“राजनीति में सब कुछ जायज है। ” यह कहावत ऐसे ही नहीं बनी है। इसके पीछे बहुत बड़ी कहानी है। इसकी एक कहानी मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भी जुड़ने वाली है। यहां की 27 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है। लेकिन इस प्रकरण में उस समय मामला दिलचस्प होगा जब दो पुराने दोस्त आमने-सामने होंगे। यह तो दोस्त हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट ।
हालांकि आज दोनों अलग-अलग पार्टियों में है। लेकिन बावजूद इसके राजनीति में उनकी दोस्ती की दुहाई दी जाती है । पिछले दिनों जब सचिन पायलट कांग्रेस से बगावत कर दूर हो रहे थे तो वह सबसे पहले सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया से ही मिले थे। तब चर्चाओं का बाजार गर्म रहा कि सिंधिया सचिन पायलट को भाजपा में ले जा रहे हैं। हालांकि यह कितना सच है यह तो वह दोनों दोस्त ही जाने। लेकिन फिलहाल की जो परिस्थिति पैदा हुई है, उसमें दोनों दोस्तों का आमना सामना तय है।
कारण बनेगा मध्यप्रदेश के उपचुनाव। जहां ग्वालियर और चंबल इलाके के गुर्जर बहुल इलाकों में अपनी-अपनी पार्टी के लिए दोनों जोर आजमाइश करेंगे। इन दोनों इलाकों में गुजर बहुल संख्या में है जहां देखा जाए तो अधिपत्य भाजपा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया का ही है। लेकिन कांग्रेस सुप्रीमो विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट को मध्यप्रदेश के इस गुर्जर बहुल इलाके में भेज कर इस जाति के मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए पूरी जान लगाने की तैयारी में है।
जिसके मद्देनजर ही पिछले दिनों राजस्थान के प्रभारी अजय माकन ने पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट से इस संबंध में बात की थी। बताया जा रहा है कि सचिन पायलट ने मध्य प्रदेश के गुर्जर बहुल इलाकों में अपनी पार्टी के लिए चुनावी सभाएं करने की हामी भर दी।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में अगले महीने होने वाले विधानसभा उप चुनाव के लिए कांग्रेस ने अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया हैं। प्रदेश की 27 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहा है जिसमें से 16 सीटें ऐसी हैं, जो सिंधिया का अभेद किला माने जाने वाले ग्वालियर और चंबल प्रभाग से आती हैं। इन 16 सीटों में से 9 सीटें तो गुर्जर बाहुल हैं। ऐसे में सिंधिया को टक्कर देने के लिए कांग्रेस ने पायलट को उतारने का प्लान बनाया है। तो ऐसे में दो जिगरी दोस्तों के बीच दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल सकता है।
उल्लेखनीय है कि मार्च 2020 में सिंधिया ने जब कांग्रेस से इस्तीफा दिया था तो उनके समर्थन में 22 विधायकों ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया था और परिणामस्वरूप राज्य में कमलनाथ की अगुवाई वाली सरकार गिर गई थी। 15 महीने पुरानी कमलनाथ सरकार के गिरने से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा था। बाद में कांग्रेस से त्यागपत्र देने वाले सभी विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे। अब उपचुनाव में भाजपा ने ज्यादातर विधायकों को टिकट दिया है।