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40 साल में पहली बार उपभोक्ता खर्च में भारी गिरावट की रिपोर्ट नहीं जारी करेगा NSO

40 साल में पहली बार उपभोक्ता खर्च में भारी गिरावट की रिपोर्ट नहीं जारी करेगा NSO

राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (एनएससी) ने उपभोक्ता खर्च में आई कमी की रिपोर्ट जारी नहीं जारी करने का निर्णय लिया है। ये 40 साल में पहली बार है जब इस तरह का निर्णय लिया गया है। तकरीबन एक महीने पहले राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की रिपोर्ट में यह कहा गया था कि देश में बीते चार दशकों में उपभोक्ता खर्च में भारी गिरावट आई है।

एक महीने पहले एनएससी के अध्यक्ष बिमल कुमार रॉय ने कहा था कि चार दशकों में पहली बार उपभोक्ता खर्च में आई कमी को दिखाने वाली आधिकारिक सर्वे रिपोर्ट को सार्वजनिक की जाएगी। लेकिन अब इस स्वायत्त संस्था का कहना है कि वो ये रिपोर्ट जारी नहीं करेगी। बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बिमल कुमार रॉय से जब रिपोर्ट जारी न करने को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, “मैंने कोशिश की थी। सर्वे को रिलीज करने प्रस्ताव दिया था। लेकिन मुझे समर्थन ही नहीं मिला। मैंने चेयरमैन के तौर पर यह प्रस्ताव रखा था, लेकिन यह आगे नहीं बढ़ा। इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कह सकता।”

खबरों के मुताबिक, एनएससी की बैठक में मुख्य सांख्यिकीविद् प्रवीण श्रीवास्तव ने सर्वेक्षण का आंकड़े जारी करने पर आपत्ति जताई थी। हालांकि, एनएससी के एक सदस्य ने आपत्तियां उठाईं और आंकड़ों को सार्वजनिक करने का दबाव बनाया। इस मामले पर जानकारी रखने वाले एक शख्स के हवाले से ये सामने आया है कि सदस्यों के बीच जारी किए गए मीटिंग के मिनट्स में सदस्यों की राय को शामिल नहीं किया गया। इसके बाद एनएससी के अंदर होने वाली बैठकों पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

अब वित्त वर्ष 2021 और 2022 में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग ने नई तकनीक के साथ रिपोर्ट तैयार करने का आदेश दिया है। पिछले महीने ही सरकार ने पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् प्रोनाब सेन के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया था, जिसे उपभोक्ता खर्च पर एक नया सर्वे करने का आदेश दिया गया। भारत में इसका उपयोग गरीबी और असमानता पर आधिकारिक अनुमान प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

वित्त वर्ष 2012-18 के बीच उपभोक्ता खर्च में 3.7 फीसदी कमी आने की पिछले साल नवंबर में बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट आई थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2018 के एनएसओ की ओर से किए गए आधिकारिक सर्वे को जारी नहीं करने का निर्णय किया। पिछले साल नवंबर में एनएसओ की रिपोर्ट लीक हुई थी। लीक रिपोर्ट में सामने आया था कि पिछले 40 सालों में पहली बार उपभोक्ताओं की खर्च सीमा में गिरावट आई है। इसका प्रमुख कारण ग्रामीण इलाकों में मांग में आई कमी बताई गई थी।

विशेषज्ञों की माने तो उपभोक्ता खर्च में आई गिरावट के चलते देश में गरीबी का अनुपात कई दशकों में पहली बार बढ़ सकता है। सर्वे पर दोबारा काम करने वाली पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् प्रोनाब सेन ने कहा, “हमें अभी से सर्वेक्षण कराने में गंभीर समस्याएं होने जा रही हैं। गैर-प्रतिक्रिया की काफी की संभावना है, जो वास्तव में डेटा को काफी खराब कर सकती है।”

खबरों के अनुसार, एनएसओ ने अपने फील्ड अधिकारियों पर विश्वास की कमी के चलते खासकर पश्चिम बंगाल, केरल और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में प्रभाव दिखे हैं। लोगों को डर है कि सर्वेक्षण अधिकारी डेटा एकत्र कर रहे हैं जो उनकी नागरिकता का निर्धारण करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। ये पहली बार है जब सरकार ने आधिकारिक तौर पर सर्वे पूरा होने के बाद उसकी रिपोर्ट जारी नहीं करने का फैसला किया है। बताया ये भी कहा जा रहा है कि रिपोर्ट को रद्द करने से पहले सरकार ने एनएससी से कोई परामर्श नहीं किया था।

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