हर माँ – बाप का यही सपना होता है कि उनका बच्चा अपनी जिंदगी में कुछ बेहतर करे और कामयाबी हासिल करे। लेकिन आज के दौर में आगे बढ़ने की इस होड़ ने शिक्षा के साथ-साथ हर के क्षेत्र में प्रतियोगिता को काफी ज्यादा बढ़ा दिया है। जिसके कारण कई बार बच्चे के जीवन का आधार माने जाने वाले बच्चे के माँ-बाप बच्चे के जीवन का काल बन जाते हैं।
लेकिन आज उन्ही पर सवाल क्यों खड़े हो रहे हैं कि माँ-बाप वही अपने बच्चे के लिए काल का रूप धारण करते जा रहे हैं। दरअसल कई बार बच्चे को कामयाब और सफल बनाने की चाह में उनके अभिभावक कई बार बच्चों को उनकी इच्छा के विरोध में किसी ऐसे क्षेत्र में जाने पर मजबूर कर देते हैं जिसमें बच्चे का इंट्रेस्ट नहीं होता या उससे इतनी जा उम्मीदें लगा लेते हैं कि परीक्षा में कम नम्बर आने या फेल होने के बाद तिरस्कार के डर से वह डिप्रेशन में चला जाता है और इस डोयूरान सही गाइडेंस न मिलने के कारण आत्महत्या जैसा कदम उठा लेता है। कुछ विसेसज्ञों का कहना है कि आज भी कई माता पिता के पालन-पोषण की शैली वैसी ही है, ‘जैसी 1970 के दशक में थी, जबकि बच्चे के पास 2022 का आधुनिक मस्तिष्क है और उसे जो कुछ भी करने के लिए कहा जाता है, वह उसके लिए वैज्ञानिक स्पष्टीकरण की मांग करता है। कई बार, माता-पिता अपने बच्चे से कुछ ऐसा करवाते हैं, जो वे नहीं करना चाहते। दूसरों के साथ खुद की अपेक्षाओं का बोझ बच्चों को हतोत्साहित करता है।’ यही नहीं बच्चों के मन में बचपन से ही यह बात डाल दी जाती है कि उसे अपने सहयोगियों, अपने दोस्तों व पड़ोसियों आदि से बेहतर नम्बर लाने हैं और आगे निकलना हैं। एक अन्य मनोवैज्ञानिक का कहना हैं कि, “कई मां-बाप में यह मानसिकता देखी जाती है कि वो परीक्षा में बच्चों की परफॉर्मेंस को इज्जत से जोड़ कर देखते हैं। जिसके कारण हमेशा पढाई और अच्छे नम्बर का दबाव बनाते हैं।
हाल ही में शिकार हुए बच्चे
इस समय छात्रों की आत्महत्या का मामला उभरने का कारण यह है कि, हाल ही में में कोटा में पढ़ने वाले 3 छात्रों ने एक साथ आत्महत्या कर ली। कहा जा रहा है की ये तीनों ही छात्र परीक्षा के कारण तनाव में थे जिसके कारण उन्होंने यह कदम उठाया है। इन तीनों छात्रों में से एक का नाम अंकुश आनंद था जिसकी उम्र 18 साल थी वह नीट की तैयारी कर रहा था , दूसरे छात्र का नाम उस उज्जवल कुमार था जिसकी उम्र 17 साल है और कोटा में जेईई की तैयारी करने आया था , वहीं तीसरा छात्र परवान वर्मा जिसकी उम्र केवल 16 साल थी उसने नीट की तैयारी के दौरान आत्महत्या कर ली।
बच्चों को समझने का प्रयास करें अभिभावक
छात्रों की आत्महत्या के बढ़ते मामलों को देखते हुए माता पिता को यह सकलाह दी जा रही है कि उन्हें अपने बच्चों की भावनाओं और उनकी इच्छाओं को समझना चाहिए कई बार अभिभावक यह महसूस नहीं कर पाते की उनकी आकांक्षाएं बक्से के लिए बूझ बनती जा रही हैं और धीरे-धीरे उसका तनाव बढ़ता जा रहा है। इस बात पर एक कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि “मैं सबसे पहले मां बाप और शिक्षकों को यह जरूर कहना चाहूंगा कि जो सपने आपके खुद के अधूरे रह गए हैं, उन्हें अपने बच्चों में इंजेक्ट करने की कोशिश करते हैं। आप अपनी आकांक्षाएं जो आप पूरी नहीं कर पाए उन्हें बच्चों के जरिए पूरा कराना चाहते हैं। लेकिन हम बच्चों की आकांक्षाओं को समझने का प्रयास नहीं करते हैं। उनकी प्रवृत्ति, क्षमता नहीं समझते और नतीजा ये होता है कि बच्चा लड़खड़ा जाता है। ”