” बजट 2021-22 में भारत को ऊंची वृद्धि की राह पर ले जाने के लिए स्पष्ट रूपरेखा बनाई गई है। कई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम घाटे में हैं, कइयों को करदाताओं के पैसे से मदद दी जा रही है। बीमार सार्वजनिक उपक्रमों को वित्तीय समर्थन से अर्थव्यवस्था पर बोझ पड़ता है, सरकारी कंपनियों को केवल इसलिए नहीं चलाया जाना चाहिए कि वे विरासत में मिली हैं। व्यवसाय करना सरकार का काम नहीं, सरकार का ध्यान जन कल्याण पर होना चाहिए। सरकार के पास कई ऐसी संपत्तियां हैं, जिसका पूर्ण रूप से उपयोग नहीं हुआ है या बेकार पड़ी हुई हैं, ऐसी 100 परिसंपत्तियों को बाजार में चढ़ाकर 2.5 लाख करोड़ रुपये जुटाये जाएंगे।”
यह कहना है देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का। मोदी कल सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों पर आयोजित किए गए एक वेबीनार में बोल रहे थे। साथ ही वह यह भी संकेत दे रहे थे कि अब देश में निजीकरण की आंधी चलना तय है। इसमें उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र की महज 4 संस्थाओ को छोड़कर सभी का निजीकरण करने की योजना पर भी फोकस किया। इससे अब यह तय हो गया है कि मोदी सरकार देश में प्रइवेटिशन करने जा रही है। इससे सरकार आर्थिकी रूप से मजबूत होने की कोशिश में है। हालाँकि यह पहली बार नहीं है जब किसी प्रधानमंत्री ने देश में निजीकरण की शुरुआत की है बल्कि इससे पहले प्रधानमंत्री रहते अटल बिहारी वाजपेई सरकार कर चुकी है। तब इसकी शुरुआत भर थी और कुछ ही संस्थानों का निजीकरण किया गया था। लेकिन अब मोदी सरकार चाहती है चार क्षेत्रों को छोड़कर सभी का निजीकरण कर देगी। हालाँकि इसका विरोध भी शुरू हो गया है। विरोध पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई का भी हुआ था।
निजीकरण की खबरें सबसे ज्यादा कोरोना संकट के दौरान आई थी। तब कभी बैंकों के निजीकरण की खबरें आती थी तो कभी एयरपोर्ट बिकते सुनाई दिए थे। रेलवे तो जैसे लगता है अब पीपीपी पर ही चलेगा। 100 स्टेशन निजी हाथों में दिए जाने की खबर है। दिल्ली से लखनऊ तक प्राइवेट ट्रेन तेजस का सञ्चालन भी इसी दौरान हुआ था। तब कोरोना संकट ने ऐसा संदेश दिया कि बुरी तरह प्रभावित तबकों को तात्कालिक राहत देने के बजाय बीच संकट में हवाई अड्डों, कोयला खदानों, ट्रेनों और रेलवे स्टेशनो आदि के क्षेत्र में निजी पूंजी के निवेश को गति देने की जरूरत महसूस होने लगी थी।
यह महज संयोग नहीं है कि जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के लोगो को समझा रहे थे कि यही अवसर है अब हमें साहसिक आर्थिक सुधारों की ओर कदम बढाने होंगे। ठीक उसी दिन के ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ समाचार पत्र में में नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने एक आलेख लिखा। जिसमें उन्होंने लिखा कि ‘इट्स नाव ऑर नेवर, वी विल नेवर गेट दिस अपॉरचुनिटी अगेन, सीज इट।’ अपने आर्टिकल में अमिताभ कांत प्रधानमंत्री के सुर में सुर मिला कर देश के लोगो को समझा रहे थे कि अभी नहीं तो कभी नहीं। कोरोना ने हमें आर्थिक सुधारों की गति तेज करने का जो अवसर दिया है, उसे हमें चूकना नहीं है। जब पूरा देश महामारी और लॉक डाउन की त्रासदी से मनोवैज्ञानिक रूप से त्रस्त हो रहा था तब लोगों का इकट्ठा होना, किसी भी तरह का धरना-प्रदर्शन गैर कानूनी तो था ही साथ ही मजदुर वर्ग भी आवागमन के चलते तितर-बितर हुआ।
तब बताया गया कि देश के विकास के लिये श्रम कानून सस्पेंड होने जरूरी हैं और अधिक संख्या में हवाई अड्डों का निजीकरण जरूरी है। यही नहीं बल्कि केंद्र सरकार ने रेलवे, बिजली , शिक्षा ,एन.टी.पी.सी. ,एल.आई.सी , जल निगम, स्वास्थ्य विभाग, परिवहन, भारत संचार निगम लिमिटेड ( बीएसएनएल) और न जाने कितने ही विभागों को निजी हाथों में सौंपने की योजना बना डाली थी। पिछले साल ही रेलवे ने दिल्ली से लखनऊ के रूट पर देश की पहली प्राइवेट ट्रेन तेजस को चलाकर निजीकरण की ओर कदम बढ़ाते हुए रेलवे में आने वाले कुछ सालों में बड़े बदलाव की बात कह सबको चौका दिया था। बताया जा रहा है कि अगले 5 सालों के लिए तैयार किए गए रेलवे के प्लान के तहत 500 ट्रेनें निजी कंपनियों के हाथों में सौंपी जा सकती है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने 2025 तक अहम रूटों पर 500 ट्रेनों को प्राइवेट हाथों में सौंपने का रोड मैप तैयार किया है। इसके अलावा 750 रेलवे स्टेशन भी रखरखाव के लिए निजी कंपनियों को सौंपे जा सकते हैं। इसके लिए निजी सेक्टर से 22,500 करोड़ रुपये तक के निवेश की संभावना जताई जा रही है।
बैंकों की ही बात करें तो जिन बैंकों का विलय नहीं हुआ सरकार उन बैंकों का निजीकरण करने जा रही है । पहले चरण में बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक , सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, यूको बैंक बैंक ऑफ महाराष्ट्र, पंजाब एंड सिंध बैंक में से किन्ही दो का निजीकरण किया जाएगा । जैसा कि कुछ दिन पूर्व बजट में घोषणा की गई है।
अगर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल की बात करें तो उनके दौर में सबसे बड़ा काम निजीकरण का था। तब उनके कार्यकाल में 32 सरकारी कंपनियों और होटलों का निजीकरण किया गया। इन्हें वाजपेयी के 5 साल के कार्यकाल के भीतर निजी कंपनियों को सौंप दिया गया। यही नहीं बल्कि निजीकरण को बढ़ावा देने के लिए देश में पहली बार विनिवेश विभाग का गठन किया गया। इसका काम निजीकरण के प्रस्तावों को फटाफट मंजूरी देना था। इसके साथ ही विनिवेश के लिए एक कैबिनेट कमेटी का भी गठन किया गया ताकि इन प्रस्तावों को जल्द मंजूरी दी जा सके।
सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में सौंपने का सिलसिला साल 1999-2000 में शुरू हुआ। उस वक्त अटल सरकार ने मॉडर्न फूड इंडस्ट्रीज को हिंदुस्तान यूनिलीवर को बेचने का फैसला लिया। इसके बाद भारत एल्युमीनियम कंपनी, हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड, विदेश संचार निगम लिमिटेड और आईटी फर्म सीएमसी लिमिटेड को बेचने का काम किया गया। वाजपेयी सरकार ने घाटे में चल रहे कई सरकारी होटल को निजी क्षेत्र को दे दिया। इनमें कोलकाता के कोवलम अशोक बीच रिजॉर्ट और होटल एयरपोर्ट अशोक शामिल थे। इसके अलावा नई दिल्ली में स्थित रंजीत होटल, कुतब होटल और होटल कनिष्का को भी बेच दिया गया। हालाँकि सरकारी कंपनियों के निजीकरण का यह फैसला बहुत आसान नहीं था। वाजपेयी को इसके लिए खासा विरोध झेलना पड़ा। यहां तक कि बाल्को के निजीकरण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका तक दाखिल की गई थी।