[gtranslate]
उत्तराखण्ड की नौकरशाही राज्य में फर्जीवाड़ा कर जमीन खरीदने वालों और भूमाफिया के खिलाफ किस कदर दरियादिली दिखाती है, इसका जीता-जागता उदाहरण अल्मोड़ा का जिला प्रशासन है। पिछले दस वर्षों से प्रशासन सरकारी जमीन के अतिक्रमण, गैरकानूनी तरीके से वृक्षों के कटान और फर्जी दस्तावेज बना जमीन खरीदने वाले एक सनसनीखेज प्रकरण में तमाम सरकारी जांचों के बाद भी दिल्ली में रजिस्टर्ड एक एनजीओ के खिलाफ कार्यवाही करने से बचता रहा है। ऐसा तब जबकि स्वयं जिलाधिकारी फर्जी तरीके से खरीदी गई जमीन को वापस राज्य सरकार में निहित करने और एनजीओ की मान्यता रद्द करने का आदेश तक कई बरस पहले दे चुके हैं। प्रशासनिक नाकामी का इससे बड़ा उदाहरण शायद ही कोई अन्य होगा जहां फर्जीवाड़ा करने वाले बेखौफ विवादित जमीन पर दोबारा काम शुरू कर चुके हैं। इस पूरे प्रकरण को सामने लाने वाले अखबार ‘दि संडे पोस्ट’ और उत्तराखण्ड के प्रखर जन आंदोलनकारी पी.सी. तिवारी के खिलाफ लगातार दुष्प्रचार, मिथ्या आरोप भी लगाने से बाज नहीं आ रहे हैं। इससे भी ज्यादा हैरतनाक यह कि अल्मोड़ा जनपद की वर्तमान जिलाधिकारी ऐसे धंधेबाजों की शिकायत पर बगैर तथ्यों को जांचे-परखे पी.सी. तिवारी के खिलाफ जांच भी बिठा देती हैं। इस पूरे प्रकरण में लिप्त एनजीओ पिछले आठ बरसों से लगातार ‘दि संडे पोस्ट’ विशेषकर संपादक अपूर्व जोशी के खिलाफ दुष्प्रचार की सभी हदें लांघ चुका है। चूंकि जनता की याददाश्त कमजोर कही जाती है इसलिए एक बार फिर से इस पूरे प्रकरण को हम सामने ला रहे हैं ताकि उत्तराखण्ड में बड़े पैमाने पर हो रही जमीन की लूट और उसमें प्रशासनिक सहभागिता का सच सामने आ सके
वर्ष 9-अंक 32 दिनांक 20 जून 2010, जमीन की लूट : अल्मोड़ा के डांडा कांडा निवासी बिशन सिंह अधिकारी 21 नवंबर 2008 को एक पत्र देश की राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को लिखते हैं। पत्र की एक कॉपी ‘दि संडे पोस्ट’ को भी भेजी जाती है। पत्र में लिखा है ‘डांडा कांडा स्थित उनकी पुश्तैनी जमीन पर दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कब्जा कर लिया है। जमीन पर विशालकाय भवन बनाए जा रहे हैं। बेनाप जमीन कब्जा करने, अवैध तरीके से पेड़ काटने, गांव की पेयजल लाइन तोड़कर पेयजल आपूर्ति अवरुद्ध करने और जेसीबी चलाकर वन विभाग की जमीन पर रास्ता बनाने से हो रही जनहानि को रोका जाए। पत्र के आधार पर ‘दि संडे पोस्ट’ टीम स्थलीय निरीक्षण करने जब डांडा कांडा पहुंची तो उपरोक्त आरोप सही पाए गए।’ प्रथम दृष्टया स्पष्ट हो रहा था कि जिस जमीन पर भवन बनाए जा रहे हैं वहां खूब अनियमितताएं हो रही हैं। देखा गया कि वहां नवनिर्मित चार आलीशान भवनों को एक स्कूल का नाम दिया गया। जिसका संचालन दिल्ली की एक स्वयं सेवी संस्था प्लीजेंट वैली फाउंडेशन कर रही थी। यहां एनजीओ द्वारा वन विभाग की जमीन पर अवैध तरीके से न केवल सड़क का निर्माण कार्य चल रहा था, बल्कि जेसीबी मशीन चलाकर सैकड़ों पेड़ों को जड़ से उखाड़कर मिट्टी में मिला दिया गया। बेनाप जमीन पर दशकों से बसे बिशन सिंह अधिकारी के परिवार को उजाड़कर उस पर भी कब्जा कर लिया गया। अधिकारी परिवार जमीन से बेदखल होने के बाद अधिकारियों के कार्यालय के चक्कर काटने पर मजबूर हो गया। यही नहीं, बल्कि अधिकारी परिवार पर प्लीजेंट वैली फाउंडेशन के कर्ताधर्ता एवी प्रेमनाथ ने दिल्ली में कई फर्जी मामले भी दर्ज करा दिए। ‘जमीन की लूट’ शीर्षक से ‘दि संडे पोस्ट’ की आवरण कथा में एनजीओ की आड़ में भू-माफियागिरी के खेल का भंडा फोड़ किया गया।
वर्ष 2-अंक 6, दिनांक 1 अगस्त 2010, बचीराम बना मोहराः पहाड़ के सीधे-सादे लोग कैसे उत्तराखण्ड में जमीन लेने वालों द्वारा सताए जा रहे हैं और एक-दूसरे के खिलाफ मोहरा बन रहे हैं, ‘दि संडे पोस्ट’ ने अपने इस अंक में इसकी पड़ताल की। डांडा कांडा निवासी बचीराम एक ऐसा व्यक्ति है जो पूरी तरह निरक्षर है। लेकिन उसके नाम से कई पेज का पत्र जिलाधिकारी अल्मोड़ा को लिखा गया। वह पत्र कब लिखा गया और किसने लिखा इसकी
जानकारी तक बचीराम को नहीं। लेकिन उसके नाम से स्थानीय निवासी बिशन सिंह अधिकारी और उसके पुत्र के खिलाफ जातिसूचक शब्द बोलने और उसकी पत्नी को प्रताड़ित करने की शिकायत कर दी गई। बचीराम को तो यह तक भी पता नहीं था कि जिस पेड़ को उसने

खुद काटा है बिशन सिंह अधिकारी पर उस पेड़ को अवैध रूप से काटने के भी आरोप पत्र में लगा दिए गए। जबकि इस बाबत जिलाधिकारी की जांच रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि पत्र बचीराम ने नहीं, बल्कि किसी शरारती तत्व ने लिखा है। इससे साफ हो गया कि बचीराम के जरिए सीधा निशाना बिशन सिंह अधिकारी पर साधा गया। जिस जमीन पर बिशन सिंह का परिवार पचास साल से काबिज था, प्लीजेंट वैली फाउंडेशन को वह जमीन कैसे मिल गई। उस जमीन पर कैसे निर्माण कार्य कराया जा रहा था। उक्त फाउंडेशन के कर्ताधर्ताओं की इन कारगुजारियों का खुलासा ‘दि संडे पोस्ट’ ने पहले अंक में किया था। इसके बाद दिल्ली प्रशासन के एडीएम एवी प्रेमनाथ जिनकी पत्नी इस फाउंडेशन की अध्यक्ष हैं, ने ‘दि संडे पोस्ट’ को मानहानि के तीन नोटिस भेजे। सीधा मतलब यही है कि जो भी सामने आएगा या सच बोलेगा उसके खिलाफ फर्जी मामले दर्ज कराए जाएंगे।

वर्ष 2-अंक 8, दिनांक 15 अगस्त 2010, दास्तान-ए-प्लीजेंट वैली : दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी एवी प्रेमनाथ की पत्नी के एनजीओ के उत्तराखण्ड में कई गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त होने संबंधी समाचार हमारे इस अंक की आवरण कथा थी। इसमें एनजीओ पर जमीन के अवैध अतिक्रमण से लेकर बेनाप जमीन पर बिल्डिंग खड़ी करने का मामला है। सैकड़ों चीड़ के पेड़ काटकर उन्हें जमीन में दफनाकर सबूत खत्म करने और बिना किसी स्वीकृति के अवैध तरीके से रास्ता बनाने का मामला भी शामिल है। अगर कोई पहाड़ी व्यक्ति ऐसे जुर्म करने की हिमाकत करता तो अब तक कब का सलाखों के पीछे होता। लेकिन यह मामला एक ऐसे बाहरी रसूख वाले व्यक्ति का था जिसके आगे सब कुछ गौण है। गांव डांडा कांडा में दिल्ली का प्लीजेंट वैली फाउंडेशन ‘गरीब मेधावी बच्चों’ के लिए एक स्कूल बना रहा है। इसके लिए जमीन मुहैया कराई स्थानीय निवासी गोपाल बिष्ट ने जो इसी फाउंडेशन में चार हजार मासिक की नौकरी करता है। स्थानीय एसडीएम की रिपोर्ट कहती है कि गोपाल ने इस फाउंडेशन के लिए 100 नाली जमीन खरीदी है जिसका मूल्य लगभग 80 लाख है। प्रश्न यह उठता है कि एक गरीब, चार हजार कमाने वाले पहाड़ी के पास इतना धन कहां से आया और क्यों कर उसने यह महंगी जमीन एक फाउंडेशन को स्कूल निर्माण के लिए दे डाली। इसकी तहकीकात उत्तराखण्ड के साथ चल रहे खिलवाड़ का घिनौना सच सामने लाती है। भू-अध्यादेश कानून की धज्जियां उड़ाने के लिए एक गरीब पहाड़ी को करोड़पति बनाने, सरकारी जमीन पर कब्जा करने, तीन सरकारी चालान किए जाने एवं जांच में दोषी पाए जाने के बावजूद भी कोई कार्यवाही न होने और पूरे सरकारी तंत्र के अंधे होने की कहानी ‘दि संडे पोस्ट’ की तहकीकात बयां करती है।
वर्ष 2-अंक 10, दिनांक 29 अगस्त 2010, आखिर कौन है आशा यादव : इस अंक में यह सामने लाया गया कि किस तरह उत्तराखण्ड में लागू भू-अधिनियम कानून की जिस आशा यादव नामक महिला ने धज्जियां उड़ाई वह कोई और नहीं, बल्कि आशा प्रेमनाथ ही हैं। नियमतः उत्तराखण्ड में कोई भी बाहरी व्यक्ति सवा नाली से अधिक जमीन नहीं खरीद सकता। लेकिन आशा यादव नाम की महिला ने फर्जी खतौनी के आधार पर सौ नाली जमीन खरीद ली। तत्कालीन भाजपा सरकार ने उत्तराखण्ड में जमीनों की अंधाधुंध खरीद फरोख्त पर रोक लगाने के उद्देश्य से भू-अधिनियम लागू किया था। लेकिन सरकार के कायदे कानूनों के साथ एक भद्दा खेल भी शुरू हुआ। यह खेल खेलने वाली महिला आशा यादव हैं। बड़ी चालाकी से आशा यादव ने जून स्टेट गांव की खतौनी निकलवाई। उसमें से एक नाम को काटकर आशा यादव पुत्री बीआर यादव निवासी छोटी मुखानी हल्द्वानी जोड़ दिया। इसके बाद वैसी ही नकली खतौनी कंप्यूटर के सहारे बनवाई। जिस खतौनी की हूबहू नकली खतौनी बना दी गई जिसमें वह बाकायदा खातेदार दर्ज हो गई। इसके बाद उसी खतौनी के आधार पर अल्मोड़ा के मैणी गांव में 100 नाली जमीन खरीद ली गई। ‘दि संडे पोस्ट’ ने नैनीताल के खाता खतौनी कक्ष को वहां के सब रजिस्टार के साथ छान मारा। लेकिन कुमारी आशा यादव के नाम से जून स्टेट में उसके नाम कोई भी जमीन का मालिकाना हक दर्ज नहीं मिला। इस तरह सवा नाली की जगह 100 नाली जमीन खरीदकर सरकार की आंखों में धूल झोंक चुकी आशा की हकीकत हमने पाठकों के सामने पेश की थी।
वर्ष 2-अंक 12, दिनांक 12 सितंबर 2010, सरकारी आवास में एनजीओ : इस अंक में हमने दिखाया कि एवी प्रेमनाथ अपने अधिकारी होने का किस तरह दुरुपयोग करते हैं। अपने रसूख और पहुंच का इस्तेमाल कैसे किया जाता है यह एवी प्रेमनाथ से सीखना चाहिए। जिन्होंने सरकार की ओर से आवंटित सरकारी आवास में एनजीओ का कार्यालय खोल रखा है। जिसका संचालन इनकी पत्नी करती है। दिल्ली के तत्कालीन अतिरिक्त आयुक्त एवी प्रेमनाथ का नाम आवास आवंटन प्रतीक्षा सूची में बहुत पीछे था। लेकिन अपनी पहुंच के कारण आवास आवंटित कराने में वह सफल रहे। प्रेमनाथ को फरवरी 2007 में ग्रेटर कैलाश में आवास दिया गया। ग्रेटर कैलाश स्थित ऑफीसर्स फ्लैट पूरी तरह आवासीय क्षेत्र में आता है। प्रेमनाथ इसमें रहने के बजाए यहां से एनजीओ एवीआर फाउंडेशन का संचालन करते रहे।
वर्ष 2-अंक 49, दिनांक 5 जून 2011, आशा का सच : आखिर आशा यादव का सच सामने आ ही गया। ‘दि संडे पोस्ट’ ने जमीन खरीदने के जिस फर्जीवाड़े को प्रकाशित किया उसे नैनीताल जिला प्रशासन की जांच रिपोर्ट ने प्रमाणित कर दिया है। साथ ही दिल्ली की प्रतिष्ठित फारेंसिंक लैब ‘ट्रूथ लैब’ की जांच रिपोर्ट से यह भी प्रमाणित हो गया कि प्लीजेंट वैली फाउंडेशन की अध्यक्ष आशा प्रेमनाथ और मैणी गांव में फर्जी ढंग से जमीन खरीदने वाली आशा यादव के हस्ताक्षरों में समानता है। जांच रिपोर्ट की मानें तो ये दोनों हस्ताक्षर एक ही व्यक्ति के हैं। सर्वविदित है कि ‘दि संडे पोस्ट’ ने अपने 29 अगस्त 2010 के अंक में ‘आखिर कौन है आशा यादव’ नामक समाचार प्रकाशित किया था। जिसमें ‘पहाड़ी जमीन बाहरियों ने लूटी’ श्रृंखला के तहत आशा यादव नामक एक ऐसी महिला का पर्दाफाश किया गया था जिसने फर्जी खसरा खतौनी के दम पर 100 नाली जमीन अल्मोड़ा जिले के मैणी गांव में खरीद ली थी। आशा यादव ने अपने आपको छोटी मुखानी हल्द्वानी का निवासी बताते हुए नैनीताल जिले के जून स्टेट के राजस्व अभिलेखों में फर्जी तरीके से अपनी जमीन दर्शा दी थी। फिर इन्हीं दस्तावेजों के सहारे उसने अपने आपको उत्तराखण्ड का मूल निवासी सिद्ध करके मैणी गांव में 100 नाली जमीन खरीद डाली। जबकि बाहरी होने के नाते वह उत्तराखण्ड में भू-अध्यादेश कानून के चलते महज सवा नाली जमीन ही खरीद पाती।
पत्रकार पर हुआ फर्जी मामला दर्ज : प्लीजेंट वैली फाउंडेशन के डांडा कांडा स्थित भवन निर्माण में बरती गई अनियमितताएं हों या मैणी गांव में फर्जी तरीके से खरीदी गई 100 नाली जमीन, सभी मामलों में जमीनी रिपोर्ट तैयार करने वाले ‘दि संडे पोस्ट’ के पत्रकार आकाश नागर पर वर्ष 2011 में फर्जी मामला दर्ज कराया गया। जिसमें पत्रकार पर फाउंडेशन के निर्माणधीन स्थल पर जाकर तोड़फोड़ करने और गाली-गलौच करने के आरोप लगाए गए। नागर के साथ ही स्थानीय निवासी बिशन सिंह अधिकारी पर भी कई धाराओं में रिपोर्ट दर्ज कराई गई। सात साल तक मामला अल्मोड़ा की अदालत में चला। जिसमें कई गवाह पेश किए गए। सात साल की न्यायिक कार्यवाही के बाद अंततः नागर और अधिकारी को न्यायालय ने निर्दोष मानते हुए बरी कर दिया। फिलहाल मामला हाईकोर्ट नैनीताल में विचाराधीन है। उक्त खबरों के प्रकाशन के बाद उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष पीसी तिवारी के नेतृत्व में संस्था और उनकी अनियमितताओं के खिलाफ अल्मोड़ा में धरना-प्रदर्शन किए गए। अल्मोड़ा के तत्कालीन जिलाधिकारी डीएस गर्ब्याल द्वारा एडीएम राजीव शाह की अध्यक्षता में एक जांच टीम का गठन किया गया। जांच टीम ने जो अपनी जांच की उसके अनुसार :
जांच संख्या 2173 : स्वयं सेवी संस्था प्लीजेंट वैली फाउंडेशन द्वारा क्रयशुदा भूमि के अतिरिक्त राज्य सरकार की (रक्षित वन भूमि की श्रेणी/परिधि वाली भूमि) 0.911 हेक्टेयर भूमि में अवैध रूप से अतिक्रमण किया गया है। इस संस्था द्वारा उक्त क्षेत्र में चार बड़े भवनों (ब्लांकों का निर्माण किया गया है) जिसमें से एक बड़ा भवन पूर्ण रूप से राज्य सरकार की भूमि में निर्मित किया गया है।
जांच संख्या 2173 बिन्दु संख्या 8 : प्लीजेंट वैली फाउंडेशन द्वारा राज्य सरकार की भूमि (रक्षित वन श्रेणी) की परिधि वाली भूमि में किए गए अतिक्रमण के संबंध में पटवारी द्वारा चालान किया गया है। किंतु राज्य सरकार की भूमि में 30 चीड़ के वृक्षों के क्षतिग्रस्त होने के संबंध में क्षेत्रीय पटवारी अथवा वन विभाग द्वारा वृक्षों के अवैध कटान पर भारतीय दंड सहिता एवं वन अधिनियम के अंतर्गत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की जानी चाहिए थी, जो नहीं की गई।
संस्था के विरुद्ध तीन चालानी रिपोर्ट : पहली, सरकारी जमीन से कच्चे रोड का निर्माण करने पर। दूसरी, सरकारी जमीन पर कच्ची सड़क, फील्ड, मकान, पानी की टंकी निर्माण करने
संबंधित, जबकि तीसरी रिपोर्ट कच्ची रोड भवन निर्माण, दीवालबंदी, फील्ड तथा 30 वृक्षों को मलबे से दबाकर क्षति पहुंचाने के संबंध में दर्ज की गई।
जांच संख्या 2173 के बिंदु संख्या 9 : संस्था द्वारा अपनी क्रयशुदा भूमि का कोई सीमाकंन नहीं किया गया और क्रेता द्वारा प्रस्तावित भूमि के अतिरिक्त राज्य सरकार की भूमि में कब्जा किया गया। समिति के नियमों में अपर सचिव उत्तराखण्ड की शर्तों के अंतर्गत स्कूल एवं हास्टल के निर्माण के लिए भूमि क्रय करने की अनुमति प्रदान की गई है जिसमें शर्त संख्या 9 का उल्लंघन हुआ है। ऐसी स्थिति में प्रश्नगत प्रकरण ने संबंधित भूमि के शासन द्वारा क्रय किए जाने की स्वीकृति को निरस्त किए जाने की पुष्टि साथ ही शासन द्वारा स्वीकøति निरस्त करने की अनुमति प्राप्त होने उपरांत भूमि को राज्य सरकार में निहित करने की कार्यवाही किए जाने की संस्तुति की जाती है।
जिलाधिकारी डीएस, गर्ब्याल की जांच संख्या 1420, दिनांक 4 मई 2011 : यह प्रकरण गांव मैणी पटवारी क्षेत्र हवालबाग की 100 नाली भूमि धोखाधड़ी से क्रय किया जाना प्रथम दृष्टया पारिलक्षित है। धोखाधड़ी से भूमि क्रय करने की दशा में आपराधिक मामला दर्ज किया जाना और फर्जी तौर पर भूमि को क्रय कर नामांकन की कार्यवाही करने पर उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 167 के अंतर्गत उक्त क्रय की गई भूमि राज्य सरकार के पक्ष में अंतर्निहित करने का प्रकरण बनता है।
आदेश संख्या 555, दिनांक 19 जून 2012 : अल्मोड़ा के जिलाधिकारी रहते जांच कराने वाले डीएस गर्ब्याल जब शासन में सचिव बने तो उन्होंने पत्र लिखा। जिसमें कहा गया कि जिलाधिकारी अल्मोड़ा शासन को अवगत कराएं कि क्या संस्था ने निर्धारित समयावधि (2 वर्ष) के भीतर अपने प्रायोजन (चैरिटेबल स्कूल का निर्माण) को पूर्ण कर लिया है, संस्था द्वारा क्रय की गई भूमि का सीमांकन नहीं किए जाने, राज्य सरकार की भूमि पर अतिक्रमण किए जाने, सार्वजनिक वृक्षों के अवैध रूप से कटान किए जाने के संबंध में जनपद स्तर से (राजस्व, वन एवं उद्योग विभाग) क्या कार्यवाही की गई।
जांच संख्या 541 दिनांक 20 अक्टूबर 2012 : इसी दौरान एक जांच अल्मोड़ा तहसीलदार से कराई गई। जिसमें कहा गया कि प्लीजेंट वैली फाउंडेशन दिल्ली का जनपद अल्मोड़ा के ग्राम डांडा कांडा में चैरिटेबल स्कूल एवं हॉस्टल निर्माण कार्य वर्तमान में बंद है। वर्तमान में ग्राम डांडा कांडा में किसी प्रकार का अवैध अध्यासन नहीं पाया गया है।
उपपा नेता पीसी तिवारी का जिलाधिकारी अल्मोड़ा को लिखा पत्र : 12 मार्च 2018 को तिवारी द्वारा जिलाधिकारी को लिखे गए पत्र में कहा गया कि कृपया अवगत कराने का कष्ट करें कि डांडा कांडा स्थित प्लीजेंट रुवैली फाउंडेशन का निर्माण कार्य शुरू कराने की
स्वीकति किस अधिकारी द्वारा किस स्तर से दी गई है। पूर्व डीएम के ओदशों के बावजूद भी संस्था की स्वीकृति निरस्त क्यों नहीं की गई।
जिलाधिकारी की जांच के आदेशों पर सवाल : एक आईएएस आंफिसर से उम्मीद की जाती है कि वह तथ्यों की गहन छानबीन करने के बाद ही कोई निर्णय लेता है। लेकिन अल्मोड़ा की जिलाधिकारी ने इस मामले में बिना कोई जांच पड़ताल किए ही जल्दबाजी में पीसी तिवारी की जांच के आदेश दे दिए।
जिलाधिकारी को चाहिए था कि वह पहले उन साक्ष्यों की जांच कराती जिनके आधार पर पीसी तिवारी पर आरोप लगाए गए थे। जिलाधिकारी को अपनी परिपक्वता का परिचय देते हुए पहले उस पक्ष से हलफनामा लेना चाहिए था। जो पीसी तिवारी पर आरोप लगा रहे थे। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। उत्तराखण्ड के अधिकारियों का यह शगल बन गया है कि कोई भी व्यक्ति किसी पर आरोप लगाए तो उसकी गहराई में जाए बिना ही जांच कराने के आदेश जारी कर दिए जाते हैं। ऐसा ही इस मामले में हुआ है। हालांकि उपपा नेता पीसी तिवारी का इस मामले में यह कहना है कि उन पर आरोप लगाने वाले शख्स एवी प्रेमनाथ के क्लाइंट हैं। ऐसा उन्हें एलआईयू के आंफिसरों ने बताया। इससे स्पष्ट होता है कि तार प्लीजेंट वैली फाउंडेशन से जुड़े हैं। क्योंकि पीसी तिवारी ने कुछ दिन पूर्व ही प्लीजेंट वैली फाउंडेशन का निर्माण कार्य शुरू होने की जिलाधिकारी से शिकायत करते हुए इसकी जांच की मांग की थी। साथ ही उन्होंने पूर्व जिलाधिकारी डीएस गर्ब्याल के आदेशों का हवाला देते हुए प्लीजेंट वैली फाउंडेशन की स्वीकøति भी निरस्त करने की मांग की थी। जिससे घबराए आरोपियों ने पीसी तिवारी को दबाव में लेने के लिए षड्यंत्र रच डाला।
जिलाधिकारी ने दिए जांच के आदेश : उपपा नेता पीसी तिवारी ने अपने ऊपर लगे आरोपों की सफाई में मीडिया के सामने प्रस्तुत किए दस्तावेज। इसके साथ ही अल्मोड़ा की जिलाधिकारी ने प्लीजेंट वैली संस्था के द्वारा निर्माण कार्य शुरू होने की जांच के आदेश दे दिए हैं।
संपादक पर मिथ्या आरोप
जनपद अल्मोड़ा के मैणी गांव, जो डांडा कांडा से कुछ ही दूर पर है, वहां आशा यादव नामक महिला द्वारा 100 नाली जमीन खरीदने के प्रमाण ‘दि संडे पोस्ट’ के हाथ लगते ही अखबार के संपादक अपूर्व जोशी के चरित्र हनन का जबरदस्त षड्यंत्र शुरू किया गया। मिथ्या आरोपों के सहारे फर्जी समाचार अखबारों में छापे गए। यह साबित करने का प्रयास किया गया कि अपूर्व जोशी राज्य के एक वरिष्ठ आईएएस अफसर मंजुल कुमार जोशी के साथ मिलकर प्रोपर्टी डीलिंग का काम करता है। हद तो तब हो गई जब धमकी भरे पत्र, व्यक्तिगत तथ्यहीन आरोपों से भरे पोस्टर इत्यादि चुनिंदा स्थानों पर वितरित किए गए। इसी दौरान ‘आखिर कौन है आशा यादव’ शीर्षक से खोजी समाचार प्रकाशित हुआ। इस समाचार का सार यह था कि एक नकली खसरा खतौनी को आधार बना आशा यादव नामक महिला जो खुद को छोटा मुखानी हल्द्वानी का निवासी बताती है, उसने सौ नाली जमीन खरीदी है। इस समाचार के प्रकाशित होते ही अपूर्व जोशी पर आक्रमण और तेज हो गए। जो फर्जी अखबार और पोस्टर वितरित हुए उनमें एक बात समान थी सभी में प्लीजेंट वैली फाउंडेशन संस्था की तारीफ की गई थी। लेकिन मुद्रक प्रकाशक का नाम कहीं नहीं लिखा था। जाहिर है इन फर्जी सामचार पत्रों के प्रकाशकों के तार एडीएम प्रेमनाथ और प्लीजेंट वैली फाउंडेशन से जुड़े हैं।

आंदोलन के प्रतीक हैं पी.सी. तिवारी

जहां सुरक्षित सभी निवासी, जहां आत्मसम्मान मिले।
जहां ध्वस्त हो सभी माफिया, ऐसा उत्तराखण्ड बने।।
इसी परिकल्पना को लेकर जिंदगी भर देवभूमि उत्तराखण्ड के लिए संघर्ष करते रहे हैं पीसी तिवारी। वही पीसी तिवारी जिन्हें दिल्ली के कुछ गिरोहबंद लोगों द्वारा कुछ तथाकथित अंग्रेजी अखबारों की कतरनों में फोटो पोस्ट करके फर्जी आंदोलनकारी, वसूली और ब्लैकमेलिंग करने वाला बताया गया है। 1974-75 से उत्तराखण्ड में विभिन्न जनसंघर्षों तथा जनआंदोलनों के सक्रिय सिपाही तथा जनपक्षीय अधिकारों के उच्चतम पैरोकार के रूप में पीसी तिवारी की पहचान है। तेवरों से जुझारू पीसी तिवारी ने अपनी ऊर्जा और जीवन का एक बड़ा भाग सामाजिक सरोकारों के लिए खर्च किया है। तिवारी ने समाज के ग्रासरूट स्तर तक जाकर जनता को गोलबंद करने के लिए अनेक पदयात्राएं की। भ्रष्टाचार तथा सरकारी लूट खसोट की बखिया उधेड़ने वाले पीसी तिवारी ने अनेक भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ मोर्चा लिया। एक मामले में जनआंदोलनों का दमन करने के विरोध में अपर जिलाधिकारी को जेल में बंद कर जेल को अपने नियंत्रण में लेकर श्रमिकों के हित में समझौता कराने के बाद उन्हें छोड़ा।
उन्होंने 1988 में भ्रष्टाचार के प्रतीक ‘कनकटे बैल’ के जरिए भ्रष्टाचार का ना केवल खुलासा किया, बल्कि कलेक्ट्रेट में कनकटे बेल के साथ धमक दे दी थी। हर समय जनता की तरफदारी में खड़े रहने वाले पीसी तिवारी ने भू-माफिया वाले मुद्दे पर शराब माफिया के विरुद्ध भी आवाज उठाई और ‘नशा नहीं, रोजगार दो’ आंदोलन (1984) का सूत्रपात एवं नेतृत्व किया। 1977-78 में कुमाऊं विश्वविद्यालय परिसर अल्मोड़ा के छात्र संघ अध्यक्ष रहे पीसी तिवारी की उत्तराखण्ड में चले ‘वन बचाओ एवं चिपको आंदोलन’ में सक्रिय भूमिका रही। कई प्रतिष्ठित अखबारों में वरिष्ठ पत्रकार के रूप में जनता की आवाज को स्थान देते रहे। उन्होंने जंगल के दावेदार जैसे सामाजिक आंदोलनों के प्रतीक पाक्षिक अखबार का आठ साल तक प्रकाशन भी किया। शराब कारोबारी पोंटी चड्ढा के पिता जी कुलबीर सिंह चड्ढा को पहाड़ों में कच्ची शराब का अवैध संचालन करने पर बंधक बनाने और उनका अल्मोड़ा में जुलूस निकालने वाले पीसी तिवारी ही थे। पोंटी चड्ढा के चितई गोल्ज्यू मंदिर में घंटा चढ़ाने को लेकर के मुखर हुए। उनके विरोध प्रदर्शन को देखते हुए सरकार को वह घंटा मंदिर से हटाना पड़ा था। 1986-87 में कोटखर्रा तथा बिंदुखत्ता में भूमिहीन किसान आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले पीसी तिवारी में इतना जज्बा कायम था कि 1988 में उन्होंने पहाड़ों में गलत परिपाटी से शुरू की जा रही हिमालयन कार रैली को रोककर सरकार की मनमानी पर ब्रेक लगाया था। यह वही पीसी तिवारी हैं जिन्होंने 28 अक्टूबर 1994 में उत्तराखण्ड आंदोलन के दौरान लखनऊ में नेशनल फाउंडेशन ऑफ न्यूज पेपर तथा राष्ट्रीय श्रमजीवी पत्रकार संघ के राष्ट्रीय सम्मेलन में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के खिलाफ जबरदस्त विरोध-प्रदर्शन किया था। उनके मुर्दाबाद के नारे लगाए और उत्तराखण्ड में गोली चलाए जाने को लेकर सवाल जवाब  किए। जिससे मुलायम सिंह यादव को मंच छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा। समय-समय पर चौखुटिया, मनिला, सल्ट, बागेश्वर, भैंसियाछाना, धुराफाट, कपकोट, लमगड़ा, धौलादेवी पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, रानीखेत समेत उत्तराखण्ड के अनेक ग्रामीण क्षेत्रों में शराब, खनन और भूमाफियाओं के खिलाफ जनचेतना अभियान चलाकर आंदोलन करने वाले पीसी तिवारी के आगे माफिया परास्त हो गए। चाहे द्वारसों में फुटहिल बिल्डर्स का मामला हो या चौकुनी में विकुंज बिल्डर्स द्वारा ग्रामीणों की जमीन पर अवैध रूप से बनाए गए फ्लैट्स का मामला वह हर जगह बिल्डर्स लॉबी के खिलाफ तनकर खड़े हुए हैं। नैनीताल में क्लाउड नाईन के अवैध निर्माण को रुकवाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। दो साल पूर्व नैनीसार जमीन आंदोलन में उन्होंने जिस तरह संघर्ष किया वह पूरे उत्तराखण्ड में भू-माफियाओं के खिलाफ जंगी एलान आंदोलन बनकर सामने आया। नैनीसार आंदोलन में उन्हें जेल भी जाना पड़़ा। बावजूद इसके उनके साहस में कमी नहीं आई। प्रदेश में बेनामी संपत्तियों के कई मामलों पर उनके आंदोलन जग जाहिर हैं। डांडा कांडा में प्लीजेंट वैली फाउंडेशन के खिलाफ वर्ष 2010 में धरना-प्रदर्शन कर शासन-प्रशासन को जांच करने के लिए मजबूर कर देने वाले पीसी तिवारी ही थे। उनकी जिजीविषा का आलम यह है कि वह कभी भी किसी आंदोलन से पीछे नहीं हटे हैं। आंदोलन को अंतिम मुकाम तक पहुंचाने में महाराथ हासिल इस पहाड़ी टाइगर ने पिछले आठ सालों से डांडा कांडा में प्लीजेंट वैली फाउंडेशन के फर्जीवाड़े पर आंदोलन का डंडा चला रखा है। एक आंदोलनकारी के साथ ही वकालत के जरिए भी स्थानीय बिशन सिंह अधिकारी के खिलाफ प्लीजेंट वैली द्वारा लगाए गए फर्जी मामले की कानूनी पैरवी कर उनको बाईज्जत बरी कराने में तिवारी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। फिलहाल वह एक बार फिर प्लीजेंट वैली की अनियमितताओं को लेकर सक्रिय हो चुके हैं और प्रदेश भर में माफिया संस्कृति विरोधी जन अभियान चलाकर आंदोलनकारी शक्तियों को एकजुट कर रहे हैं।
18 मार्च 2018 को पीसी तिवारी के खिलाफ फर्जी समाचारों के आधार पर डीएम अल्मोड़ा ने बिठाई जांच
देश के प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबारों ‘दि इंडियन एक्सप्रेस’, ‘दि पायनियर’ एवं ‘दि स्टेटमैन’ में पीसी तिवारी के खिलाफ छपे अनर्गल आरोप जिनमें उन्हें एक फर्जी आंदोलनकारी और परिवर्तन पार्टी का दबाव बनाकर पैसे लेने का आरोपी बताया गया। यहां तक कि उन पर उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में अवैध वसूली करने की बात कह मामला भी दर्ज करना बताया गया। इसकी तह में जाए बिना ही अल्मोड़ा की डीएम ने पीसी तिवारी के खिलाफ जांच बिठा दी। ‘दि संडे पोस्ट’ टीम ने जब इन अखबारों में प्रकाशित खबरों की जांच-पड़ताल की तो प्रथम दृष्टया कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। जिससे यह स्पष्ट होता है कि उक्त समाचार अखबारों में प्रकाशित हुए ही नहीं थे। ‘दि इंडियन एक्सप्रेस’ जैसे प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार में जब उक्त समाचार की प्रकाशन तिथि खोजी गई तो पता चला कि मूल अखबार के किसी भी पृष्ठ में वह खबर प्रकाशित ही नहीं थी। उक्त समाचार पत्र के वेब वर्जन में भी संबंधित खबरों को ढूंढ़ा गया, मगर वहां भी इस तरह की कोई खबर प्रकाशित नहीं मिली। जिस खबर को आधार बनाकर डीएम ने जांच शुरू की है उस खबर के पब्लिकेशन स्टाइल और मूल अखबार में प्रकाशित हो रही खबर का पब्लिकेशन स्टाइल से कहीं मेल नहीं खाता है। मसलन डीएम को भेजे गए शिकायती पत्र के साथ संलग्न ‘दि इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर फर्जी प्रतीत होती है। ‘दि इंडियन एक्सप्रेस’ में हर समाचार के प्रथम दो शब्द कैपिटल लेटर में लिखे जाते हैं। इस समाचार में ऐसा नहीं है।

मेरे खिलाफ साजिश’

उपपा के केंद्रीय अध्यक्ष पीसी तिवारी से बातचीत
यह मामला आपके संज्ञान में कैसे आया?
हमने इस मामले को ‘दि संडे पोस्ट’ में विस्तार से पढ़ा था। अखबार के अनुसार हमें लगा कि ग्रामीणों के साथ नाइंसाफी हो रही है। स्थानीय बिशन सिंह अधिकारी पर कई फर्जी मामले लगा दिए गए थे।
आपने क्या रणनीति बनाई?
पहले हमने यह जाना कि प्लीजेंट वैली फाउंडेशन आखिर है, क्या? इसका मकसद क्या है? इसके बाद हमने उसके खिलाफ न केवल लड़ाई लड़ी, बल्कि तत्कालीन जिलाधिकारी सुवर्धन से जांच के आदेश भी कराए। हालांकि इससे पहले हम भू-माफियाओं के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ चुके थे। फुटहिल के खिलाफ हमने स्टांप एक्ट में 6 लाख का जुर्माना भी कराया।
फर्जीवाड़े पर क्या हुआ?
मैणी गांव में 100 नाली जमीन फर्जी तरीके से खरीदने पर आशा यादव के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने और जमीन को सरकार में निहित कराने के आदेश हुए। इसी दौरान प्लीजेंट वैली फाउंडेशन की स्वीकति निरस्त करने के भी आदेश किए गए।
यकायक यह प्रकरण फिर कैसे उठ गया?
हमें पता चला कि प्लीजेंट वैली फाउंडेशन का निर्माण कार्य शुरू हो चुका है तो हमने इसकी जांच कराने और निर्माण कार्य शुरू कराने के कारणों की जांच कराने की मांग की थी। साथ ही तत्कालीन जिलाधिकारी डीएस गर्ब्याल ने जो संस्था की अनुमति निरस्त करने की संस्तुति की थी उसकी बाबत कार्यवाही के लिए भी डीएम को पत्र लिखा।
आरोप लगाने वाले लोग कौन हैं?
प्लीजेंट वैली फाउंडेशन के एवी प्रेमनाथ के इशारों पर मेरे खिलाफ झूठी साजिश रची गई। अखबारों की फर्जी खबर के आधार पर जिलाधिकारी ने जांच के आदेश दे दिए। इस मामले की जांच कर रही एलआईयू के अधिकारियों से जब मैंने पूछा कि मुझ पर आरोप लगाने वाले लोग कौन हैं तो उन्होंने बताया कि वह दिल्ली के वकील हैं। जो अपने आपको एवी प्रेमनाथ के क्लाइंट बता रहे हैं।
आगे की कार्यवाही क्या करेंगे?
मैंने उन अखबारों को लीगल नोटिस भेजे हैं जिनमें मेरे नाम से खबरें छपी थी। हालांकि हमें जांच के दौरान यह पता चल चुका है कि अंग्रेजी के प्रतिष्ठित अखबारों के नाम पर पेस्ट करके वह फर्जी खबरें बनाई गई थी। हम इस मामले में आरोपियों को न्यायालय में ले जाएंगे तो इसलिए संबंधित अखबार के हेड ऑफिसरों को नोटिस भेज दिए गए हैं। सच्चाई सामने आते ही हम दिल्ली के उन वकीलों के भी बार काउंसिल ऑफ इंडिया से लाइसेंस निरस्त करने की मांग करेंगे।
प्लीजेंट वैली फाउंडेशन वाले मामले में हमने अपने एसडीएम को जांच सौंप दी है। जांच पूरी होने के बाद ही कुछ बता पाएंगे।
ईवा आशीष, जिलाधिकारी अल्मोड़ा

You may also like

MERA DDDD DDD DD