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 वन नेशन वन राशन  के बाद अब वन  नेशन वन  इलेक्शन

देश में काफी लंबे समय से उठा रही वन नेशन वन इलेक्शन की मांग को लेकर एक बार फिर केंद्र सरकार ने पहल शुरू कर दी है। दरअसल ,वन नेशन वन टैक्स फिर वन नेशन राशन कार्ड के बाद अब वन  नेशन वन  इलेक्शन पर जोर दे रही है। यह मुद्दा भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के अहम प्रोजेक्ट में से एक है।

 

 


केंद्रीय मंत्री रिजिजू

 

ऐसे में सरकार लगातार इस पर विचार कर रही है। इस संबंध में केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने अहम जानकारी दी है। उन्होंने कहा है कि इन चीजों के लिए  हर दृष्टि से कर समझने की कोशिश करनी होगी। सबसे पहले देश में फर्जी मतदान को रोकने के लिए सरकार ‘एक देश, एक मतदाता सूची’ की अवधारणा पर विचार कर रही है।

इसके साथ ही ऑनलाइन मतदान प्रणाली पर भी विचार चल रहा है। रिजिजू ने लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान  सदस्यों के  प्रश्नों का उत्तर देते हुए यह बात कही है। इसके अलावा भाजपा के अजय निषाद के प्रश्न के उत्तर में जानकारी देते हुए कानून मंत्री कहा कि पूरे देश में फर्जी मतदान को रोकने के लिए सभी राज्यों एवं केंद्रशासित राज्यों के लिए केवल एक ही मतदाता सूची लाने का विचार है। उन्होंने कहा कि हमने निर्वाचन आयोग से इस संबंध में बात की है।  पिछले दिनों मतदाता सूची को आधार के साथ लिंक करने का प्रावधान रखा गया है। यह अभी अनिवार्य नहीं, स्वैच्छिक है। लेकिन इससे फर्जी मतदान रुकने में सफलता की संभावना है।

 

मतदान में होनी चाहिए साफ-सुथरी  प्रणाली

 

केंद्रीय मंत्री रिजिजू ने कहा कि आगे भी चुनाव सुधार के लिए जरूरी कदम उठाएंगे। एक देश, एक मतदाता सूची’ हो, ऐसी सरकार की सोच है।  देश में साफ-सुथरी मतदान प्रणाली होनी चाहिए। प्रवासी भारतीयों को मताधिकार देने के एक प्रश्न के जवाब में मंत्री ने कहा कि यह सकारात्मक सुझाव है। उन्होंने कहा कि हमने निर्वाचन आयोग से इस संबंध में बात की है कि ऑनलाइन मतदान प्रणाली को कैसे प्रोत्साहित किया जा सकता है, इस पर विचार कर रहे हैं।

 

क्या है वन नेशन वन इलेक्शन

 

अब भारत में लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव अलग-अलग होते हैं।  जब किसी राज्य की एक विधानसभा का कार्यकाल पूरा होता है तब वहां चुनाव करवा दिए जाते हैं, जैसे कहीं 2023  में चुनाव होंगे तो कहीं 2024 में भी हो सकते हैं।  वहीं, लोकसभा के भी अपने कार्यकाल के हिसाब से चुनाव होते हैं ,लेकिन  अब बार बार चुनाव में होने वाले खर्चे को कम करने के लिए सरकार वन नेशन वन इलेक्शन पर विचार कर रही है। ऐसे में देश में लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव भी संपन्न करवा दिए जाएंगे।

 

 पहले भी थी वन नेशन वन इलेक्शन की व्यवस्था

 

ऐसा पहली बार नहीं है कि भारत में वन नेशन वन इलेक्शन की व्यवस्था पर विचार किया जा रहा है। इससे पहले भारत में इसी तरीके से चुनाव करवाए जाते रहे हैं।  भारत में साल 1967 तक विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक ही साथ होते थे। हालांकि. बाद में कुछ राज्यों में 1968 और 1969 में चुनाव करवाने पड़े और लोकसभा के चुनाव साल 1970 में हुए।  इसके बाद कई बार एक साथ चुनाव करवाने को लेकर विचार किया गया लेकिन यह हो नहीं पाया।  अब वर्तमान भारत सरकार इस पर जोर दे रही है।

 

कैसे संभव है  वन नेशन वन इलेक्शन चुनाव

 

अगर वन नेशन वन इलेक्शन चुनाव की व्यवस्था लागू होती है तो कई राज्यों में कार्यकाल के बीच में ही चुनाव करवाना होगा या फिर उन विधानसभा चुनावों को थोड़ा शिफ्ट करना होगा, जहां लोकसभा चुनाव के आस-पास ही चुनाव करवाए जाते हैं।  ऐसे में हो सकता है कि करीब 6 महीने के भीतर होने वाले चुनावों को साथ ही करवा लिया जाएगा।

माना जाता है कि करीब 12 राज्यों के चुनाव लोकसभा चुनाव के आस-पास ही होते हैं, ऐसे में इन राज्यों में ज्यादा मुश्किल नहीं  आएगी।  इसके अलावा अगर फेज के हिसाब से होते हैं तो दो बार के चुनाव में प्रक्रिया पूरी हो पाएगी और दो बार के चुनाव के बाद एक साथ सही तरीके से चुनाव होने लगेंगे। इसमें आधे राज्यों के चुनाव एक लोकसभा के साथ और दूसरे राज्यों के चुनाव अगली लोकसभा में हो सकते हैं।

 

क्यों हो रहा इसका समर्थन

 

दरअसल, एक साथ चुनाव करवाने की अहम वजह पैसा ही है। एक बार चुनाव करवाने में काफी पैसे खर्च होते हैं, ऐसे में एक बार में ही दोनों चुनाव हो जाएंगे तो चुनाव पर होने वाला खर्चा काफी कम हो जाएगा।

 

क्यों हो रहा इसका विरोध

 

कई राजनीतिक पार्टियां इसका विरोध भी कर रही हैं।  दरअसल, उनका कहना है कि राज्य और देश के मुद्दे अलग अलग हैं और एक साथ चुनाव होने पर मतदाता  की सोच  पर असर पड़ता है। अगर पांच साल में एक ही बार चुनाव होगा तो सरकार की जवाबदेही भी जनता के लिए कम हो जाएगी। इसके अलावा उनका कहना है कि अगर एक साथ चुनाव के लिए विधानसभा चुनाव आगे बढ़ाए गए तो वहां राष्ट्रपति शासन लगा रहेगा, जो लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।

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