- प्रियंका यादव
अक्सर पहाड़ी इलाको के जंगलो में आग लगने की घटनाएं गर्मियों में दिखाई देती है। जिसका नकारात्मक प्रभाव न सिर्फ पर्यावरण पर पड़ता है बल्कि मानव स्वाथय पर भी पड़ता है। जंगलो में लगने वाली आग के धुंए से हजारों किलोमीटर की दूरी पर रह रहे इंसान को भी ये प्रभावित करती है। लेकिन अब भारत ऐसी तकनीक का इस्तेमाल करेगा जिससे जंगल में आग लगने से पहले ही लोगों को अलर्ट किया जा सकेगा।
क्या है नई तकनीक
वैसे तो जंगल में आग लगने के लिए अलर्ट करने की व्यवस्था भारत में लम्बे समय से है लेकिन जंगलो में आग लगने के बाद लोगों को अलर्ट किया जाता था। जिसका कुछ खाह लाभ नहीं मिल पाता था। जंगल में फैली आग के कारण सैकड़ो जंगल नष्ट हो जाते हैं । वहां रहने वाले वन्यजीवों की कई प्रजातियां खतरे में पड़ जाती है। यही नहीं वनों में पाई जाने वाली दुर्लभ वनस्पतियां भी खत्म हो जाती हैं । लेकिन अब इस नई तकनीक के जरिये लोगों को और वन विभाग को आग लगने से पहले ही सचेत किया जा सकता है। दरअसल इस तकनीक के माध्यम से आग लगने के हफ्ते भर पहले ही अलर्ट कर दिया जायेगा। जिससे आसपास के क्षेत्र व वहां स्थित लोगों को पहले सुरक्षित किया जा सके है। भारतीय वन संरक्षण के बड़े अधिकारियों और केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालयों के अनुसार २०१६ में इस तकनीक पर काम करने की शुरुआत हुई और इसे २०१९ तक विकशित कर लिया गया। उसके बाद इसका लम्बा ट्रायल चला लेकिन कोरोना काल के समय इसकी ट्रायल की रफ़्तार धीमी पड़ गई। लेकिन अब ये तकनीक कुछ परिवर्तनों के साथ प्रयोग में लाइ जा रही है।
कैसे अलर्ट करेगी तकनीक
नासा के फ़ायर वेदार इंडेक्स और भारतीय मौसम विभाग के तापमान और बारिश के आकड़ो का विश्लेषण कर अनुमान लगाया जाता है वन्य क्षेत्र में तापमान के घटने -बढ़ने के साथ-साथ आद्रता का भी लगातार आकलन किया जाता है। तापमान यदि बढ़ने लगे और ड्रायनेस पाई जाये तो आग लगने की आशंका बनी रहती है। किसी वनक्षेत्र की पहचान भारतीय वन सर्वेक्षण के फारेस्ट मैप द्वारा और जियोग्राफिकल इनफार्मेशन सिस्टम के माध्यम से की जाती है। इससे आग लगने की एकदम सही जानकारी मिल जाती है।आपको बता दे ये तकनीक भारत के पास ही नहीं बल्कि विकसित देशो के पास भी है। इस तकनीक का इस्तेमाल ऑस्ट्रेलिया ,दक्षिण अफ्रीका में भी किया जा रहा है। लेकिन भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार ये देश सटीक आकलन निकालने में सक्षम नहीं है।
गौरतलब है कि इसी वर्ष अल्वर जिले में सरिस्का बाघ अभ्यारण के जंगल के पहाड़ों में आग लग गई थी। जिसके लिए पहले ही सचेत किया जा चूका था। लेकिन प्रशासन द्वारा इसे गंभीरता से नहीं लिया। जानकारी मिलने के बाद भी इसके लिए कोई ख़ास इंतेजाम नहीं किये गए । जिसके कारण आग तेजी से फैलने लगी। बाद में इसे हेलीकाप्टर की सहायता से फैलती आग को बुझाया गया। इन आकड़ों की सहायता से जान सकते है कि जंगलो की आग लाखों लोगों की मौत का उत्तरदाई होती है . २०१८ से २०१९ तक २.१० लाख घटनाएं और २०२० से २१ तक ३.४५ लाख घटनाएं दर्ज की गई हैं ।