भारतीय संविधान में दलितों को अत्याचार से बचाने के लिए कानून तो बहुत हैं, लेकिन इसके बावजूद दलितों के साथ अत्याचार कम होने का नाम नहीं ले रहा है। इस तरह के मामलों को लेकर कर्नाटक लगातार सुर्खियों में रहा है। अब दलित महिला मजदूरों के साथ मारपीट का मामला सामने आया है।आरोप है कि दो लोगों ने महिला मजदूरों को एक कमरे में 15 दिन बंधक बनाकर उनसे मारपीट की है। इस दौरान एक गर्भवती महिला का गर्भपात होने की भी खबर सामने आया है। दोनों आरोपियों को सत्ताधारी पार्टी भाजपा का समर्थन बताया जा रहा है। हालांकि भाजपा ने इस मामले से खुद को अलग कर लिया है। लेकिन आरोपियों की गिरफ्तारी के मामले में अभी तक पुलिस के खाली हाथों को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं।
दरअसल, सबसे पहले जगदीश गौड़ा ने कथित तौर पर पड़ोसियों से झगड़े के सिलसिले में एक महिला मजदूर मंजू को पीटा था। इसके बाद अन्य महिला कर्मचारियों ने काम करने से मना कर दिया। इस पर जगदीश गौड़ा ने कहा कि वो उससे उधार लिए पैसे वापस करने के बाद ही काम छोड़ सकते हैं। जब मजदूरों ने पैसे नहीं लौटाए तो गौड़ा ने उन्हें कथित रूप से अपने घर के एक कमरे में बंद कर दिया। एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस दौरान एक गर्भवती महिला का गर्भपात सामना करना पड़ा है। इस पर पुलिस का कहना है कि,8 अक्टूबर को कुछ लोग बेलहोन्नुर पुलिस थाने आए थे। उन्होंने दावा किया कि जगदीश गौड़ा उनके परिजनों को टॉर्चर कर रहा है, लेकिन शाम को उन्होंने अपनी शिकायत वापस ले ली थी। उसके अगले दिन यानी 9 अक्टूबर को गर्भवती महिला को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया और चिकमगलूर में पुलिस चीफ के पास नई शिकायत दर्ज कराई गई। तब इस मामले में एफआईआर दर्ज की गई। दर्ज एफआईआर में जगदीश गौड़ा और उसके बेटे तिलक गौड़ा के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है। दोनों आरोपी फिलहाल फरार हैं। इस मामले की जांच कर रहे अफसर का कहना है जब वे कॉफी प्लांटेशन पहुंचे तो वहां उन्हें एक कमरे में कई लोग बंद मिले। उस जगह चार परिवारों के 16 लोगों को 15 दिनों से कैद करके रखा गया था। ये सभी मजदूर पिछड़ी जातियों के थे। पुलिस ने वहां से सभी लोगों को बाहर निकाला। पुलिस को यहां कैद अर्पिता नाम की महिला ने बताया कि जगदीश ने उसे एक दिन के लिए कमरे में बंद रखा। उनके साथ मारपीट की और गालियां दीं। आरोपी जगदीश ने उसका फोन भी छीन लिया है। उसने उसके पति और बेटी को भी मारा है। इतना ही नहीं, अर्पिता दो महीने की गर्भवती थी, मारपीट के चलते उनका मिसकैरेज भी हो गया।
इस घटना ने एक बार फिर देश में श्रमिकों, खासकर दलित श्रमिकों की जमीनी सच्चाई सबके सामने रख दी है। मजबूरन मजदूरी और उधारी के नाम पर सालों से जारी मज़दूरों का शोषण-उत्पीड़न किसी से छुपा नहीं है, फिर भी इस मामले की लगातार अनदेखी हो रही है। कपड़े बनाने की फैक्टरियां हों या ईंट बनाने की भट्ठी, कई पेशे हैं जिनमें लोग अपने अपने घरों से दूर जा कर काम करते हैं और फिर वहां कम वेतन और अमानवीय हालात में फंसे रह जाते हैं। इन श्रमिकों को जानबूझ कर गुलाम बनाने के लिए इन्हें काम के बदले कम मजदूरी दी जाती है। जिसमें इनका गुजर बसर न हो सके, बाद में यही मालिक इन्हें ऊंची ब्याज दर पर कर्ज देकर अपना गुलाम बना लेते हैं। ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2016 में भारत में करीब 80 लाख लोग आधुनिक गुलामी में जी रहे थे। हालांकि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि असली संख्या इससे कहीं ज्यादा है ।भारतीय समाज में हाशिए पर खड़े दलित समुदाय की हालत इस मामले में सबसे ज्यादा खराब है। भेदभाव की वजह से दलितों को आर्थिक और सामाजिक उत्थान के अवसरों से वंचित रखा जाता है और उनका शोषण सबसे ज्यादा होता है। साल 2019 में आई यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम की एक रिपोर्ट के मुताबिक,’भारत में हर तीसरा दलित गरीब है।’
पिछले कुछ सालो को देखे तो देश में दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। दलित सशक्तिकरण की तमाम दावों और वादों के बीच दलितों का उत्पीड़न सभी जगह जारी है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, साल 2020 में देश भर में दलितों के खिलाफ उत्पीड़न के 50,291 मामले दर्ज हुए थे। साल 2021 में ये मामले बढ़ कर 50,900 हो गए। कर्नाटक के मामले में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो रिपोर्ट कहती है कि कर्नाटक में 2020 में दलितों के खिलाफ अपराध के 1,504 मामले दर्ज किए गए थे। राज्य सरकार के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2021 में यह संख्या बढ़कर 2,327 हो गई थी।अब देखना यह है कि, कर्नाटक में मौजूदा भाजपा सरकार सहित अन्य राजनीतिक दल अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में दलितों के सामाजिक,आर्थिक विकास के लिए क्या नया वादा करती हैं। वैसे भी देश के ज्यादातर दलित तमाम वादों के बाद भी हाशिये पर है।
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