जम्मू कश्मीर सचिवालय में इतवार 25 अगस्त की सुबह केवल तिरंगा फहराया गया। अनुच्छेद 370 हटाने के तीन सप्ताह बाद तक सचिवालय में जम्मू कश्मीर का झंडा तिरंगे के साथ फहराया जाता रहा था। लेकिन इतवार की सुबह केवल तिरंगे के लिए हुई। हालांकि आधिकारिक तौर पर इसकी बाबत कोई जानकारी राज्य सरकार द्वारा नहीं दी गई। माना जा रहा था कि 1 नवंबर को केन्द्र शासित प्रदेश बनने जा रहे जम्मू कश्मीर और लद्दाख के बाद ही का झंडा हटाया जायेगा। बहरहाल तिरंगा तो राज्य में लहरा रहा है लेकिन घाटी अंशात है। विपक्षी दलों के डेलीगेशन को शनिवार शाम श्रीनगर एयरपोर्ट से ही वापस दिल्ली भेजने और डेलीगेशन के साथ गए मीडिया कर्मियों को कवरेज करने से जबरन कोई जाने बाद जम्मू कश्मीर प्रशासन के इन दावों की हवा निकलती नजर आ रही है कि राज्य में स्थितियां सामान्य हो रही हैं। इस बीच राज्य में संचार माध्यमों और प्रेस पर लगे बैन का मुद्दा गर्मा रहा है। ‘कश्मीर टाइम्स’ की संपादक अनुराध भसीन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर घाटी में तत्काल संचार व्यवस्था दुरस्त करने की मांग की है। भसीन की याचिका के बाद प्रेस काऊंसिल आॅपफ इड़िया ने भी इस याचिका संग उसकी बात भी सुने जाना का आग्रह कोर्ट से किया है। प्रेस काऊंसिल ने कोर्ट में पफरियाद लगाई है कि यह मामला प्रेस की स्वतंतत्र से जुड़ा होने के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता का मसला है। (“Concerns the rights of the Journalist/media for free and fair reporting on the one hand and national interest of integrity and sovereignty on the other hand”)
प्रेस काऊंसिल की इस फरियाद के बाद खुद काऊंसिल में विवाद शुरू हो गया। काऊंसिल के सदस्य जयशंकर गुप्ता का कहना है कि बगैर गवर्निग बाडी से सलाह किए काऊंसिल के अध्यक्ष का सुप्रीम कोर्ट जाना गलत है। दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत न्यायधीश सी.के. प्रसाद का मानना है कि पत्रकारों के अधिकारों की रक्षा करना काऊंसिल का पहला काम है। उन्होंने याचिका को सही ठहराते हुए इसे अपने अधिकार क्षेत्र का मामला करार दिया है।
इस बीच जो छिटपुट खबरें राज्य से छनकर आ रही हैं वे स्पष्ट इशारा कर रही है कि घाटी अशांत है, बड़े राजनेता नजरबंद है और मीडिया निष्पक्ष समाचार दे पाने में असमर्थ है।