प्लास्टिक कचरा इन दिनों मुसीबत का पहाड़ बन गया है। इसलिए प्लास्टिक कैसे खत्म होगा इस पर दुनियाभर में शोध जारी है। अब शोधकर्ताओं ने ऐसे कीड़ों की खोज की है जो प्लास्टिक कचरे से होने वाले प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकते हैं। ये कीड़े स्टायरोफोम खाते हैं। यह जीनस ‘सुपरवर्म’ (ज़ोफोबास मोरियो) से आता है। ये मिलवर्म और वैक्स वर्म्स कम से कम पांच गुना बड़े हो सकते हैं। ये कीड़े प्लास्टिक को तोड़ने में मदद कर सकते हैं। यह प्लास्टिक को बायोडिग्रेड करने में लगने वाले समय को बहुत कम कर सकते हैं।
स्टडी के मुताबिक, सुपरवर्म लार्वा कीड़े की प्रजाति का ही वर्म है। जो की जोफोबास मोरियो पॉलिस्टाइरीन नाम के खास प्लास्टिक को आसानी से पचा लेता है। इसका कारण कीड़े की आंत में मौजूद बैक्टीरिया है।
पॉलिस्टाइरीन से क्या-क्या बनता है?
थर्माकोल/स्टायरोफोम, डिस्पोजेबल कटलरी, CD केसेस, लाइसेंस प्लेट के फ्रेम्स, इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के पार्ट्स, ऑटोमोबाइल के पार्ट्स पॉलिस्टाइरीन प्लास्टिक से बनते हैं।
माइक्रोबियल जीनोमिक्स जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन में टीम ने अपनी इस खोज के बारे में जानकारी दी है। शोधकर्ताओं का कहना है कि कीड़ों के तीन नियंत्रण समूह बनाए गए थे। इन तीन समूहों में से किसी को भी कुछ नहीं दिया गया, एक को चोकर खिलाया गया और एक को प्लास्टिक खिलाया गया। शोध से पता चला है कि सुपरवर्म के इन तीन समूहों ने सभी खाद्य पदार्थ खाकर अपना जीवन चक्र पूरा कर लिया है। हालांकि, पॉलीस्टाइनिन पर उठाए गए सुपरवर्म का वजन कम था।
इस शोध के परिणामों के आधार पर कहा जा सकता है कि यह कीड़ा बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण संकट से उबरने में हमारी मदद कर सकता है। यदि कीड़े प्लास्टिक को खा सकते हैं और जीवित रह सकते हैं, तो वे संभवतः मनुष्यों द्वारा नदियों और महासागरों में फेंके गए अनगिनत किलो प्लास्टिक को खा सकते हैं।
इससे शोधकर्ताओं को काफी उम्मीदें हैं। क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ व्याख्याता और शोध के वरिष्ठ लेखक क्रिस रिंकी ने कहा, “हमारे पास सुपरवर्म के पेट में एन्कोड किए गए सभी जीवाणु एंजाइमों की एक सूची है।” हम आगे उन एंजाइमों की जांच करेंगे जो पॉलीस्टाइनिन को हटाने की क्षमता रखते हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह प्लास्टिक को रीसायकल करने का एक शानदार और किफायती तरीका हो सकता है।