लोकसभा में बहुमत होने के बजाए भाजपा को राज्यसभा में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। पार्टी के रणनीतिकारों ने अड़चनों को दूर करने के लिए जो आॅपरेशन लोट्स चलाया अब उसे सफलता मिल चुकी है। आगामी दिनों में वह राज्यसभा में आसानी से विधेयक पारित करवा लेगी
भाजपा के आॅपरेशन लोटस को लगातार कामयाबी मिलती जा रही है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के राज्यसभा चुनाव के जो नतीजे आए हैं, उससे राज्य सभा में भाजपा के सांसदों की संख्या 92 हो गई है, जबकि कांग्रेस के सांसदों की संख्या 38 पर सिमट गई है। निश्चित तौर पर यह भाजपा के लिए बड़ी उपलब्धि है। अब राज्यसभा का गणित भी पूरी तरह बदल गया है।
वर्ष 2019 में ऐतिहासिक बहुमत के साथ दोबारा केंद्र की सत्ता में लौटने के बाद भी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को अपना एजेंडा लागू करने में कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। लोकसभा में प्रचंड बहुमत के बल पर भाजपा अपने किसी भी विधेयक या प्रस्ताव को आसानी से पास करवा लेती थी, लेकिन राज्यसभा में उसे दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। भाजपा को राज्यसभा में हर दिन बीजू जनता दल, तेलगुदेशम पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस, तेलंगाना राष्ट्र समिति के साथ-साथ कई छोटे दलों के सांसदों को साधना पड़ता था। हाल ही में किसानों से जुड़े विधेयक को पारित करवाते समय राज्यसभा में क्या हुआ था, यह सबने देखा।
2019 में सत्ता में पुनर्वापसी के कुछ ही समय बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को इसका आभास हो गया था कि राज्यसभा में पार्टी को अपनी सीटें लगातार बढ़ानी चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि विरोधी दलों के सांसदों की संख्या घटे और भाजपा अपने एनडीए के सहयोगी दलों के साथ-साथ बहुमत के करीब पहुंचे।
इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने राज्यसभा का अंकगणित बदलने के मकसद से एक अभियान चलाया जिसको ‘आॅपेरशन लोटसश् का नाम दिया गया। इस अभियान के तहत 2019 में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को इस काम पर लगाया गया कि वो विरोधी दलों के सांसदों को अपनी राज्यसभा सदस्यता और पार्टी से इस्तीफा देने के लिए मनाएं। ऐसे सांसदों का इस्तीफा स्वीकार हो जाने के बाद भाजपा उन्हें उसी सीट पर अपने उम्मीदवार के तौर पर लड़ाती गई और जिता कर राज्यसभा भेजती गई। 16 जुलाई 2019 को समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर ने राज्यसभा और सपा से इस्तीफा दे दिया। इसके अगले महीने अगस्त 2019 में विरोधी दलों के 3 और राज्यसभा सांसदों (सपा के सुरेंद्र सिंह नागर, संजय सेठ और कांग्रेस के भुवनेश्वर कालिता) ने इस्तीफा दे दिया। बीजेपी के अभियान की कामयाबी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिन-जिन सांसदों ने इस्तीफा दिया था वो अपनी-अपनी पार्टी के आलाकमान के काफी करीबी माने जाते थे। लेकिन भाजपा ने उन्हें ऐसा आॅफर दिया कि वो मना नहीं कर सके और आज ये सभी भाजपा सांसद के तौर पर सदन की शोभा बढ़ा रहे हैं।
भाजपा के आॅपेरशन लोटस को लगातार कामयाबी मिलती गई और नतीजा यह है कि अब राज्यसभा का गणित पूरी तरह से बदल गया है। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी नंबर के मामले में राज्यसभा में अब तक के सबसे ऊंचे शिखर पर पहुंच गई है जबकि इसके विपरीत देश पर सबसे लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस, अपने इतिहास के सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है। अंकों के फेरबदल का यह करिश्मा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की राज्यसभा की 11 सीटों पर आए चुनावी नतीजों से संभव हो पाया है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की राज्यसभा की 11 सीटों के आए नतीजों की वजह से ही भाजपा राज्यसभा में अब तक के शिखर पर पहुंच गई है, जबकि इसके विपरीत कांग्रेस की सीटें इतिहास में सबसे कम हो गई हैं।
उत्तर प्रदेश का चुनावी नतीजा
उत्तर प्रदेश से भाजपा को 8 राज्यसभा सीटों पर जीत हासिल हुई है। वहीं समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का एक-एक उम्मीदवार इस चुनाव में जीता है। बीजेपी की तरफ से केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह, यूपी के पूर्व डीजीपी बृजलाल, नीरज शेखर, हरिद्वार दूबे, गीता शाक्य, बीएल वर्मा और सीमा द्विवेदी निर्विरोध राज्यसभा के लिए चुने गए हैं। जबकि समाजवादी पार्टी की तरफ से पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव और बसपा की तरफ से रामजी गौतम निर्विरोध राज्यसभा सांसद चुने गए हैं। इन सभी नवनिर्वाचित सांसदों का कार्यकाल 25 नवंबर 2020 से 24 नवंबर 2026 तक रहेगा। राज्यसभा में उत्तर प्रदेश के कोटे से 31 सीटें आती हैं। इनमें से अब सबसे ज्यादा 22 सीटें बीजेपी की हो गई हैं। सपा के पास प्रदेश से पांच, बसपा के पास तीन और कांग्रेस के पास महज एक सीट ही रह गई है। राज्यसभा में कुल सीटें 245 हैं। इनमें से 12 सदस्यों का मनोनयन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। सदन में अब एनडीए की कुल सीटें 112 हो गई है। सदन की तीन सीटें खाली हैं। एक-एक सीट केरल, उत्तर प्रदेश और बिहार से भरी जानी है। इस तरह सदन में एनडीए बहुमत से मात्र 10 सीट दूर रह गया है, लेकिन नामांकित और निर्दलीय सांसदों के समर्थन से वह बहुमत के आंकड़े के बहुत करीब पहुंच जाएगा। 2014 में मोदी सरकार के गठन के समय राज्यसभा में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के महज 65 सांसद थे, जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के 102 सांसद।
अन्य दलों का बाहर से समर्थन
पीएम मोदी के दूसरे कार्यकाल में उच्च सदन में बहुमत न होने के बावजूद कश्मीर से अनुच्छेद-370 के खात्मे समेत अन्य विधेयकों को पारित कराने में सत्तारूढ़ गठबंधन को कोई मुश्किल नहीं हुई। उसे अन्नाद्रमुक के नौ, वाईएसआर कांग्रेस के छह, बीजू जनता दल के नौ और तेलंगाना राष्ट्र समिति के सात सांसदों का समर्थन मुद्दों के आधार पर मिलता रहता है। हालांकि इस दौरान शिवसेना और अकाली दल के गठबंधन से निकलने से एनडीए के छह सांसद कम हो गए।दो तिहाई बहुमत के नजदीक इस तरह संसद के शीत सत्र के दौरान मोदी सरकार को राज्यसभा में करीब 150 सांसदों का समर्थन होगा। ऐसे में वह दो तिहाई बहुमत 164 सांसद के बहुत करीब होगी। तब वह संविधान संशोधन विधेयकों को भी लाने पर विचारकर सकती है।