भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने हाल ही में जो आंकड़े जारी किए हैं उनके अनुसार कोविड-19 महामारी के दौरान 10,386 बच्चे अनाथ हो गए थे, जबकि 142,949 ने अपने माता-पिता में से एक को खो दिया था। वहीं 492 बच्चों को उनके अपनों ने अनाथ छोड़ दिया था। इस तरह महामारी के दौरान कुल 153,335 बच्चों ने अपने माता-पिता या अभिभावकों में से एक को खोया था।
वहीं दूसरी तरफ 24 फरवरी 2022 को साइंटिफिक जर्नल लैंसेट में प्रकाशित एक शोध में 01 मार्च 2020 से 31 अक्टूबर 2021 के बीच देश में अनाथ हुए बच्चों का आंकड़ा 19.15 लाख बताया था। यहां अनाथ हुए बच्चे वो थे जिन्होंने अपने माता-पिता या देखभाल करने वाले किसी अपने को इस महामारी के दौरान खो दिया था।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि भले ही लैंसेट ने अपने अनुमान में उत्तम पद्धति का उपयोग किया है, लेकिन जो आंकड़े उसमें साझा किए गए हैं वो भारत के परिप्रेक्ष्य में जमीनी हकीकत से काफी दूर हैं। कोरोना संक्रमण की वजह से अनाथ हुए बच्चों की संख्या पर जारी लांसेट की रिपोर्ट को केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने पाश्चात्य देशों की संस्थाओं का सुनियोजित षड़यंत्र बताया है। स्मृति ईरानी ने कहा कि कोरोना से हुई मौत के आंकड़ों की जांच और निगरानी राज्य और केंद्र स्तर पर होती है। इसके लिए पारदर्शी व्यवस्था है, ऐसे में केंद्र सरकार के आंकड़ों में गड़बड़ी की संभावना नहीं है।
दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की ओर से इसपर निगरानी के लिए ‘बाल स्वराज’ नामक एक पोर्टल तैयार किया गया है, जिसपर राज्य और केंद्रशासित प्रदेश के आधार पर अपने माता-पिता और संरक्षकों को खोने वाले बच्चों से जुड़े आंकड़ों को साझा किया गया है।
सरकार के मुताबिक उड़ीसा में सबसे ज्यादा 26,318 बच्चों ने अपने माता-पिता या अभिभावकों को खोया था। इसके बाद महाराष्ट्र में 20,429 बच्चे ऐसे थे जो अपने अपनों से दूर हो गए थे। इसी तरह गुजरात में ऐसे बच्चों का आंकड़ा 14,934, तमिलनाडु में 11,908, उत्तर प्रदेश में 10,317, आंध्र प्रदेश में 8,867, मध्य प्रदेश में 7,662, पश्चिम बंगाल में 6,839, राजस्थान में 6,830, दिल्ली में 6,757 और कर्नाटक में 5,098 था।
भले ही लैंसेट और भारत सरकार के आंकड़े मेल न खाते हों लेकिन इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता है कि इस महामारी ने ऐसे जख्म दिए हैं जिनकी भरपाई लगभग नामुमकिन है। इस महामारी के दंश को न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया ने सहा है। यदि लैंसेट द्वारा जारी आंकड़ों पर दृष्टि डालें तो मार्च 01 2020 से 31 अक्टूबर 2021 के बीच दुनिया भर में करीब 52 लाख बच्चों ने अपने माता-पिता या अपना ध्यान रखने वाले अभिभावक को खो दिया है। यह ऐसा दर्द है जिसकी कल्पना भी करना बहुत मुश्किल है। यही वजह है कि इन बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा और विकास पर विशेष ध्यान देने की जरुरत महसूस की जा रही है।
गौरतलब है कि जिन बच्चों ने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया है उनकी व्यापक सुरक्षा और देखभाल के लिए सरकार ने व्यापक योजना बनाई है। जिसके तहत उन्हें 23 साल की आयु तक वित्तीय सहायता दी जाएगी, साथ ही उन्हें आत्मनिर्भर बनाने पर भी ध्यान दिया जाएगा। हालांकि यह ने केवल देश बल्कि समाज की भी जिमेदारी बनती है वो ऐसे समय में इन बच्चों के साथ खड़े रहें, जिससे उनके लिए बेहतर भविष्य की राह सुनिश्चित हो सके।