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अर्श से फर्श पर ‘परमवीर’

वर्ष 1988 बैच के आईपीएस अफसर परमवीर सिंह की जीवन कहानी पूरी फिल्मी है। कभी महाराष्ट्र के तेज तर्रार अफसरों में गिने जाने वाले परमवीर इन दिनों भगौड़ा अपराधी घोषित किए जा चुके हैं। मुंबई पुलिस कमिश्नर पद से यकायक हटाए गए परमवीर सिंह ने अपने विभागीय मंत्री को भ्रष्ट बता खुद को हीरो साबित करने की कोशिश तो की लेकिन वे खुद ही अपने बिछाए जाल में फंस कर रह गए हैं। दो साल पहले परमवीर सिंह को मुंबई पुलिस का प्रमुख बनाया गया था। वे उस पुलिस के प्रमुख थे, जिससे अंडरवर्ल्ड भी घबराता है। बड़े-बड़े माफिया से लेकर ‘डी कंपनी’ के गुर्गे तक इनसे दूर भागते थे। आज वही पुलिस अपने ही प्रमुख के पीछे पड़ी है। उनकी तलाश कर रही है। उनके घरों पर छापे मार रही है। लेकिन परमवीर सिंह न तो मुंबई के अपने अपार्टमेंट में हैं और न ही अपने पैतृक शहर चंडीगढ़ में। उन्हें उसी पुलिस से जान को खतरा है, जिसका वे प्रमुख रह चुके हैं। शायद इसे ही कहते हैं, अर्श से फर्श पर आना। दरअसल, महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख पर 100 करोड़ रुपये की अवैध वसूली कराने का आरोप लगाने के बाद से परमवीर सिंह फरार चल रहे हैं। आशंका जताई जा रही थी कि वे जांच से बचने के लिए देश छोड़कर भाग गए हैं। लेकिन अब उनके वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वह देश में ही हैं और जांच में सहयोग करने के लिए तैयार हैं। अब इस मामले में नया मोड़ आ गया है। परमवीर सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट में उनके वकील ने बताया कि वह इसलिए छुपे हुए हैं, क्योंकि मुंबई पुलिस से उनकी जान को खतरा है। उन्होंने बताया कि वह सीबीआई या कोर्ट में पेश होने के लिए तैयार हैं। गिरफ्तारी पर लगी फिलहाल रोक इस खुलासे के बाद सुप्रीम कोर्ट ने परमवीर सिंह से जांच में सहयोग करने को कहा है। कोर्ट ने फिलहाल परमवीर सिंह की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है और उनसे पूरे मामले की जांच के दौरान सहयोग बरतने के निर्देश दिए गए हैं। कोर्ट में उनके वकील ने कहा कि परमवीर सिंह को पूरे मामले में फंसाया जा रहा है। उन्होंने जिन अधिकारियों को भ्रष्ट आचरण के लिए दंडित किया है, उन्हीं को शिकायतकर्ता बनाया गया है। अब तक उनके खिलाफ छह मुकदमे दर्ज हो चुके हैं।

सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस मामले में सीबीआई और महाराष्ट्र डीजीपी को नोटिस भी जारी किया गया है। कोर्ट अब इस मामले में छह दिसंबर को अगली सुनवाई करेगा। इससे पहले उनके वकील ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश पर सवाल उठाया जिसमें उन्हें केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) का दरवाजा खटखटाने का निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने 18 नवंबर को संरक्षण की मांग वाली सिंह की याचिका पर यह कहते हुए विचार करने से इनकार कर दिया था कि जब तक वह अपने ठिकाने का खुलासा नहीं कर देते तब तक न तो उनकी याचिका पर सुनवाई होगी और न ही राहत दी जा सकती है। मुंबई की एक अदालत ने 17 नवंबर को उन्हें भगोड़ा घोषित करने के लिए मुंबई पुलिस की अर्जी को स्वीकार कर लिया था।
इसी साल फरवरी में भारत के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी के घर के पास विस्फोटकों से भरी एक कार के मिलने से इस पूरे मामले की शुरुआत होती है। तब सवाल उठा, आखिर इसके पीछे कौन है। कुछ ही दिनों बाद कार के कथित मालिक का शव शहर के पास ही समंदर में मिला। पुलिस जांच में पता चला कि उनकी हत्या करके शव समुद्र में फेंका गया था। जब मृतक के एक परिचित पुलिसवाले को गिरफ्तार किया गया तो चीजें और भी जटिल हो गई। जांच अधिकारी मानते हैं कि गिरफ्तार किए गए मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच के सब-इंस्पेक्टर सचिन वाझे का अंबानी के घर के बाहर मिली विस्फोटकों से लदी कार और हत्या से संबंध था। मार्च में परमबीर सिंह को कमिश्नर पद से हटाकर होमगार्ड का प्रमुख बना दिया गया। राज्य के तत्कालीन गृहमंत्री अनिल देशमुख ने एक बयान में कहा था कि ये रूटीन तबादला नहीं है। मुंबई पुलिस कमिश्नर के कार्यालय में तैनात अधिकारियों ने कई गंभीर गलतियां की हैं। हालांकि ये कभी स्पष्ट नहीं किया कि ये गंभीर गलतियां क्या थी।


परमवीर सिंह ने मार्च में नए दफ्तर में कार्यभार संभाला। इसके तुरंत बाद ही उन्होंने सरकार के नाम एक पत्र लिखकर अपने विभागीय मंत्री अनिल देशमुख पर वसूली और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नाम लिखे पत्र में उन्होंने आरोप लगाया था कि देशमुख, सचिन वाझे की मदद से मुंबई शहर के बार संचालकों और होटल कारोबारियों से सख्त नियमों में ढील के बदले करोड़ों रुपए वसूल रहे हैं। हालांकि देशमुख ने सभी आरोपों का खंडन किया लेकिन अगले महीने यानी अप्रैल में उनसे इस्तीफा ले लिया गया। सीबीआई को इस पूरे मामले की जांच सौंपी गई। उन्हें पांच बार पूछताछ के लिए तलब किया गया। नवंबर में अनिल देशमुख को गिरफ्तार कर लिया गया। वे अभी भी जेल में हैं। जैसे-जैसे अनिल देशमुख पर शिकंजा कसता गया, वैसे-वैसे ही परमवीर सिंह की भी मुश्किलें बढ़ती गईं। उन पर और दो अन्य लोगों के खिलाफ रंगदारी सहित कई मामलों में केस दर्ज किया गया। रियल एस्टेट डेवलपर और होटल व्यवसायी बिमल अग्रवाल ने आरोप लगाया था कि आरोपियों ने दो बार और रेस्तरां पर छापेमारी नहीं करने के लिए उनसे नौ लाख रुपये की वसूली की। इन शिकायतकर्ता के अनुसार ये घटनाएं जनवरी 2020 और मार्च 2021 के बीच हुई थीं। अग्रवाल की शिकायत के बाद छह आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 384 और 385 दोनों जबरन वसूली से संबंधित और 34 समान मंशा के तहत मामला दर्ज किया गया था। परमवीर सिंह के खिलाफ ठाणे में भी वसूली का मामला दर्ज किया गया है। मामला दर्ज होने के बाद इनके खिलाफ वारंट जारी किया गया। वारंट जारी होने के बाद भी वह गैर हाजिर रहे। तत्पश्चात, मुंबई पुलिस ने मजिस्ट्रेट कोर्ट का रुख कर कोर्ट से आग्रह किया था कि गोरेगांव पुलिस द्वारा दायर रंगदारी के मामले में
आरोपी परमवीर सिंह को अपराधी घोषित किया जाए।

महाराष्ट्र सरकार ने एक रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में परमवीर के मामले की जांच के लिए एक पैनल का गठन किया है। परमवीर सिंह के खिलाफ अब रियल एस्टेट कारोबारियों, होटल मालिकों और बुकी की तरफ से चार आपराधिक मामले दर्ज करवाए गए हैं। इसकी भी जांच चल रही है। एनआईए भी करना चाहती है पूछताछ मुकेश अंबानी के घर के पास मिले विस्फोटक मामले में एनआईए की ओर से 9 हजार से अधिक पन्नों की एक चार्जशीट दायर की गई है। इस चार्जशीट के अनुसार सचिन वाझे के करतूतों की पूरी जानकारी परमवीर सिंह को थी। चार्जशीट के आरोपों की पुष्टि के लिए एनआईए एक बार परमीर सिंह से पूछताछ करना चाहती है। लेकिन परमवीर सिंह समन के बाद भी नहीं आए। बताया जा रहा है कि दो बार समन भेजने पर कोई रिसीव तक नहीं किया। कभी परमवीर सिंह से डरते थे माओवादी भी परमवीर ने अपने चार दशक के पुलिस करियर में माओवाद प्रभावित जिलों में माओवादियों और शहरी क्षेत्रों में गैंगस्टरों से मुकाबला किया।

1990 के दशक में उन्होंने अंडरवर्ल्ड का खात्मा करने वाली मुंबई पुलिस की टीम के साथ काम किया। उस दौर में भारत का सबसे अमीर शहर मुंबई अपराध और माफिया से बुरी तरह प्रभावित था। वो ‘एनकाउंटर स्पेशलिस्ट’ कहे जाने वाले पुलिसवालों के साथ काम करके सुर्खियों में आए। वो पुलिसवालों कारोबारियों और फिल्म निर्माताओं से फिरौती मांगने वाले गैंगस्टरों का एनकाउंटर में सफाया किया करते थे। मुंबई के अपराध पर किताब लिखने वाले पत्रकार एस हुसैन जैदी ने लिखा कि परमवीर सिंह को एक दूसरे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के साथ मिलकर मुंबई से अंडरवर्ल्ड का सफाया करने का काम दिया गया था और दोनों ने मिलकर इस काम को करने के लिए तीन ‘एलीट एनकाउंटर स्क्वाड’ का गठन किया था।

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