जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 समाप्त किए जाने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली अर्जी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाई। प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई ने नाराजगी जताते हुए याचिकाकर्ता से पूछा कि ‘यह किस तरह की याचिका है?’ सीजेआई ने कहा कि यह अर्जी सुनवाई योग्य नहीं है और उन्होंने तकनीकी आधार पर अर्जी पर सुनवाई से इंकार किया। अनुच्छेद 370 पर सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली अर्जी वकील एमएल शर्मा ने दायर की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अर्जी जिस रूप में दायर की गई उस पर वह सुनवाई नहीं कर सकता।
अधिवक्ता एम एल शर्मा और कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन की ओर से याचिका दायर की गई है।अधिवक्ता ने जहां अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त किए जाने को चुनौती दी है वहीं पत्रकार ने अपनी याचिका में पूरे राज्य में मोबाइल इंटरनेट एवं लैंडलाइन सेवाओं समेत संचार के सभी माध्यमों को बहाल करने के निर्देश देने की मांग की है ताकि मीडिया अपना काम कर सके।
शर्मा ने जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के केंद्र के फैसले के एक दिन बाद छह अगस्त को याचिका दायर की थी। अधिवक्ता ने अपनी याचिका में दावा किया है कि अनुच्छेद 370 पर राष्ट्रपति का आदेश गैरकानूनी है क्योंकि यह जम्मू-कश्मीर विधानसभा की सहमति के बिना जारी किया गया।
दस अगस्त को दायर अलग याचिका में भसीन ने कहा कि वह कश्मीर और जम्मू के कुछ जिलों में पत्रकारों और मीडिया कर्मियों की आवाजाही पर लगी सभी पाबंदियों को तत्काल हटाने के संबंध में केंद्र और जम्मू कश्मीर प्रशासन के लिए निर्देश चाहती हैं।
इससे पहले मंगलवार यानी 13 अगस्त को शीर्ष अदालत ने प्रतिबंधों पर हस्तक्षेप करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि संवेदनशील स्थिति को सामान्य बनाने के लिए कुछ समय दिया जाना चाहिए और सुनवाई दो हफ्तों के बाद तय की थी।
जम्मू कश्मीर की मुख्य राजनीतिक पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भी जम्मू कश्मीर के संवैधानिक दर्जे में किए गए बदलावों को कानूनी चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की है। पार्टी ने तर्क दिया है कि इन बदलावों ने जनादेश के बिना वहां के नागरिकों से उनके अधिकार ले लिए। यह याचिका लोकसभा सदस्य मोहम्मद अकबर लोन और न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) हसनैन मसूदी ने दायर की है। दोनों नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी से हैं।