वायु प्रदूषण वर्तमान में एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है। पिछले दो सालों से जहां एक ओर पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जंग लड़ रही है। वहीं दूसरी तरफ अब दुनियाभर में वायु प्रदूषण का संकट बढ़ता ही जा रहा है। दुनिया की करीब 99 प्रतिशत आबादी ऐसी हवा में सांस लेने को मजबूर है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। दुनिया की करीब 782 करोड़ आबादी ऐसी जहरीली हवा में जी रही है जो WHO द्वारा वायु प्रदूषण के तय स्तर मानकों से भी अधिक है। इस बीच वायु प्रदूषण को लेकर एक अध्ययन में पाया गया है कि भारत के बड़े 8 शहरों में वर्ष 2005 से 2018 के बीच एक लाख से अधिक असामयिक मौतें दर्ज की गई हैं।
ये शोध साइंस एडवांस्ड में प्रकाशित हुआ है। जिसके अनुसार, वर्ष 2005 से 2018 के बीच मुंबई, बेंगलुरू, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई, सूरत, पुणे और अहमदाबाद में वायु-प्रदूषण के कारण एक लाख से ज्यादा असामयिक मौतें दर्ज हुई हैं।
साइंस एडवांस में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, इस अवधि के दौरान प्रति एक लाख जनसंख्या पर हुई मृत्यु में सबसे अधिक वृद्धि बेंगलुरू, हैदराबाद, कोलकाता और पुणे में पाई गई। इन शहरों में यह क्रमशः 93.9, 96.4, 82.1 और 73.6 थी।
मुंबई, सूरत, चेन्नई और अहमदाबाद में एक लाख की आबादी के लिए वायु प्रदूषण के कारण समय से पहले होने वाली मौतों में वृद्धि क्रमशः 65.5, 58.4, 48 और 47.7 पाई गई।
अध्ययन के अनुसार, इन क्षेत्रों में पड़े 46 शहरों में से 40 में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का एक्सपोजर 1.5 से बढ़कर चार अंक हो गया, जबकि 46 शहरों में से 33 शहरों में पीएम 2.5 के संपर्क में वृद्धि हुई।
शोधकर्ताओं द्वारा अध्ययन में लिखा गया है कि इन वायु प्रदूषण का असर ट्रैफिक, कचरे के जलने, लकड़ी के कोयले और ईंधन की लकड़ी के व्यापक इस्तेमाल से तेजी से बढ़ा है।
इसके बाद उनकी टीम ने पीएम 2.5 के संपर्क में आने के कारण समय से पहले होने वाली मौतों की गणना के लिए ‘स्वास्थ्य जोखिम मूल्यांकन’ मॉडल की ओर रुख किया। उन्होंने अध्ययन में शामिल हर देश की उम्र विशेष से संबंधित मृत्यु-दर और शहरों की आबादी का आंकड़ा भी जुटाया।
अनुमान लगाया गया कि 2005 में कोलकाता में 39,200, अहमदाबाद में 10,500, सूरत में 5800, मुंबई में 30,400, पुणे में 7,400, बेंगलुरु में 9,500, चेन्नई में 11,200 और हैदराबाद में 9,900 असामयिक मौतें हुई होंगी।
टीम ने 2018 में कोलकाता में 54,000, अहमदाबाद में 18,400, सूरत में 15000, मुंबई में 48,300, पुणे में 15,500, बेंगलुरु में 21,000, चेन्नई में 20,800 और हैदराबाद में 23,700 असामयिक मौतों का निर्धारण किया।
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कुल मिलाकर पूरे देश में पीएम 2.5 के संपर्क में आने के कारण साल 2005 में 123,900 मौतें हुई थीं, जिनकी संख्या 2018 में बढ़कर 223,200 हो गई।
शोधकर्ताओं ने अध्ययन में कहा कि उष्णकटिबंधीय देश इसका खामियाजा भुगत रहे है और अब तक यह क्रम जारी है। इसके मुताबिक, महामारी के कारण बेरोजगारी और स्वास्थ्य और देखभाल से जुड़ी सेवाओं तक असमान पहुंच के कारण इतना जरूर है कि वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों को कुछ समय तक टाला जा सकता है।
महामारी ने उष्णकटिबंधीय देशों में स्वास्थ्य और देखभाल से जुड़ी खामियों को उजागर कर दिया है। अध्ययन का मानना है कि इन देशों को अपनी वायु गुणवत्ता को सुधारने के लिए तत्काल कड़ी नीतियां तैयार करने की जरूरत है, ताकि वे आगे और नुकसान से बच सकें।