यूपीपीसीएल का महाघोटाला
जी हां! कुछ ऐसा ही दुर्भाग्य है यूपीपीसीएल का। तत्कालीन सरकार ने यूपीपीसीएल की कमान जिस आईएएस अधिकारी के हाथों सौंपी थी उसी अधिकारी पर अरबों के पीएफ घोटाले को अंजाम देने वालों को संरक्षण देने का आरोप है। आरोप पुख्ता थे लिहाजा सीबीआई ने अब कई वर्षों बाद इस अधिकारी को अपने शिकंजे में कसा है। सीबीआई ने अब तत्कालीन सीएमडी और बाद में प्रमुख सचिव (ऊर्जा) के पद पर रहे संजय अग्रवाल से पूछताछ करने की तैयारी कर ली है। उम्मीद जतायी जा रही है कि यदि सीबीआई संजय अग्रवाल का मुंह खुलवाने में कामयाब हो गयी तो निश्चित तौर पर तत्कालीन सरकार के कई नामचीन अधिकारियों के साथ ही तत्कालीन मुख्यमंत्री और तत्कालीन ऊर्जा मंत्री पर भी गाज गिर सकती है।
बताते चलें जिन दिनों 22 अरब के पीएफ घोटाले को अंजाम दिया गया, उस वक्त सीएमडी के पद पर विराजमान रहे संजय अग्रवाल निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर खासे चर्चित थे। इन पर आरोप है कि इन्होंने सीएमडी के पद पर रहते हुए अपने अधिनस्थों द्वारा अंजाम दिए गए भ्रष्टाचार को मूक समर्थन दिया।
ज्ञात हो उस दौरान यूपीपीसीएल के एमडी रहे एपी मिश्रा भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर खासे चर्चित थे। इन पर तमाम सुबूतों के साथ आरोप लगते रहे लेकिन तत्कालीन अखिलेश सरकार के मौखिक निर्देश पर श्री अग्रवाल तत्कालीन सरकार के चहेते अफसरों द्वारा अंजाम दिए गए भ्रष्टाचार को नजरअंदाज करते रहे। निगम के दूसरे अफसर यह बात अच्छी तरह से जानते थे कि जिस दिन सूबे की सरकार बदली उसी दिन से इन कथित भ्रष्टों की मुश्किलें शुरू हो जायेंगी। सीबीआई की सक्रियता बढ़ने के बाद से मौजूदा समय में कुछ ऐसी ही स्थिति नजर आने लगी है।
मौजूदा स्थिति यह है कि जहां एक ओर जांच एजेंसी सीबीआई ने श्री अग्रवाल के खिलाफ कार्रवाई किए जाने के संकेत दे दिए हैं वहीं दूसरी ओर संजय अग्रवाल अपनी गर्दन बचाने के लिए भाजपा के कुछ बडे़ नेताओं के इर्द-गिर्द चक्कर लगा रहे हैं लेकिन मुख्यमंत्री के तल्ख मिजाज को देखते हुए फिलहाल भाजपा के बडे़ नेताओं ने भी हाथ खडे़ कर दिए हैं। संजय अग्रवाल को भरोसा दिलाने वाले भाजपा के एक वरिष्ठ नेता सुनील बंसल की दाल भी अब गलती नजर नहीं आ रही। बताते चलें कि भाजपा के इसी बडे़ नेता ने लगभग एक वर्ष पूर्व ईओडब्ल्यू की जांच से श्री अग्रवाल को बाहर निकाल लिया था।
वैसे तो तत्कालीन अखिलेश सरकार के कार्यकाल से ही वरिष्ठ आईएएस अधिकारी संजय अग्रवाल के खिलाफ कार्रवाई की मांग होने लगी थी। यहां तक कि ऊर्जा विभाग के तमाम कर्मचारी संगठनों ने भी श्री अग्रवाल के खिलाफ कार्रवाई किए जाने की मांग तत्कालीन अखिलेश सरकार के कार्यकाल में की। चूंकि उस वक्त तत्कालीन मुख्यमंत्री के बेहद करीबी समझे जाने वाले एपी मिश्रा का सिक्का चलता था लिहाजा अरबों के पीएफ घोटाले पर पर्दा पड़ा रहा।
सूबे की सत्ता बदली तो नयी सरकार का मिजाज आसानी से समझा जा सकता था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सत्ता पर काबिज होते ही तत्कालीन सरकारों के कार्यकाल में कथित भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का संकेत दिया। फाइलें भी तैयार हुई और एक मेज से दूसरी मेज पर तेजी से बढ़ने लगी। इन्हीं फाइलों में एक फाइल थी यूपीपीसीएल में पीएफ घोटाले की। फाइल में मौजूद दस्तावेज इस बात की तस्दीक कर रहे थे कि अरबांे के इस खेल में यूपीपीसीएल के पूर्व एमडी एपी मिश्रा के साथ ही तत्कालीन सीएमडी और तत्पश्चात प्रमुख सचिव (ऊर्जा) संजय अग्रवाल का भी हाथ है। उस वक्त ईओडब्ल्यू से लेकर सीबीआई तक ने इन दोनों अधिकारियों के खिलाफ सख्ती बरतने की इजाजत सरकार से मांगी थी। सरकार ने इजाजत दी और एपी मिश्रा को शिकंजे में ले लिया गया लेकिन इस खेल में बड़ी भूमिका निभाने वाले संजय अग्रवाल को बचाने की कोशिशें होती रहीं। जिन दिनों संजय अग्रवाल के खिलाफ कार्रवाई के संकेत मिले थे उन दिनों भाजपा के सुनील बंसल का पार्टी में सिक्का चलता था। सुनील बंसल की पार्टी में बाॅसगिरी के कारण ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कई बार कड़ी नाराजगी जता चुके थे। उन्होंने तो इस्तीफे के पेशकश तक कर दी थी। मामला आगे बढ़ता, इससे पहले ही हाई कमान ने योगी आदित्यनाथ की नाराजगी को देखते हुए सुनील बंसल के पंर कतरने शुरू कर दिए। सख्त हिदायत दी गयी कि मुख्यमंत्री के कामों में अड़चने पैदा करने की इजाजत उन्हें नहीं दी जा सकती। इसी के बाद से यूपीपीसीएल में अरबों के पीएफ घोटाले की फाइल एक बार फिर से गति पकड़ने लगी।
वर्ष 2019 के नवम्बर माह में ही पूर्व सीएमडी और प्रमुख सचिव रहे संजय अग्रवाल के खिलाफ सख्त कार्रवाई के संकेत मिलने लगे थे। आनन-फानन में पीएफ घोटाले में कथित रूप से शामिल यूपीपीसीएल के पूर्व सीएमडी संजय अग्रवाल समेत अन्य तीन अफसरों से पूछताछ करने पर सहमति बनी जो इस महाघोटाले में शामिल थे। ईओडब्ल्यू के एक अधिकारी के मुताबिक तीनों अधिकारियों को बयान देने के लिए नोटिस भेजा गया। ईओडब्ल्यू ने संजय अग्रवाल से बयान लेने के बाद इशारों-इशारों में बता दिया था कि भविष्य में श्री अग्रवाल की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। ऐसा इसलिए कि संजय अग्रवाल से बयान लेने के बाद तमाम ऐसी जानकारियां मिलीं जो इस बात की तस्दीक कर रही थीं कि संजय अग्रवाल के साथ ही तमाम अन्य अधिकारी अरबों के इस खेल में शामिल हैं। इतना ही नहीं तत्कालीन सरकार के विभागीय मंत्री की मिलीभगत के साथ ही तत्कालीन मुख्यमंत्री की मिलीभगत की तरफ भी इशारा किया जाने लगा। बताते चलें कि जिस समय डीएचएफएल में पीएफ की रकम जमा कराने की प्रक्रिया चल रही थी, उस समय संजय अग्रवाल सीएमडी के पद पर थे लिहाजा इस आशंका से इनकार नही किया जा सकता है कि इस महाघोटाले की जानकारी तत्कालीन सीएमडी को नहीं रही हो। जानकारी के बावजूद संजय अग्रवाल चुप्पी साधे रहे। अब सीबीआई ने श्री अग्रवाल की चुप्पी तोड़ने के लिए कमर कस ली है।
हालांकि वरिष्ठ आईएएस अधिकारी संजय अग्रवाल भाजपा में मौजूद अपने आकाओं की शरण में लेकिन हाल-फिलहाल उनके बचने के रास्ते नजर नहीं आ रहे। बताया जा रहा है कि यूपी भाजपा के एक बड़े नेता ने सिफारिश भी की है लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के तेवर कथित भ्रष्ट अधिकारी के खिलाफ सख्त बने हुए हैं।
फिलहाल इस महाघोटाले को लेकर यूपीपीसीएल के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों में भी खलबली देखी जा रही है। विभागीय सूत्रों की मानें तो यदि संजय अग्रवाल में सीबीआई जांच के दौरान दबाव में आकर मुंह खोला तो इस महाघोटाले में वे अधिकारी से लेकर नेता भी फंसेंगे जो योगी सरकार के कार्यकाल में मुख्यमंत्री की गुडबुक में शामिल हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री भी संदेह के दायरे में
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की संलिप्तता पर भी संदेह किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि यदि संजय अग्रवाल ने सीबीआई के समक्ष जुबान खोली तो निश्चित तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी शिकंजे में कसे जा सकते हैं।