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पसमांदा – बोहरा मुसलमानों को साधने में जुटी भाजपा

 

पिछले हफ्ते भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव का एजेंडा साफ कर दिया है,जिसमे उन्होंने कहा कि चुनाव में 400 दिन बचे हैं,ऐसे में सामाजिक समरसता के लिए हर गांव में हर एक मतदाता तक पहुंचना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा नेताओं को नसीहत देते हुए कहा कि मुस्लिमों को लेकर गलत बयानबाजी नहीं करे। इसके अलावा कार्यकर्ताओं से पसमांदा मुसलमानों, बोहरा मुस्लिमों तक पहुंच बनाने के लिए कहा है। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कोई हमें वोट दे या ना दें लेकिन सबसे संपर्क बनाएं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार पसमांदा मुसलमानों को पार्टी से जोड़ने पर जोर नहीं दिया बल्कि गुजरात में मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए ही उन्होंने मुस्लिम वोट बैंक के बीच अपनी पैठ जमाने की कोशिश शुरू कर दी थी।उन्होंने पूरे मुस्लिम समाज को जोड़ने के बजाय पसमांदा और बोहरा मुस्लिमों पर फोकस किया था। इस रणनीति में भाजपा को गुजरात में फायदा भी हुआ था। दिल्ली आने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुसलमानों को इसी तबके को साथ लेने पर जोर देते रहे।इससे पहले हैदराबाद में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान परधानमंत्री मोदी ने मुसमलानों के पिछड़े माने जाने वाले पसमांदा मुसलमान को पार्टी से जोड़ने का मंत्र दिया था। वहीं, अब पसमांदा मुस्लिमों के साथ-साथ बोहरा मुसलमानों को भी शामिल किया है और उन्हें पार्टी से जोड़ने पर जोर दिया है। ऐसे में देखा होगा कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में बोहरा और पसमांदा को आपने पाले में आने में कितना सफल हो पाती है।

भाजपा पहले से ही पासमांदा-बोहरा मुस्लिम को आपने साथ लाने की कोशिश कर रही है,क्योंकि मुसलमानों में पसमांदा मुस्लिम सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक-शैक्षणिक रूप से काफी पिछड़े हैं जबकि बोहरा मुस्लिम काफी समृद्ध संभ्रांत और पढ़ा-लिखे माने जाते हैं। मोदी ने गुजरात में व्यापारियों की सुविधा के हिसाब से नीतियां बनाई जो बोहरा समुदाय के उनके साथ आने की बड़ी वजह बनीं थीं जबकि पसमांदा मुस्लिम को जनकल्याण की योजनाओं का लाभ देकर जोड़ने की कवायद की है गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए भी बोहरा मुस्लिम मोदी के साथ खड़ा था और आज जब मोदी प्रधानमंत्री पद पर हैं तो भी ये तबका उनके करीब है, लेकिन गुजरात से बाहर के राज्यों में बोहरा समाज अभी भी भाजपा के साथ नहीं जुड़ सका है। इसलिए अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा अपनी सोशल इंजीनियरिंग को मजबूत करने की कड़ी में बोहरा समुदाय और पसमांदा मुसलमानों को साथ लाने की कवायद कर रहे है।

कौन है बोहरा मुसलमान?

 

‘बोहरा’ गुजराती शब्द ‘वहौराउ’ अर्थात ‘व्यापार’ का अपभ्रंश है। ये मुस्ताली मत का हिस्सा हैं जो 11वीं शताब्दी में उत्तरी मिस्र से धर्म प्रचारकों के माध्यम से भारत में आए थे। बोहरा समुदाय की विरासत फातिमी इमामों से जुड़ी है, जिन्हें पैगंबर हजरत मोहम्मद (570-632) का वंशज माना जाता है। यह समुदाय मुख्य रूप से इमामों के प्रति ही अपना श्रद्धा रखता है, इमाम तैय्यब अबुल कासिम के बाद 1132 से आध्यात्मिक गुरुओं को सैय्यदना कहा जाता है। भारत में करीब 20 लाख से ज्यादा बोहरा समुदाय के लोग हैं। मुस्लिम समाज मुख्य रूप से दो हिस्सों में शिया-सुन्नी में बंटा हुआ है। बोहरा समुदाय शिया और सुन्नी दोनों में होते हैं। सुन्नी बोहरा हनफी इस्लामी कानून को मानते हैं तो दाउदी बोहरा मान्यताओं में शिया समाज से मिलती जुलती है। बोहरा समाज सूफियों और मजारों पर खास विश्वास रखता है और इस्माइली शिया समुदाय का उप-समुदाय है। यह अपनी प्राचीन परंपराओं से पूरी तरह जुड़ी कौम है, जिनमें सिर्फ अपने ही समाज में ही शादी करना शामिल है। दाऊदी और सुलेमानी बोहरा के धार्मिक सिद्धांतों में कोई खास बुनियादी फर्क नहीं है। दोनों समुदाय सूफियों और मजारों पर खास आस्था रखते हैं। सुलेमानी जिन्हें सुन्नी बोहरा भी कहा जाता हैं, हनफी इस्लामिक कानून पर अमल करते हैं, जबकि दाऊदी बोहरा समुदाय इस्माइली शिया समुदाय का उप-समुदाय हैं और दाईम-उल-इस्लाम के कायदों को अमल में लाता है। बोहरा समुदाय 1539 में अपना मुख्यालय यमन से भारत में सिद्धपुर ले आया गया था। साल 1588 में दाऊद बिन कुतब शाह और सुलेमान के अनुयायियों के बीच विभाजन हो गया,जिसमें सुलेमानियों के प्रमुख यमन में रहते हैं तो दाऊदी बोहराओं का मुख्यालय मुंबई में है। बोहरा समुदाय के 53वें धर्मगुरु सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन मुंबई में रहते हैं। साल 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय के 53वें धर्मगुरु सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन के प्रवचन में शामिल हुए थे।

कौन है पसमांदा मुसलमान? 

 

मुसलमानों के पिछड़े वर्ग को पसमांदा मुस्लिम कहा जाता है। देश में मुसलमानों की कुल आबादी के 85 फीसदी को पसमांदा कहा जाता है, यानी वो मुस्लिम जो दबे हुए हैं, इसमें दलित और बैकवर्ड मुस्लिम आते हैं। हिंदुओं की तरह भारतीय मुस्लिमों में भी जातीय व्यवस्था है। मुस्लिमों के उच्च वर्ग या सवर्ण को अशरफ कहते हैं, लेकिन इसके अलावा ओबीसी और दलित मुस्लिम हैं, उन्हें पसमांदा कहा जाता है। पसमांदा मूल तौर पर फारसी का शब्द है, जिसका मतलब होता है, वो लोग जो सामाजिक, आर्थिक रूप से पिछड़े हैं।मुस्लिम समुदाय में पसमांदा मुस्लिमों की संख्या करीब 85 प्रतिशत बताई जाती है जबकि 15 प्रतिशत में सैयद, शेख, पठान जैसे उच्च जाति के मुसलमान हैं। अगड़े मुसलमान सामाजिक और आर्थिक तौर पर ये मजबूत हैं और सभी सियासी दलों में इन्हीं का वर्चस्व रहा है जबकि पसमांदा समाज सियासी तौर पर हाशिए पर ही रहा है। इसमें मलिक (तेली), मोमिन अंसार (जुलाहे), कुरैशी (कसाई), मंसूरी (रजाई और गद्दे बनाने वाले), इदरीसी (दर्जी), सैफी (लोहार), सलमानी (नाई), घोसी (पशु व्यापारी), सैफी (बढ़ई), राइन (सब्जी उत्पादक / विक्रेता) और हवारी (धोबी) जैसे 45 से अधिक समूह शामिल हैं। इन्हीं समुदाय को प्रधानमंत्री मोदी पार्टी से जोड़ने के लिए जोर दे रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि पूरे मुसलमानों के बजाय इन्हें जोड़ना आसान है। इन्हें जनकल्याण योजनाओं का लाभ देकर आसानी से पार्टी के करीब लाया जा सकता है।

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