देश में भूख मिटाने के लिए गरम-गरम खाने से लेकर ठंडे पानी तक प्लास्टिक की वस्तुओं के उपयोग से दिन – प्रतिदिन बीमारियों का खतरा बढ़ता ही जा रहा है। इसी प्लास्टिक के बड़े टुकड़े जब टूटकर छोटे-छोटे कणों में बदल जाते हैं, तो उन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है। प्लास्टिक के 1 माइक्रोमीटर से 5 मिलीमीटर आकार के टुकड़े माइक्रोप्लास्टिक है। माइक्रोप्लास्टिक आज सागरों से लेकर पानी के हर स्रोत तक, मिट्टी और हवा तक और हमारे खाने की चीजों में घुल चुका है। यहां तक की शिशुओं के लिए जरुरी मां के दूध में भी माइक्रोप्लास्टिक के होने के मामले सामने आने लगे हैं ।
दरअसल, पॉलीमर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, मानव दूध में प्लास्टिक के कण पाए गए हैं। इस नई जानकारी से दुनियाभर में चिंता जताई जा रही है। प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है कि अगर स्तन के दूध में प्लास्टिक के कण पाए जाते हैं, तो यह नवजात शिशुओं के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों के लिए भी खतरनाक है। इस पृष्ठभूमि में प्रकाशित यह अध्ययन क्या है? आइए इस पर एक नजर डालते हैं।
पॉलिमर जर्नल में एक अध्ययन रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। इस रिपोर्ट के अनुसार मानव दूध में 5 मिलीमीटर से कम आकार के माइक्रोप्लास्टिक कण पाए गए हैं। इस अध्ययन के लिए रोम में कुल 34 स्वस्थ माताओं से दूध के नमूने लिए गए। इस अध्ययन में स्तन के दूध में माइक्रोप्लास्टिक पाया गया। अध्ययन में कहा गया है कि यह चिंता का विषय है और नवजात शिशुओं पर इसका बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। ये माइक्रोप्लास्टिक 34 सैंपल में से कुल 26 सैंपल में पाए गए। इन माइक्रोप्लास्टिक्स को रंग, आकार, रासायनिक संरचना के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
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शोधकर्ताओं ने मानव दूध में पॉलीथीन, पीवीसी, पॉलीप्रोपाइलीन के नमूने पाए हैं। इन सभी प्रकार के प्लास्टिक का उपयोग पैकेजिंग के लिए किया जाता है। इस अध्ययन में शोधकर्ता 2 माइक्रोन से छोटे आकार के प्लास्टिक का पता नहीं लगा पाए। हालांकि, शोधकर्ताओं ने संभावना जताई है कि मां के दूध में 2 माइक्रोन से कम आकार वाले प्लास्टिक के कण भी मौजूद होते हैं।
माइक्रोप्लास्टिक इंसानों के लिए कितना हानिकारक है?
समुद्र से लेकर जिस हवा में हम सांस लेते हैं, उसमें माइक्रोप्लास्टिक मौजूद है। अपने बेहद छोटे आकार और वजन के कारण, वे हवा के माध्यम से लगभग कहीं भी यात्रा कर सकते हैं। इतना ही नहीं, माइक्रोप्लास्टिक कण पहाड़ी और ध्रुवीय क्षेत्रों में भी पाए जाते हैं जहां मानव निवास नहीं है। माइक्रोप्लास्टिक कण दूषित हवा, भोजन और पानी के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश करते हैं। एक अध्ययन के अनुसार, हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन के माध्यम से हर साल लगभग 52 हजार माइक्रोप्लास्टिक कण हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं। माइक्रोप्लास्टिक फेफड़ों के कैंसर का कारण बन सकता है।
मानव शरीर में पहले भी माइक्रोप्लास्टिक कण पाए जा चुके हैं। इस साल मार्च में एनवायरनमेंट इंटरनेशनल जर्नल में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ था। इस अध्ययन के लिए कुल 22 लोगों के रक्त के नमूने लिए गए। शोधकर्ताओं ने कुल नमूनों में से 80 प्रतिशत में माइक्रोप्लास्टिक कण पाए।
हाल के एक अध्ययन में स्तन के दूध में माइक्रोप्लास्टिक कण पाए जाने के बाद कई वैज्ञानिकों ने स्तनपान बंद नहीं करने की सलाह दी। उन्होंने राय व्यक्त की है कि बच्चे को मां के दूध के लाभ दूध में माइक्रोप्लास्टिक्स के कारण होने वाले नुकसान से कहीं अधिक हैं। उन्होंने यह भी कहा कि स्तनपान को कम करने के बजाय प्रदूषण को कम करने के लिए लोगों में जागरूकता पैदा की जानी चाहिए।