महाराष्ट्र में सेटिंग – गेटिंग का खेल हुआ है । यह उस दिन से ही चर्चा में चल रहा था जब अजित पवार ने बीजेपी को समर्थन देते हुए उनकी सरकार बनवा दी। साथ में वह डिप्टी सीएम भी बन गए । फिलहाल मामला स्पष्ट नही है कि महाराष्ट्र में बीजेपी सरकार 30 नवंबर से पहले फ्लोर टेस्ट में पास हो पाती है या नहीं । लेकिन इस पूरे प्रकरण में महज 48 घंटे के नाटकीय घटनाक्रम में अजित पवार के हाथ सोने का घड़ा लगा है । मतलब 48 घंटे में ही उसे 70 हजार के सिंचाई विभाग घोटाले में एसीबी से क्लीन चिट मिल गई । मतलब साफ-साफ है की ईडी का डर दिखाकर भाजपा ने अजीत पवार को उनके चाचा शरद पवार से अलग कर अपने खेल में शामिल कर लिया और उनको इसका इनाम भी 48 घंटे में दे दिया । उधर,महाराष्ट्र में सिंचाई घोटाले से जुड़े 9 केस बंद करने के खिलाफ कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। इसके साथ ही याचिका में फडणवीस सरकार के किसी भी पॉलिसी निर्णय के लेने पर रोक की मांग की है।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र में हुए करीब 70 हजार करोड़ के सिंचाई घोटाले में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने नवम्बर 2018 में उप मुख्यमंत्री और एनसीपी नेता अजित पवार को जिम्मेदार ठहराया था । महाराष्ट्र भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने बंबई उच्च न्यायालय को बताया था कि करोड़ों रुपये के कथित सिंचाई घोटाला मामले में उसकी जांच में राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री अजित पवार तथा अन्य सरकारी अधिकारियों की ओर से भारी चूक की बात सामने आई है । यह घोटाला करीब 70,000 करोड़ रुपए का है, जो कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के शासन के दौरान अनेक सिंचाई परियोजनाओं को मंजूरी देने और उन्हें शुरू करने में कथित भ्रष्टाचार तथा अनियमितताओं से जुड़ा हुआ है ।
याद रहे कि अजित पवार के पास महाराष्ट्र में 1999 से 2014 के दौरान कांग्रेस-राकांपा गठबंधन सरकार में सिंचाई विभाग की जिम्मेदारी थी । एसीबी के महानिदेशक संजय बारवे ने एक स्वयंसेवी संस्था जनमंच की ओर से दाखिल याचिका के जवाब में हाईकोर्ट की नागपुर पीठ के समक्ष एक हलफनामा दाखिल किया था ।
एनजीओ ने याचिका में विदर्भ और कोंकण सिंचाई विभाग द्वारा शुरू की गई सिंचाई परियोजनाओं में कथित अनियमितता पर चिंता जताई थी । जवाबी हलफनामे में जल संसाधन विभाग के अंदर घोटाले को ‘साजिश का एक विचित्र मामला’ बताया गया । जिसने सरकार से ही धोखाधड़ी की गई। इसमें कहा गया था कि पवार के जल संसाधन विकास मंत्री रहने के दौरान विदर्भ और कोंकण सिंचाई विकास निगम की कई परियोजनाओं में देरी हुई । इससे लागत में वृद्धि हुई और सिंचाई के अनुमानित लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सका