कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की संसद सदस्यता समाप्त तो अदालती आदेश से शुरू हुई है लेकिन उसका खामियाजा आने वाले दिनों में भाजपा को विपक्षी एकजुटता चलते उठाना पड़ सकता है। सूरत की एक अदालत द्वारा मानहानि के एक मुकदमे में दो बरस की कैद सुनाए जाने के बाद लोकसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता रद्द करने का आदेश जारी कर दिया। कांग्रेस अदालती फैसले पर टिप्पणी करने से बचते हुए भाजपा पर अलोकतांत्रिक तरीकों के जरिए विपक्ष पर हमलावर होने का आरोप लगा रही है। बीते 9 बरसों के दौरान ऐसा पहली बार हुआ है कि कांग्रेस संग दूरी बरतने वाले दल भी अब उसके साथ खड़े होने लगे हैं। राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द किए जाने का विरोध करने वालों में तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी, ‘आप’ नेता अरविंद केजरीवाल और सपा प्रमुख अखिलेश यादव का शामिल होना अगले साल प्रस्तावित आम चुनाव में भाजपा के लिए बड़े खतरे की घंटी समान है
तेईस मार्च, 2023 की सुबह कांग्रेस नेतृत्व के लिए खासी भारी थी। गुजरात की आर्थिक राजधानी कहलाए जाने वाले शहर सूरत की एक अदालत इस दिन पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और केरल की वायनाड संसदीय सीट से सांसद राहुल गांधी के खिलाफ दर्ज मानहानि के एक मामले में फैसला सुनाने वाली थी। यह मुकदमा गुजरात के पूर्व मंत्री और वर्तमान में विधायक पुर्णेश मोदी द्वारा 2019 में दर्ज कराया गया था। 13 अप्रैल 2019 को राहुल ने एक जनसभा में ललित मोदी, नीरव मोदी और मेहुल चौकसे का उल्लेख करते हुए यह प्रश्न पूछा था कि देश लूट भागने वाले अधिकतर मोदी ही क्यों होते हैं? 16 अप्रैल, 2019 को पुर्णेश मोदी ने इसे समस्त मोदी नामधारकों का अपमान बताते हुए मानहानि का मुकदमा दर्ज करा दिया था। यह मुकदमा सुस्त रफ्तार से अदालत में घिसट रहा था। 7 फरवरी 2022 को पुर्णेश मोदी ने गुजरात उच्च न्यायालय से कुछ समय के लिए इस मुकदमे की सुनवाई रोक दिए जाने की गुहार लगाई जो स्वीकार कर ली गई। लगभग एक बरस तक सूरत की अदालत में कोई भी सुनवाई होईकोर्ट के आदेश चलते रुकी रही। 16 फरवरी 2023 को शिकायतकर्ता पुर्णेश मोदी हाईकोर्ट में लगाई गई स्टे याचिका वापस ले लेते हैं जिसके चलते 21 फरवरी 2023 से यह मुकदमा फिर से सूरत की अदालत में शुरू हो जाता है। 17 मार्च को सुनवाई पूरी होने के बाद अदालत ने 23 मार्च को 165 पृष्ठ लंबे फैसले में राहुल गांधी को दोषी करार देते हुए दो वर्ष की सजा सुनाई। इस सजा की घोषणा के ठीक एक दिन बाद ही लोकसभा सचिवालय ने राहुल गांधी की संसद सदस्यता को समाप्त किए जाने की अधिसूचना जारी कर दी। इतना ही नहीं मात्र दो दिन बाद 26 मार्च को उन्हें बतौर सांसद आवंटित घर भी खली करने का नोटिस थमा दिया गया।
कांग्रेस इस पूरे प्रकरण को गौतम अडानी समूह पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद राहुल गांधी द्वारा प्रधानमंत्री मोदी और अडानी के रिश्तों का मुद्दा उठाए जाने और अडानी समूह पर लगे आरोपों की जांच संयुक्त संसदीय समिति से कराए जाने की मांग से जोड़ रही है। भाजपा के लिए संकट यह कि कांग्रेस की इस मांग को ऐसे विपक्षी दल भी समर्थन देने लगे हैं जो कांग्रेस से अब तक दूरी बरतते रहे हैं। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चद्रशेखर राव भले ही भाजपा के घोर विरोध हों, कांग्रेस नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन से ये सभी नेता दूरी बरतते आए हैं। इस बार लेकिन राहुल की संसद सदस्यता समाप्त होने के बाद सभी कांग्रेस और राहुल के पक्ष में खुलकर सामने आ गए हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, समाजवादी पार्टी, डीएमके, झारखंड मुक्ति मोर्चा और शिवसेना (उद्धव ठाकरे) भी इस मुद्दे पर कांग्रेस संग आ खड़े हुए हैं। ये सभी विपक्षी दल मोदी-शाह के नेतृत्व वाली भाजपा और केंद्र सरकार पर केंद्रीय जांच एजेंसियों के जरिए विपक्षी नेताओं को डराने और उनके खिलाफ नाना प्रकार की जांचें कर उन्हें प्रताड़ित करने का आरोप लंबे अर्से से लगाते रहे हैं। कांग्रेस समेत चौदह विपक्षी दल सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग के दुरुपयोग का मामला लेकर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका पहले ही दायर कर चुके हैं। कांग्रेस अब राहुल के मुद्दे को जनता के सामने इस तरह प्रस्तुत करने में जुट गई है जिससे राहुल की छवि एक ऐसे स्पष्टवादी और ईमानदार नेता की बन सके जिसे भाजपा झूठे आरोपों में घेर प्रताड़ित कर रही है। राहुल की यह शाहीदाना छवि आने वाले तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों और अगले वर्ष होने जा रहे आम चुनाव में भुनाने के लिए कांग्रेस कमर कसती नजर भी आने लगी है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2019 के आम चुनाव के दौरान भाजपा राहुल की ‘पप्पू’ छवि बना पाने में सफल रही थी। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने लेकिन इस छवि को ध्वस्त करने का काम कर दिया है। इन विश्लेषकों की मानें तो ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान उमड़े जनसमूह ने भाजपा भीतर खासी बेचैनी पैदा करने का काम किया है। अभी राहुल के इस नए अवतार की काट तलाशने की रणनीति बन भी नहीं पाई थी कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट सामने आ गई। इस रिपोर्ट को आधार बनाते हुए विपक्षी दलों ने संसद में सीधे प्रधानमंत्री और गौतम अडानी को लेकर भारी हंगामा खड़ा कर भाजपा को बैकफुट पर लाने का काम किया। केंद्र सरकार का मामले को संयुक्त संसदीय समिति के हवाले करने के लिए हामी न भरना विपक्षी दलों के इन आरोपों को बल देता है कि अडानी मामले में सरकार का दामन पाक-साफ नहीं है। राहुल गांधी का सदन से सड़क तक खुलकर इस मुद्दे को उठा भाजपा और केंद्र सरकार को खुलेआम चुनौति देना भी इन दोनों के लिए बड़ा सिरदर्द बन चुका है। ऐसे में अदालत द्वारा राहुल को सजा दिए जाने और उनकी सदस्यता रद्द होने के बाद भाजपा की रणनीति राहुल को पिछड़ा वर्ग विरोधी बताने की है। यहां यह समझा जाना जरूरी है कि बीते दो लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा पिछड़ी जातियों के भरपूर समर्थन चलते ही केंद्र की सत्ता में काबिज हो पाई है। 2009 में 22 प्रतिशत ओबीसी मतदाता भाजपा के पक्ष में थे जो 2019 में बढ़कर 44 प्रतिशत पहुंच गया था। आने वाले कुछ महीनों में जिन राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं। उनमें से कर्नाटक में 50 प्रतिशत, तेलंगाना में 50 प्रतिशत तो राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 40 प्रतिशत के करीब ओबीसी मतदाता है। ऐसे में राहुल को पिछड़ा वर्ग विरोधी बता भाजपा ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के असर को कम करने की रणनीति पर काम कर रही है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा अपनी इस रणनीति को कितनी सफलता से लागू कर पाती है। यदि राहुल गांधी ऊपरी अदालत से इस निर्णय को स्थगित करा पाने और संसद की सीट वापस पाने में विफल होते हैं तो इसका लाभ भी कांग्रेस को ही मिलता नजर आ रहा है। ऐसा इसलिए कि सजा स्थगित न होने की अवस्था में वे 2024 का चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। ऐसे में विपक्षी दलों जिन्हें कांग्रेस से कम राहुल से ज्यादा परेशानी रहती आई है, कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा बनने के लिए तैयार हो जाएंगे जिसका सीधा नुकसान भाजपा को होगा।