सामान्यतः आम तौर पर जब भी हम कैदियों के बारे में सुनते हैं, तो हमारे सामने जेल की एक तस्वीर बन जाती है जहाँ कैदियों को जेल की कोठरी में बंद करके रखा जाता है। क्यूंकि शायद हम ऐसी जेलों के बारे में नहीं जानते जहाँ कैदियों को रोजगार के अवसर भी प्रदान किये जाते हैं इस प्रकार की जेल को ‘खुली जेल’ कहा जाता है। ऐसा ही एक जेल तमिलनाडु के शिवगंगा में भी स्थित है जहाँ लगभग 50 कैदियों को रखा गया है और इन्हें यहां सिर्फ खेती करने के लिए लाया गया है।
अमर उजाला में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार जेल के डीआइजी पलानी का कहना है कि कैदियों का चयन जेल में उनके व्यवहार को देखते हुए किया गया है। ये सभी कैदी अब ऑर्गेनिक फार्मिंग से लेकर पशुपालन तक सीख रहे हैं। साथ ही उन्होंने इस बात की जानकारी भी दी है कि कैदी जैविक तरीके से गन्ना, नारियल के पेड़, अमरूद के पेड़ और सब्जियां आदि उगाने का काम करते हैं। इसके अलावा गायों, बकरियों और मुर्गियों की देखभाल भी करते हैं। यही नहीं कचरे के माध्यम से प्राकृतिक खाद भी बनाते हैं। डीआइजी का कहना है कि इस प्रकार की जेलों की वजह से कैदियों को समाज से जुड़ने में मदद मिलेगी। क्यूंकि यहाँ कैदियों को उनकी मेहनत के आधार पर वेतन दिया जाता है।
क्या है खुली जेल
खुली जेल से तात्पर्य ऐसी जेल व्यवस्था से है, जहां कैदियों को दिन के समय काम पर जाने दिया जाता है और रात होते ही वे लौट आते हैं। इस तरह की जेलों में दीवारें, सलाखें और ताले नहीं होते हैं। यहां तक की सुरक्षा व्यवस्था भी कम होती है। इस प्रकार के जेल के कैदी पूरा दिन स्वतंत्र रूप से गहूम कर जेल प्रशाशन द्वारा दिए गए काम को पूरा करते हैं और केवल रात में ही उन्हें जेल की सलाखों के पीछे भेजा जाता है।
खुली जेल का इतिहास
अठारहवीं शताब्दी के दौरान दो जेल सुधारकों, जॉन हॉवर्ड और जेरेमी बेन्थम ने पारंपरिक सजा के प्रति विरोध जाहिर किया था। साथ ही यह विचार भी व्यक्त किया कि कैदियों के पुनर्वास और अपराध को रोकने के लिए संस्थानों का निर्माण किया जा सकता है। अठारहवीं शताब्दी के अंत तक कई संस्थानों ने जॉन हॉवर्ड के विचारों पर गौर किया। हालाँकि इन प्रयोगों का कैदियों पर सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा। इसके बाद कई बार कैदियों के लिए इस प्रकार के संस्थानों को बनाने का प्रयास किया गया। लेकिन कैदी सुधार के विचार के पुनरुद्धार के बावजूद, सुधार और पुनर्वास कार्यक्रम उन लोगों की अपेक्षाओं को पूरा करने में सफल नहीं हो पा रहे थे जो जेल के कैदियों के लिए अनुरूप उपचार की प्रणाली विकसित करने की उम्मीद करते थे। लेकिन अत्यधिक प्रयास के बाद, वर्ष 1891 में स्विट्जरलैंड पहली खुली जेल का निर्माण करने में सफल रहा, उसके बाद वर्ष 1916 में संयुक्त राज्य अमेरिका में इस प्रकार की जेल का निर्माण किया गया , वर्ष 1930 में यूनाइटेड किंगडम और वर्ष 1950 में नीदरलैंड ने खुली जेल का निर्माण किया । इन खुली जेलों के आधार पर उन कैदियों को जिनका व्यवहार अच्छा है उन्हें रोजगार और मुआवजा देने का नियम निर्धारित किया गया।
भारत में पहली खुली जेल का निर्माण वर्ष 1905 में बॉम्बे प्रेसीडेंसी में स्थापित की गई थी। लेकिन कई कारणों की वजह से इसे वर्ष 1910 में बंद कर दिया गया । साल 1953 में एक बार फिर चंद्रप्रभा नदी पर बांध के निर्माण के लिए उत्तर प्रदेश राज्य ने वाराणसी मे पहली खुली जेल की शुरुआत की। इससे प्रेरित होकर कई अलग-अलग राज्यों ने भी खुली जेलों का निर्माण किया। इसी का परिणाम था की साल 1996 में भारत के 12 से अधिक राज्यों में 24 खुली जेल बन चुकी थी। इन खुली जेलों में कैदियों की सीमा 100 से 1 हजार तक है। इनमें से कुछ जेलें केवल कृषि क्षेत्र में लोगों को रोजगार देती हैं, जबकि अन्य कृषि और उद्योग दोनों में लोगों को रोजगार देती हैं।