उत्तर प्रदेश के 7 विधानसभा उपचुनाव में कल मतदान होना है। एक दिन पहले ही सभी राजनीतिक दलो का चुनाव प्रचार थम चुका हैं। सभी दलों को अपने उम्मीदवारों के जीतने का भरोसा है। लेकिन किस पार्टी के भरोसे को मतदाता कायम कर रख पाएंगे यह तो आने वाली 10 तारीख को ही पता चलेगा। फिलहाल हम अगर उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर विधानसभा उपचुनाव की बात करें तो यहां तीन मुस्लिम और तीन जाट प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं।
हालांकि बुलंदशहर विधानसभा सीट मुस्लिम बाहुल्य है। लेकिन कहा जाता है कि इस सीट पर जिस पार्टी के लिए मुस्लिमों के साथ दलित मिल जाते हैं तो उसी पार्टी की जीत तय है। इसी गणित पर बसपा यहां पूर्व में चुनाव जीत चुकी है। लेकिन मायावती के इस चुनावी गठजोड़ को इस बार भीम आर्मी के चंद्रशेखर रावण ने चुनौती दे दी है। फिलहाल बुलंदशहर में मायावती के खेल को रावण बिगड़ते नजर आ रहे हैं। बुलंदशहर में पूर्व विधायक भाजपा के थे। जिनकी मौत होने के बाद यह सीट खाली हो गई थी। इसके बाद कल हो रहे इस चुनाव में फिलहाल भाजपा का पलड़ा भारी होता दिख रहा है ।
पौने चार लाख से ज्यादा वोटरों वाली इस सीट पर जाट-मुस्लिम वोटों का दबदबा रहा है। यही वजह रही है कि अब तक हुए 17 चुनावों में से 7 बार इस सीट से मुस्लिम उम्मीद्वार विधायक चुने गये। वर्ष 2012 में हुए परिसीमन के बाद इसका समीकरण कुछ बदला है। अगौता विधानसभा को खत्म करके उसका कुछ इलाका इसमें जोड़ा गया। इससे जाट वोटरों की संख्या इस सीट पर पहले से ज्यादा हो गयी है।
याद रहे कि वर्ष 2017 से पहले पिछले 10 सालों से बसपा का इस सीट पर कब्जा था। लेकिन 2017 में भाजपा ने ये सीट छीन ली। 10 सालों के बाद उसे दोबारा जीत नसीब हुई थी। 1974 में जनसंघ ने भी ये सीट जीती थी। इस सीट पर कांग्रेस 4 बार, भाजपा 3 बार बसपा 2 बार और सपा 1 बार चुनाव जीत चुकी है।
बुलंदशहर सीट से भाजपा से उषा सिरोही, बसपा से हाजी यूनुस जोकि दिल्ली से सांसद का चुनाव लड़ चुके हैं। जबकि रालोद-सपा गठबंधन से प्रवीण कुमार तेवतिया है जोकि मथुरा के रहने वाले हैं। कांग्रेस से सुशील चौधरी और आजाद समाज पार्टी जोकि भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर रावण की पार्टी है से हाजी यामीन है। वहीं ओवेसी की पार्टी एआईएमआईएम से दिलशाद प्रत्याशी हैं।
वहीं तीन मुस्लिम प्रत्याशी के उतरने से मुस्लिम वोटों के बंटने का खतरा है। जिसका फायदा भी भाजपा को मिलेगा। यहां से भीम आर्मी और ओवेसी की पार्टी ने भी मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर भाजपा की राह आसान कर दी है। दरअसल, चंद्रशेखर रावण और ओवेसी की पार्टी ने यह मुस्लिम मतदाताओं में सेंध लगा दी हैं। दूसरी तरफ रही सही कसर मायावती ने राज्यसभा चुनाव में यह कहकर निकाल दी कि उनकी पार्टी भाजपा को सपोर्ट करेगी। मायावती के इस बयान ने मुस्लिमों में भ्रम की स्थिति पैदा कर दी। जिससे मुस्लिम मतदाता असमंजस की स्थिति में आ गया है। मायावती के इस बयान के बाद बसपा से छिटककर मुस्लिम मतदाता चंद्रशेखर रावण की आजाद समाज पार्टी ( भीम आर्मी ) की झोली में जा सकता है। हालांकि आज बसपा सुप्रीमों मायावती को अपनी गलती का अहसास हुआ है और उन्होंने डेमेज कंट्रोल करने की कोशिश करते हुए कहा कि उनकी पार्टी आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा के साथ कोई गठबंधन नही करेंगी ।
बसपा कैंडिडेट का हार की तरफ जाने का दूसरा कारण यह भी है कि बुलंदशहर में मुस्लिम मतदाताओं में गद्दी ( गाजी ) और कुरैशी आपस में बट गए हैं। बसपा के कैंडिडेट गद्दी है जबकि चंद्रशेखर रावण की पार्टी के उम्मीदवार कुरेशी है। बुलंदशहर सीट मुस्लिम बहुल है । जिनमें कुरेशी मतदाता गद्दी मतदाताओं से ज्यादा है।
वहीं दूसरी तरफ चंद्रशेखर रावण की पार्टी का यह पहला विधानसभा चुनाव है। जिसमें वह मजबूती से सामने आ रहे है। एक तरह से कहा जाए तो चंद्रशेखर रावण जितनी ज्यादा मेहनत अपने कैंडिडेट हाजी यामीन को जिताने के लिए कर रहे हैं, उतना ही नुकसान बसपा के प्रत्याशी हाजी युनुस को हो रहा है। इसका फायदा भाजपा उम्मीदवार ऊषा सिरोही को मिल रहा है । फिलहाल, स्थिति यह है कि भाजपा यहां जीत की दहलीज पर पहुंच चुकी है।
2017 में बुलंदशहर विधानसभा सीट से वीरेंद्र सिरोही जीते थे। उनके आकस्मिक निधन के बाद खाली हुई सीट पर भाजपा ने उनकी पत्नी उषा सिरोही को उतारा है। जिन्हें सहानुभूति वोट मिलेंगे। फिलहाल सभी कैंडिडेट्स में भाजपा मजबूत नजर आ रही है। जानकारों का कहना है कि 2017 में भाजपा के साथ ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्य वोट बैंक था। लगभग यही समीकरण अभी भी भाजपा के साथ है।
चंद्रशेखर रावण की हाल ही में बनाई गई आजाद समाज पार्टी ( भीम आर्मी ) यूपी में इस उपचुनाव में पहला चुनाव इसी सीट पर लड़ रही है। पार्टी ने यहां हाजी यामीन को उतारा है। हालांकि पहला चुनाव होने की वजह से चंद्रशेखर लगातार प्रचार कर रहे हैं। वह युवाओं को अपने साथ लाना चाह रहे हैं। जिसमें वह काफी हद तक सफल होते भी दिख रहे हैं। कहा जा रहा है कि बुलंदशहर में वह बसपा की जीतने की राह कठिन कर रहे हैं। मुस्लिम मतदाताओं के साथ ही दलित मतदाताओं का रुझान चंद्रशेखर रावण की पार्टी की तरफ बताया जा रहा है । जिससे मामला त्रिकोणीय हो गया है।
कांग्रेस बुलंदशहर में मुकाबले से बाहर नजर आ रही हैं। हालांकि पिछले दिनों राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने यहां आकर पार्टी प्रत्याशी के लिए वोट मांगे थे। जिससे पार्टी उम्मीदवार का प्रचार – प्रसार कर रहे उनके नेता जोश से भर गए । समाजवादी पार्टी यहां से पहले ही सरेंडर कर चुकी है। जिसके चलते ही समाजवादी पार्टी ने यह सीट अपने सहयोगी दल रालोद के खाते में डाल दी।
रालोद को यहां स्थानीय कैंडिडेट ही नही मिला। स्थानीय उम्मीदवार की बजाए मथुरा में चुनाव लड़ चुके कैंडिडेट प्रवीण कुमार तेवतिया को मैदान में उतारना पड़ा । अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो प्रत्याशी मथुरा में पहले ही हार चुका है वह बुलंदशहर में जिसे कोई नहीं जानता वहा क्या टक्कर दे पाएगा ? फिलहाल सबसे नीचे पायदान पर सपा और रालोद गठबंधन का प्रत्याशी प्रवीण कुमार तेवतिया नजर आ रहा है।
इस विधानसभा सीट पर कहा जाता है कि जो प्रत्याशी मुस्लिम और दलित गठजोड़ बनाने में सफल रहा वह जीत के करीब पहुंच गया। इसके चलते ही 2012 में हाजी अलीम ने यह सीट इसी गठजोड़ से जीत ली थी। लेकिन फिलहाल दिवंगत पूर्व विधायक हाजी अलीम के भाई हाजी यूनुस मुस्लिम और दलित गठजोड़ को मजबूती के साथ जोडने में सफल नहीं हो पाए । जिससे वह दूसरे नंबर पर दिख रहे हैं । हाजी यूनुस पूर्व में बसपा के टिकट पर दिल्ली के पूर्वी दिल्ली से लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं । जहां वह हार गए थे।
फिलहाल बुलंदशहर में तीन मुस्लिम और तीन जाटों के बीच बेहद रोमांचक मुकाबला हो गया है। गत दिनों प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस विधानसभा में चुनावी रैली कर मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित किया। इसी दौरान सबसे बड़ी बात यह रही कि समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता और पूर्व में यहां से (तब यह सीट अगौता विधानसभा में थी ) विधायक रहे किरण पाल सिंह भाजपा में शामिल हो गए । किरण पाल सिंह के भाजपा में शामिल होने से निश्चित तौर पर भाजपा प्रत्याशी उषा चौधरी को मजबूती मिली है।
प्रदेश के राज्य मंत्री ( स्वतंत्र प्रभार ) अशोक कटारिया को यहा का चुनाव प्रभारी बनाना भी भाजपा का प्लस प्वाइंट रहा। कटारिया का गुर्जर समाज से होने के चलते इस समाज के मतदाताओं का भी झुकाव भाजपा की तरह हुआ है। इसी के साथ ही भाजपा प्रत्याशी ऊषा सिरोही सहानुभूति वोटो हासिल करने में भी सफल होती दिख रही है। इसके बल पर वह बुलंदशहर सीट पर मजबूत स्थिति में आ गई है।
गौरतलब है कि इस सीट पर कुल 3 लाख 88 हज़ार मतदाता हैं। जिसमे लगभग 1 लाख 15 हजार मुस्लिम, 60 हज़ार दलित, जिनमें जाटव करीब 40 हज़ार हैं। जबकि 40 हज़ार जाट, 35 हजार ब्राह्मण, 20 हज़ार ठाकुर, 20 हज़ार वैश्य, 25 हज़ार लोधी राजपूत, 10 हज़ार सैनी एंव 8 हजार गुर्जर और बाकी अन्य जातियां हैं।