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भारत के 62 फीसदी लोगों के पास ही है स्वच्छ ईंधन

देश का हर तीसरा भारतीय परिवार अभी भी खाना पकाने के लिए मुख्य रूप से सस्ते और प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन का इस्तेमाल करता है। इस तरह के ईंधन से न केवल घर के अंदर वायु प्रदूषण होता है बल्कि घर के अंदर रहने वाले लोगों के फेफड़ों को भी नुकसान पहुंचता है। यानी यह सांस की बीमारियों का प्रमुख कारण बन जाता है।
नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा जारी स्टेट ऑफ एनवायरनमेंट रिपोर्ट 2023 (एसओई इन फिगर्स 2023) में यह खुलासा हुआ है। एसओई इन फिगर्स 2023 रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 33.8 फीसदी लोग खाना पकाने के लिए लकड़ी, बुरादा, फसल अवशेषों का इस्तेमाल करते हैं, जबकि 62 फीसदी लोग एलपीजी का इस्तेमाल कर रहे हैं। 3.5 फीसदी लोग ऐसे हैं जो इन विकल्पों के अलावा उपले, सौर ऊर्जा और अन्य ईंधन का इस्तेमाल करते हैं और 0.7 फीसदी लोग ऐसे हैं जिनके पास खाना पकाने की कोई सुविधा नहीं है।
 एसओई की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 1999-2000 में 75.5 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों ने सस्ते और प्रदूषणकारी ईंधन का इस्तेमाल किया, 22.3 प्रतिशत शहरी परिवारों ने सस्ते और प्रदूषणकारी ईंधन का इस्तेमाल किया। हालांकि, 2020-21 में सस्ते और प्रदूषणकारी ईंधन के इस्तेमाल के मामले में ग्रामीण परिवारों की संख्या घटकर 46.6 प्रतिशत और शहरी परिवारों की संख्या 6.5 प्रतिशत रह गई है और 1999-2000 में, केवल 5.4 प्रतिशत ग्रामीण परिवार एलपीजी का उपयोग कर रहे थे, जबकि शहरी परिवारों की संख्या 44.2 प्रतिशत थी। दो दशक बाद, 49.4 प्रतिशत ग्रामीण परिवार और 89 प्रतिशत शहरी परिवार एलपीजी का उपयोग करते हैं।

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