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आर्टिकल 370 पर क्या उमर अब्दुल्लाह और फारुख अब्दुल्लाह सरेंडर के मूड में हैं?

आर्टिकल 370 पर क्या उमर अब्दुल्लाह और फारुख अब्दुल्लाह सरेंडर के मूड में हैं?

एक नाम राजस्थान राजनीतिक संकट के बीच खुलकर सामने आया है और वह है उमर अब्दुल्लाह। अधिकतर लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि आखिर असल मामला क्या है। बार-बार उनका नाम राजस्थान की राजनीति में सामने क्यों आ रहा है। लेकिन इसी बीच एक और घटनाक्रम हुआ है। एक राष्ट्रीय दैनिक अखबार में नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्लाह ने एक आर्टिकल लिखा है जिसके बाद उनकी पार्टी दो फाड़ हो गई है। लेकिन विवाद बढ़ता देख उमर अब्दुल्लाह जम्मू-कश्मीर को वापस राज्य का दर्जा देने की मांग से पीछे हट गए हैं।

उन्होंने मंगलवार को एक ट्वीट किया और सफाई देते हुए कुछ यूं लिखा कि वे सिर्फ इतना चाहते थे कि जम्मू-कश्मीर राज्य का मुख्यमंत्री होने के तौर पर उमर केंद्र शासित राज्य जम्मू-कश्मीर के लिए विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्होंने आगे कहा कि इसके अलावा न वे कुछ अधिक कहना चाहते थे न कम। इसके बाद उन्होंने कहा कि बाहर के लोग हल्ला मचा रहे हैं कि उमर जम्मू-कश्मीर को राज्य बनाने की मांग कर रहे हैं।

दरअसल, उमर की ये सफाई तब आई है जब नेशनल कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता रुहुल्ला मेहदी ने मंगलवार को पार्टी के मुख्य प्रवक्ता पद से इस्तीफा दे दिया। रुहुल्ला मेहदी एक प्रभावशाली शिया नेता माने जाते हैं। उनका मध्य कश्मीर के बडगाम में खासा प्रभाव माना जाता है। मेहदी ने आरोप लगाया कि उमर पार्टी की मांग को भूल गए हैं और पार्टी के उद्देश्यों से भटक गए हैं। उन्होंने कहा कि राज्य का दर्जा बहाल करना न्यूनतम मांग है। यह आखिरी मांग होनी चाहिए। हमारी मांग जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जें का राज्य बहाल करने की है।

अब सवाल उठता है कि अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में लिखे अपने आर्टिकल में उमर ने कहा क्या है? उमर ने लिखा है कि जम्मू-कश्मीर को लेकर 5 अगस्त 2019 को जो बदलाव किया गया था वह राज्य की जनता पर थोपा गया फैसला था। अपने गिरफ्तारी को लेकर उन्होंने लिखा है कि उन्हें पहले हाउस अरेस्ट किया गया उसके बाद सरकारी गेस्ट हाउस में शिफ्ट कर दिया गया। उसके बाद केंद्र सरकार की तरफ से भेजे गए प्रतिनिधियों ने जनता द्वारा चुने हुए लोगों की जगह ले ली। राज्यसभा और लोकसभा ने एक दिन से भी कम वक्त में 70 साल का इतिहास बदल दिया। जम्मू कश्मीर की सम्प्रभुता के वादे खत्म हो गए। राज्य को तोड़ दिया गया।

उन्होंने अपने लेख में लिखा है कि जब नरेंद्र मोदी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने तभी से ये बातें होने लगी थीं कि भाजपा आर्टिकल 370 और 35-ए से जुड़े अपने चुनावी वादे पूरी करेगी। ऐसा करने के लिए उनके पास लोकसभा में पूर्ण बहुमत था। एयरक्राफ्ट्स के जरिए पैरा मिलिट्री के जवानों को भेजा गया। और पूरे राज्य में सेना की तैनात कर दी गई। राज्यपाल कहते रहे कि जम्मू-कश्मीर का स्पेशल स्टेटस से कोई छेड़छाड़ नहीं होगी जैसा है वैसा ही बना रहेगा। ये भी कहा गया कि अतिरिक्त जवानों की तैनाती अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर की जा रही है। उमर ने 5 अगस्त की घटना के कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी। उन्होंने लिखा है कि वो उस घटना को जल्द नहीं भूल पाएंगे। उन्होंने अपने लेख में ये भी माना है कि प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद भी वो अंदाजा नहीं लगा पाए कि अगले 72 घंटे में क्या होना वाला है।

उमर ने आगे लिखा है कि एक ही बार में सब कुछ बदल गया। जम्मू-कश्मीर और उसका विशेष दर्जा अलग नहीं किए जा सकते थे। यह तो वो शर्त थी जिसके आधार पर हम भारत का हिस्सा बने थे। लेकिन, सच्चाई भी बदली नहीं जा सकती। कई दशक से यह भाजपा के एजेंडे में था। अब तक केंद्र शासित प्रदेशों को राज्य बनाया जाता रहा था। यह पहली बार है जब किसी राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील कर दिया गया।

उसके बाद उन्होंने लिखा है कि आज तक मैं यह समझ नहीं पाया कि इसकी जरूरत क्या थी। सिवाए इसके कि कश्मीरियों को सजा दी जाए, उन्हें परेशान किया जाए। अगर बौद्धों के लिए लद्दाख को अलग राज्य बनाने की मांग को पूरा करना था तो जम्मू के लोग भी काफी पहले से यह मांग कर रहे हैं। अगर मजहब के आधार पर मांग पूरी की जानी थी तो लेह और करगिल को नजरअंदाज क्यों किया गया करगिल के लोगों ने तो जम्मू और कश्मीर के विभाजन का विरोध किया है।

अब आते हैं धारा 370 और आर्टिकल 35-ए पर। उमर ने लिखा है कि आर्टिकल 370 हटाने के समर्थन में कई तर्क दिए गए। कहा गया कि इसकी वजह से अलगाववाद पैदा हुआ। इसकी वजह से आतंकवाद और हिंसा बढ़ी। और ये भी कहा गया कि आर्टिकल 370 के हटने के बाद से आतंकवाद का खात्मा हो जाएगा। इसके लेकर उमर ने अपने लेख में तर्क दिया है कि अगर आर्टिकल 370 हटने से आतंकवाद खत्म होने वाला था तो फिर एक साल बाद भी सरकार सुप्रीम कोर्ट में ये क्यों कहती है कि जम्मू-कश्मीर में हिंसा बढ़ रही है। उनका तर्क है कि गरीबी खत्म होने के दावे भी किए गए। ये कहा जाता है कि आर्टिकल 370 की वजह से यहां इन्वेस्टमेंट नहीं आता था। ये ध्यान रहना चाहिए कि आतंकवाद शुरू होने से पहले यहां जम्मू-कश्मीर देश के सबसे विकासशील प्रदेशों में से एक था। टूरिज्म के वजह से यहां इन्वेस्टमेंट्स अपने-आप आते थे। आर्टिकल हटने के बाद से अब तक इस बारे में कुछ नहीं हुआ।

हालांकि, उन्होंने आगे लिखा है कि नेशनल कांफ्रेंस आर्टिकल 370 हटाए जाने के विरोध में थी और है। और उनकी पार्टी उसे स्वीकार नहीं करेगी। इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। कानूनी लड़ाई जारी रहेगी। लोकतंत्र में हमारा भरोसा है। अब आते विवाद के दूसरे हिस्से पर। अपने लेख में उमर आखिर में लिखा है- “जहां तक मेरा सवाल तो है तो मेरा रुख बिल्कुल साफ है। जब तक जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है, तब तक मैं कोई विधानसभा चुनाव नहीं लडूंगा। मैं छह साल इस विधानसभा का नेता रहा। अब इसकी ताकत छीन ली गई है। मैं अब यहां नहीं रहूंगा। मेरे ज्यादातर वरिष्ठ सहयोगी अपने घरों में कैद हैं। इसलिए हम आगे की सियासी रणनीति नहीं बना पाए हैं। मैं पार्टी को मजबूत करूंगा। लोगों का सहयोग लेकर नाइंसाफी के खिलाफ जंग लड़ूंगा।”

उनके लेख पर जब लोगों ने सवाल उठाया तो उमर ने पत्रकारों पर आरोप लगाया कि उनके आर्टिकल को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है। उन्होंने ट्वीट किया, “मैं इससे असहमत हूं, यह कहने में कोई समस्या नहीं है। मैंने कहा और किया लेकिन जब आप कोई कुछ खोज करते हैं और मेरी जुबान से कोई शब्द लेकर मेरे ऊपर ही अटैक करते हैं तो यह मेरे बारे में तुम्हारे बारे में उससे कहीं ज्यादा है। आप सब आलसी पत्रकारों और टिप्पणीकारों से मैं पूछता हूं कि कृपया मुझे दिखाएं कि मैंने कश्मीर को पूर्ण राज्य बनाए रखने की मांग कब की?”

यह तो एक पहलू है। लेकिन दूसरा पहलू ये है कि उमर अब्दुल्लाह के लेख के बाद उनके पिता के साथ उनका एक इंटरव्यू रविवार 26 जुलाई, 2020 को टेलिकास्ट हुआ था। अब आते हैं कि उन्होंने क्या कहा। नेशनल कांफ्रेंस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्रियों फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला ने ऑल इंडिया रेडियो के श्रीनगर स्टेशन के करंट अफेयर्स प्रोग्राम शहरबीन में कहा कि वह और उनकी पार्टी गुपकर घोषणा के लिए प्रतिबद्ध है।

उमर का लेख और उनके पिता के साथ ये इंटरव्यू ऐसे समय पर आया है जब लेफ्टिनेंट गवर्नर गिरीश चंद्र मुर्मू ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में संकेत दिया है कि भारत का चुनाव आयोग डिलिमिटेशन का काम पूरा करने से पहले ही जम्मू और कश्मीर में विधानसभा चुनाव करा सकते हैं। अपने इंटरव्यू में लेफ्टिनेंट गवर्नर ने कहा- “डिलिमिटेशन कमिटी बना दी गई है, अब डिलिमिटेशन शुरू होगा। विधानसभा चुनाव इसके साथ हो सकते हैं, या इसके बाद। तो, यह काम साथ-साथ हो रहा है। मुझे लगता है कि यह वैक्यूम जल्द खत्म होगा।” लेफ्टिनेंट गवर्नर ने यह बात तक कही जब उनसे पूछा गया था कि जम्मू और कश्मीर में राजनैतिक प्रक्रिया और नई विधानसभा का काम कब शुरू होगा। उन्होंने ये भी कहा, “चुनाव आयोग को फैसला करना होगा कि क्या वह पहले के डिलिमिटेशन के हिसाब से काम करेगा या नए डिलिमिटेशन के मुताबिक। मुझे लगता है कि इस साल के आखिर तक कोई न कोई प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।”

राज्यपाल के इस बयान के बाद से उमर अब्दुल्लाह और उनके पिता के इंटरव्यू और लेख आने के बाद घाटी में हलचल तेज हो गई है। दरअसल, कश्मीर में दोनों के इंटरव्यू को लेकर एक अटलबाजी शुरू हो गई है कि कहीं कोई डील तो नहीं हुई है? लोगों को शक हो रहा है कि आखिर वो क्यों राजनीतिक लड़ाई की बात कर रहे हैं और पॉलिटिक्स में नेशनल कांफ्रेंस खुद को और अधिक झोंकने की बात कर रही है। लोग सोच रहे हैं कि आखिर इसके पीछे की वजह क्या हो सकती है? जब दोनों बाप-बेटे की रिहाई हुई थी तब लोगों को उम्मीद थी कि बाहर आने के बाद अनुच्छेद 370 और 35ए के खिलाफ सड़कों पर उतरेंगे पर ऐसा नहीं हुआ। जब कई बार इसको लेकर पूछा गया तो फारूख अब्दुल्लाह के तरफ से कहा गया कि अब समय नहीं रहा कि केंद्र के फैसले के विरोध में सड़क पर उतर कर प्रदर्शन किए जाएं। इसके बाद लोगों का शक और गहरा गया कि कहीं बाप-बेटे की रिहाई किसी डिल के तहत तो नहीं हुई है।

ऐसा नहीं कि ये बात आज इंटरव्यू के बाद कही जा रही है। कुछ दिनों पहले जब राजस्थान में सचिन पायलट बनाम अशोक गहलोत विवाद शुरू हुआ था तब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अंग्रेजी वेबसाइट द हिन्दू से बातचीत के दौरान एक टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि वे राजस्थान के घटनाक्रम का बारीकी से अध्ययन तो नहीं कर रहे हैं लेकिन ये हैरानी की बात है कि उमर अब्दुल्ला को रिहा क्यों किया गया? भूपेश बघेल ने इसके बाद कहा था कि एक ही धाराओं के तहत हिरासत में उमर और महबूबा मुफ्ती को लिया गया था। जबकि महबूबा मुफ्ती अभी भी जेल में हैं और उमर अब्दुल्ला बाहर आ गए हैं। उन्होंने सवाल उठाया था कि क्या ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि उमर अब्दुल्लाह और सचिन पायलट के रिश्तेदार हैं। उमर ने बघेल को इस बयान के लिए नोटिस भेजने और कोर्ट में घसीटने की बात कही थी।

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