- प्रियंका यादव, प्रशिक्षु
कलर ब्लाइंडनेस रोग से ग्रसित छात्रों को बड़ी राहत देते हुए उच्चतम न्यायालय ने फिल्म एंड टेलिविजन ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट को निर्देश दिया है कि ऐसे छात्रों को संस्थान में प्रवेश देने से नहीं रोका जा सकता है
भारतीय फिल्म एवं टेलिविजन संस्थान अब कलर ब्लाइंड लोगों को फिल्म निर्माण से जुड़े पाठ्यक्रम में हिस्सा लेने से नहीं रोकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संस्थान में प्रवेश पाने की कोशिश कर रहे कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित किसी व्यक्ति के साथ कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में कलर ब्लाइंडनेस के शिकार हुए आशुतोष ने 2017 में एक याचिका दाखिल की थी जिस पर सुनवाई कर सुप्रीम कोर्ट ने पुणे के प्रतिष्ठित फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) को निर्देश दिया है कि वह अपने सभी कोर्स कलर ब्लाइंडनेस वाले लोगों के लिए खोले। ऐसे मामलों में अधिक समावेशी और प्रगतिशील दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। अन्य फिल्म और टेलीविजन संस्थानों को भी कलर ब्लाइंड छात्रों के लिए अपने दरवाजे खोलने चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फिल्म निर्माण एक कला है। अगर कलर ब्लाइंडनेस के चलते किसी को कुछ समस्या आती है, तो वह दूसरे व्यक्ति से सहयोग ले सकता है। वर्णांध लोगों को पूरी तरह अयोग्य नहीं कहा जा सकता। हालांकि कोर्ट ने एफटीआईआई को अनुमति दी है कि वह याचिकाकर्ता आशुतोष कुमार को दाखिला देने में अपनी आपत्ति पर हलफनामा दाखिल कर सकता है। गौरतलब है कि याचिकाकर्ता आशुतोष ने याचिका दाखिल कर कहा था कि 2015 में फिल्म एडिटिंग कोर्स के लिए मेरा चयन हुआ था, लेकिन बाद में कलर ब्लाइंडनेस के चलते दाखिला नहीं दिया गया। याचिका में कहा गया है कि भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफटीटीआई) अपने बारह में से छह पाठ्यक्रमों में कलर ब्लाइंड लोगों को प्रवेश नहीं देता, यह भेदभाव है। याचिका में हॉलीवुड के प्रख्यात निर्माता-निर्देशक क्रिस्टोफर नोलान का भी उदाहरण दिया गया है। नोलान भी कलर ब्लाइंड हैं, लेकिन उन्होंने कई शानदार फिल्में बनाई हैं।
गौरतलब है कि भारतीय फिल्म एवं टेलिविजन संस्थान, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन एक स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य करता है। यह संस्थान सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के अंतर्गत रजिस्टर्ड है। साथ ही यह सिनेमा और टेलीविजन विद्यालयों के अंतरराष्ट्रीय संपर्क केंद्र (सीआईएलआईसीटी) का सदस्य है। इस संस्थान की स्थापना सन 1960 में पुणे के प्रभात स्टूडियो परिसर में हुई थी। जिसमें एकि्ंटग, डायरेक्शन, डायलाग और स्क्रीनप्ले राइटिंग, म्यूजिक कंपोजिशन, फिल्म मेकिंग एंड एडिटिंग से जुड़े पाठ्यक्रम होते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसी प्रतिष्ठित संस्थान (एफटीआईआई) को निर्देश दिया है कि संस्थान बिना किसी भेदभाव के अपनी सभी कोर्सेस में रंगहीनता समस्या से ग्रसित होने वाले छात्रों को भी दाखिला दे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा फिल्म निर्माण और संपादन कला का एक रूप है। ऐसे मामले में संस्थाओं द्वारा अधिक समावेशी और प्रगतिशील दृष्टिकोण को अपनाया जाना चाहिए। रंगहीनता से ग्रसित छात्रों को दाखिला देने की अनुमति के आदेश से संस्थान की स्वतंत्रता खत्म नहीं होगी।
आशुतोष की याचिका पर विचार करते हुए कोर्ट द्वारा एक विशेष पैनल का गठन किया गया जिसमें नेत्र विशेषज्ञ, फिल्मकार समेत कई क्षेत्रों के एक्सपर्ट शामिल थे।
पैनल की रिपोर्ट
अपनी रिपोर्ट में एक्सपर्ट पैनल ने कई चीजों पर गौर किया, जिनमें वो मॉडल्स भी शामिल थे जो रंगहीनता से ग्रसित उम्मीदवारों के दाखिले में बाधा बन सकते हैं। उन्होंने ऐसे माडयूल्स के महत्व, उनकी प्रोफेशनल भूमिका पर विचार किया। जांच करने के बाद पाया गया कि पेशेवर फिल्म संपादक की भूमिका में कलर ग्रेडिंग-मॉड्यूल का कोई महत्व नहीं था। कलर ब्लाइंड उम्मीदवारों के दाखिले पर रोक लगाने से उनके रचनात्मक प्रतिभा की बलि चढ़ा सकती है एवं कला का विकास रुक सकता है। पैनल ने कहा कि शैक्षिक और पेशेवर जीवन में किसी भी रुकावट को एक सहायक की मदद से पार किया जा सकता है। आशुतोष के अनुरोध पर गौर करने के बाद पैनल सहमत हो गई कि एफटीआईआई को उसे अगले शैक्षणिक सत्र में दाखिला देने को कहा जाये। आशुतोष कुमार के एडवोकेट गोसाल्वेज ने सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश का हवाला देते हुए तर्क दिया कि कोर्ट ने संविधान के तहत अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए एक कलर ब्लाइंड छात्र को एमबीबीएस में दाखिला दिलाया था। पैनल रिपोर्ट के बावजूद संस्थान ने आशुतोष की याचिका का विरोध किया है जिसे देखते हुए कोर्ट ने उसे लिखित में अपना जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है।
क्या है कलर-ब्लाइंडनेस
रंगबोध की अक्षमता को कलर-ब्लाइंडनेस कहते हैं। इस समस्या से ग्रसित लोग साफ-साफ देख पाते हैं, उन्हें रंग भी दिखाई देते हैं। लेकिन कुछ रंगों मे वो रंगों की पहचान नहीं कर पाते और यह समस्या जन्म से ही नहीं बल्कि उसके बाद भी हो सकती है। जब व्यक्ति सामान्य रूप से रंगों को नहीं देख पाता तब वह कलर ब्लाइंडनेस समस्या से ग्रसित होता है।