीय मुद्दे तमाम मुद्दों पर हावी होते दिख रहे हैं। छुट्टे और आवारा पशुओं के मुद्दे ने चुनावी मैदान में असर दिखाया है। यही वजह है भारतीय जनता पार्टी अब जवाबी मोड में है और समाजवादी पार्टी आक्रामक। पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ तक चुनावी मैदान में मुद्दे का हल निकालने की बात करते दिख रहे हैं।
पश्चिमी यूपी से चला पलायन, धर्मांतरण, हिंदू-मुस्लिम, जिन्ना, पाकिस्तान जैसे मुद्दे अवध आते-आते थकते नजर आ रहे हैं। अवध क्षेत्र के बाकी इलाकों और पूर्वांचल में इस समय जो सबसे बड़ा मुद्दा बनता दिख रहा है, वह आवारा पशुओं का। छुट्टा जानवर लोगों की परेशानी का कारण बने हुए हैं। सड़क से लेकर खेत तक छुट्टा जानवर आपको हर कहीं मिल जाएंगे। समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी दलों ने बड़े ही करीने से इस मुद्दे को आम ग्रामीणों तक सरकार की सबसे बड़ी नाकामी के रूप में पेश करने में कामयाबी हासिल की है। बाराबंकी में सीएम योगी आदित्यनाथ की सभा से पहले जिस प्रकार से छुट्टा जानवरों को छोड़ा गया, उसने स्थिति की गंभीरता को दर्शाया है। ऐसे में अब इस मुद्दे पर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी गंभीर होता दिख रहा है।