[gtranslate]
Country

दर्द उकेरती कविताएं

पुस्तक-समीक्षा

कविता करना अक्सर मुश्किल भरा काम होता है लेकिन इस मुश्किल भरे काम को सहज बनाने का काम किया है पेशे से पत्रकार भक्त दर्शन पांडेय ने। उन्होंने अपने पहले कविता संग्रह ‘मां तुम कब सुस्ताती’ से साहित्य जगत में दस्तक दी है। कविता का आवरण शीर्षक आकर्षक व प्रभावी प्रतीत होता है तो इसमें संकलित कविताएं भी अपना हस्तक्षेप करती प्रतीत होती हैं। यूं तो कविता के दो पक्ष होते हैं- भाव पक्ष व कला पक्ष। कल्पना, रस, विचार व संदेश भाव पक्ष में तो छंद अलंकार, भाषा शैली कला पक्ष में आती हैं। यही तय करता है कि कवि अपनी कविताओं के साथ कितना न्याय कर पाया है? जैसा कि कविता के बारे में कहा गया है कि कविता क्या/खाने कमाने की चीज है/ना बाबा ना/कविता भाषा में/आदमी होने की तमीज है। कहा यह भी जाता है कि भाषा की सृजनात्मकता का चरम उत्कर्ष कविता में ही दिखाई देता है। इसमें से कुछ पक्षों पर भक्त दर्शन खरे उतरते दिखाई देते हैं तो कुछ पर अभी काम करने की जरूरत महसूस होती है।

पत्रकार भक्त दर्शन पांडेय के इस पहले कविता संग्रह की मुख्य कविता ‘मां तुम कब सुस्ताती’ मां के अनथक यानी बिना थके कर्म करने की प्रेरणा व मां को कभी आराम न मिल पाने की पीड़ा को बेहतर तरीके से व्यक्त करती है। कवि ने जब भी देखा मां को काम करते ही पाया। कवि मां की इस कर्म यात्रा को त्याग व प्रेरणा के रूप में भी देखता है तो वहीं उसे आराम न मिल पाने की पीड़ा कवि की व्यथा बन जाती है। कविताएं लिखी ही इसीलिए जाती हैं ताकि अव्यवस्थाओं, संवेदनहीनताओं, कुरीतियों पर प्रहार किया जा सके। इस मायने में इस संकलन की पहली कविता ‘अराजक’ को बेहतर कविता कहा जा सकता है। जिसमें कवि भारतीय सेना में भर्ती होने होने के लिए आए युवाओं पर बरसने वाली लाठियों व उन्हें अराजक जैसे शब्द विशेषणों से अंलकृत करने की प्रशासन की संवेदनहीनता पर तो प्रहार करती ही है वहीं इन युवाओं के उस दर्द को भी उकेरने का प्रयास करती है जिसमें उसकी बेरोजगारी, माता-पिता, बहन की जिम्मेदारी समाहित है जो उसे देश-रक्षा के साथ ही सरहद पर जाने के लिए तैयार करती है। ‘कहां छुपाऊं बेटियां’ शीर्षक तो खुद ही भू्रण हत्या जैसे अभिशाप पर बहुत कुछ कह जाती है।

‘सरूली’ कविता में पहाड़ की उस महिला का दर्द समाया है जो घास-चारे के लिए खतरनाक पहाड़ियों पर चढ़ती हैं व वहां से फिसलकर मौत के आगोश में समां जाती है। ‘तितली’ कहानी बालिकाओं पर होने वाले अत्याचारों का बखूबी वर्णन करती है। ‘मैं कर्ण बनना चाहता हूं’ में कवि कुछ करने और न कर पाने की व्यथा को प्रकट में सफल रहे हैं। गांवों को केन्द्र में रखकर रची गई दो कविताएं ‘कभी मैं गांव था’ व ‘एक गांव’ समृद्ध गांव की रौनक व उसकी वीरानगी के दोनों पक्षों को उकेरने में सफल रही है। कहते हैं कि अच्छी कविता वह है जो हमें खुश करने के बजाय व्यथित करे। कवि के इस पहले संकलन को पढ़ने के बाद मन व्यथित होता है जो इस बात का प्रमाण है कि कवि सही रास्ते की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं। वरिष्ठ कवि चन्द्रकांत देवताले के शब्दों में जाएं तो हर कविता का अपना उद्गम होता है। भूगोल व इतिहास होता है। हर कविता की जीवन में एक जगह होती है। भक्तदर्शन भी जमीन से कविताओं को किताब में उतारने में सफल दिखते हैं। इस संकलन को पढ़ने पर महसूस होता है कि पत्रकारिता के दौरान उपजे अनुभव भी कविताओं का मूल स्रोत बने हैं।

इस कविता संकलन में छोटी-बड़ी 47 कविताएं दर्ज हैं। विषयों का समायोजन बेहतर है। जहां तक भाषा व शिल्प की बात है तो यहां युवा कवि को और मेहनत करने की जरूरत महसूस होती है। इस कविता संकलन की भूमिका चर्चित कवि व शिक्षक महेश पुनेठा ने लिखी है। वह इस युवा कवि की कविताओं पर लिखते हैं कि कवि की मूल चिंता मनुष्यता में आ रही गिरावट है। वह उपेक्षित-शोषित व उत्पीड़ित के पक्ष में खड़े रहते हैं व कमजोर की आवाज बनते हैं। यूं तो कवि बनने के लिए आपको बहुत कुछ दांव में लगाना पड़ता है। अब यहां सवाल यह कि युवा कवि कितना कुछ दांव में लगाने के लिए तैयार है।

मां तुम कब सुस्ताती
(कविता संग्रह)
लेखक : भक्त दर्शन पांडेय
मूल्य : 100 रुपया
मुद्रण : हिमाल प्रेस, पिथौरागढ़

You may also like

MERA DDDD DDD DD