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यूपी में ‘योगी बनाम प्रियंका’ ही बेड़ा पार करेगी कांग्रेस का

मंथन-चिंतन के दौर से गुजर रही देश की ग्रैंड ओल्ड पार्टी आने वाले दिनों में ‘नई ऊर्जा-नई दिशा’ के साथ मैदान में उतरने जा रही है। पार्टी आलाकमान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे के सहारे चल रही भाजपा को टक्कर देने के लिए कांग्रेस की ओवलहॉलिंग का ढांचा तैयार कर लिया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का मसला लगभग सुलझने के साथ ही राजनीतिक दृष्टि से देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में संगठन को मजबूत बनाने के लिए पार्टी महासचिव को सारे अधिकार दिए जाने पर भी सहमति बनने की खबर है।

पार्टी सूत्रों की मानें तो 2021 में होने जा रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से प्रियंका गांधी को दूर रखा जाएगा ताकि वे पूरा समय उत्तर प्रदेश में अस्त-व्यस्त पड़े संगठन को मजबूत करने में लगा सकें। सूत्रों का दावा है कि यदि प्रियंका की चली तो 2022 के चुनाव कांग्रेस अपने दम पर लड़ेगी। उनका इशारा सपा-बसपा संग किसी भी प्रकार के तालमेल से स्पष्ट इंकार करता है। टीम प्रियंका का मानना है कि सपा-बसपा के साथ किसी भी प्रकार का गठजोड़ पार्टी के लिए इसलिए फायदे का सौदा नहीं बन पाता है क्योंकि इन दोनों ही दलों का कोर वोट बैंक कांग्रेस विरोधी मानसिकता के चलते गठबंधन होने के बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी को ट्रांसफर नहीं होता है।

 

मंडल-कमंडल ने ध्वस्त किया था कांग्रेस का दुर्ग

आजादी के बाद पचास बरस तक उत्तर प्रदेश में एकक्षत्र राज करने वाली कांग्रेस को मंडल-कमंडल के उफान से सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। 1990 के बाद कभी राज्य में सत्ता में वापसी न कर सकी। पार्टी को अब लगने लगा है कि जाति आधारित राजनीति करने वाली बसपा और सपा का खेल समाप्ति की ओर है और धर्म आधारित राजनीति करने वाली भाजपा से भी जनता का मोहभंग होने की कगार पर है। ऐसे में कांग्रेस अपने पुराने वोट बैंक ‘दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण’ को वापस पाने की आस लगा रही है। 2014 में मोदी मैजिक के चलते भाजपा ने लोकसभा की 80 में से 71 सीटें जीत रिकॉर्ड कायम कर डाला था। 2017 में यही मैजिक दोबारा चला और भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ विधानसभा चुनाव जीत गई। इन दोनों चुनावों में पहली बार सपा-बसपा का न केवल कोर वोट बैंक खिसका, बल्कि भाजपा से दूरी रखने वाला मुस्लिम मतदाता भी इन दोनों दलों से दूर जाता नजर आया। कांग्रेस सपा-बसपा के प्रति उनके कोर वोट बैंक में आई इस दरार को अब अपनी तरफ करने का प्रयास करने में जुट गई है।

 

पस्त माया-अखिलेश, प्रियंका अकेले मोर्चे पर

योगी आदित्यनाथ सरकार बड़े धूमधाम, गाजे-बाजे के साथ यूपी में सत्ताशीन तो हुई लेकिन मुख्यमंत्री की ‘एकला चलो’ नीति के चलते न केवल प्रदेश, बल्कि भाजपा संगठन में भी असंतोष पनपा है। जनता भी योगीराज में त्राहि-त्राहि करती नजर आ रही है। कोरोना के चलते हुए देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान उत्तर प्रदेश में श्रमिक, दलित, मुस्लिम एवं अन्य पिछड़ा वर्ग सबसे ज्यादा त्रासदी का शिकार हुआ है।

सीएम के खिलाफ चले आंदोलन के प्रति उत्तर प्रदेश सरकार का रवैया, हाथरस में दलित लड़की के साथ गैंगरेप और हत्या एवं लवजेहाद के खिलाफ नया कानून भाजपा को 23014 और 2017 के चुनावों में वोट दे चुके एक बड़े वर्ग में नाराजगी पनपा चुका है। यही वह वर्ग है जिसे प्रियंका अपनी तरफ आकर्षित करने में जुटी हैं। जहां अखिलेश-माया अपनी राजनीति ट्विटर के जरिए महज खानापूर्ति करने में जुटे दिखाई पड़ते हैं, वहीं प्रियंका गांधी ने सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर मोर्चा खोल दिया है। योगीराज में सपा-बसपा से कहीं ज्यादा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां होना, उन पर मुकदमे दर्ज होना प्रियंका की सक्रियता के चलते संभव हुआ है।

 

प्रियंका को घोषित करना होगा सीएम फेस

कांग्रेस यदि सही में अपनी खोई जमीन उत्तर प्रदेश में वापस लाना-पाना चाहती है तो सबसे पहले उसे स्पष्ट तौर पर प्रियंका को योगी के बरस्क एक चेहरा बनाकर उतारना पड़ेगा। आज की तारीख में प्रियंका को लेकर खुद कांग्रेसियों में उहापोह की स्थिति बनी हुई है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू वर्तमान परिस्थितियों में कहीं से भी योगी आदित्यनाथ के खिलाफ एक सशक्त चेहरा नहीं बन सकते हैं। कांग्रेस नेतृत्व को स्वयं को और पार्टी को इस उहापोह से निजात दिलानी सबसे बड़ी जरूरत है। कांग्रेस को भय है कि यदि प्रियंका अपनी मुहिम में फेल होती हैं तो ‘कांग्रेस का ब्राह्मास्त्र’ चूक जाएगा। 1993 से 2017 तक लगभग तीस विधानसभा सीटें जीते वाली कांग्रेस के पास 2017 में मात्र सात सीटें आईं। उसे भय प्रियंका की असफलता से है। लेकिन यदि प्रियंका को वह सीधे योगी के सामने खड़ा नहीं करती है तो पार्टी का कोई भविष्य उत्तर प्रदेश में दिखता नहीं।



योगी बनाम प्रियंका यदि होता है तो न केवल कांग्रेस का ओल्ड वोट बैंक पार्टी की तरफ आ सकता है, बल्कि स्वयं भाजपा पूरी लड़ाई को योगी-प्रियंका करने में जुट सकती है। ऐसा करके यह माहौल भाजपा रच सकती है कि उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा अब खत्म हैं और लड़ाई योगी बनाम प्रियंका है। भाजपा की यह रणनीति भी कांग्रेस की तरफ उस वोट बैंक को ला सकती है जो भाजपा से त्रस्त है और जिसका सपा-बसपा से मोह टूट चुका है।

लेकिन इस खोई जमीन को वापस पाने के लिए स्वयं प्रियंका को अपनी कार्यशैली और रणनीति में भारी बदलाव करना पड़ेगा। उन्हें एक विशेष गुट के घेरे से बाहर निकल ऐसे सभी कांग्रेसियों के बीच खुद जाना होगा जिनकी पहुंच अपनी नेता से न हो पाने के चलते कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में राह में बड़ी अड़चन बन चुका है।

 

प्रियंका तक पहुंच न होना पार्टी के लिए घातक हो रहा है

उत्तर प्रदेश कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता अपनी नेता की सक्रियता के चलते उत्साहित तो हैं लेकिन उन तक अपनी बात न रख पाने के चलते खासे नाराज-परेशान भी हैं। प्रियंका की कोर टीम में उन जनाधार विहीन नेताओं की भरमार है जिन्हें सोशल मीडिया एक्सपर्ट तो कहा जा सकता है, लेकिन प्रदेश के सामाजिक ताने-बाने से उनका कोई सरोकार नहीं है।

उत्तर प्रदेश कांग्रेस के पुराने चावलों को भारी नाराजगी है कि प्रियंका गांधी उनसे ज्यादा भरोसा अपने निजी सचिव संदीप सिंह पर करती हैं। कभी माओवादी संगठन सीपीआई (एमएल) से जुड़े रहे संदीप सिंह नक्लसवादी आंदोलन से जुड़े छात्र संगठन ‘आयसा’ में रहे हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के वे अध्यक्ष, ‘आयसा’ के उम्मीदवार रहते जीते थे। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के नेताओं को सबसे ज्यादा नाराजगी इन्हीं संदीप सिंह के चलते हैं। ऐसे नेताओं का मानना है कि संदीप सिंह अपनी राजनीति चमकाने के चलते प्रियंका तक उनकी पहुंच नहीं होने देते हैं।

प्रियंका गांधी को ऐसे नेताओं की नाराजगी दूर करनी होगी ताकि 2022 में कांग्रेस भाजपा से त्रस्त जनता के सामने एक मजबूत विकल्प बन उभर सके।

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