देश के 31 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में से अब केवल आठ राज्यों में भाजपा की अपने दम पर सरकार है। 18 राज्यों में वह सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है। वर्ष 2018 में भाजपा अपने उत्कर्ष पर थी। तब देश के 76 प्रतिशत हिस्से पर उसका कब्जा था जो 2021 आते-आते मात्र 37.4 प्रतिशत रह गया है। भाजपा आलाकमान भी समझ रहा है कि जहां-जहां उसकी सरकार है वहां एंटी इन्कम्बेंसी के चलते सत्ता में वापसी कठिन है। भाजपा ने इसकी तोड़ के लिए अपने शासित प्रदेशों में मुख्यमंत्री बदलने का दांव चला है। गुजरात, उत्तराखण्ड और कर्नाटक के बाद अब हिमाचल के मुख्यमंत्री की बारी है
एक तरफ महंगाई की मार तो दूसरी तरफ किसानों के प्रति संवेदनहीनता के चलते केंद्र सरकार के प्रति लोगों में नाराजगी बढ़ती जा रही है। देश में हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा और विधानसभा के उपचुनावों के नतीजे इसी ओर इशारा कर रहे हैं। खासकर भाजपा शासित पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के नतीजों ने सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित किया है। यहां एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में कमल कहीं नहीं खिल सका। जिस कारण मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व पर सवाल उठने लगे हैं। राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज हो गई है कि बहुत जल्द भाजपा एक और प्रदेश में अपने मुख्यमंत्री को बदल सकती है। विगत एक सप्ताह के अंदर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को पार्टी आलाकमान ने दो बार दिल्ली तलब किया है। इससे इन चर्चाओं को और बल मिला है।
हिमाचल प्रदेश राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का गृह राज्य है। इस कारण भी यह राज्य भाजपा के लिए अधिक महत्वपूर्ण है। यहां की चुनावी हार-जीत राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को भी प्रभावित करती है। हिमाचल में एक साल बाद विधानसभा चुनाव होने वाला है। ऐसे में इस उपचुनाव को आगामी विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था। इस सेमीफाइनल में कांग्रेस ने भाजपा को जबरदस्त मात दी है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर 4 साल से सरकार चला रहे हैं। इस दौरान बतौर मुख्यमंत्री उनकी कार्यशैली पर सवाल उठते रहे हैं। कई विधायक और स्थानीय नेता मुख्यमंत्री की कार्यशैली से नाराज हैं। उस पर उपचुनाव में पार्टी की हार ने सीधे मुख्यमंत्री की कुर्सी को कमजोर कर दिया है। यही वजह है कि उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के बाद अब हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी तलवार लटक गई है।
भाजपा की हार के मुख्य कारण पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह हिमाचल के छह बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वे कांग्रेस के कद्दावर एवं जनाधार वाले नेता रहे हैं। पूर्व सीएम की प्रभावशाली छवि मंडी लोकसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस की जीत का कारण बना। कांग्रेस ने सहानुभूति कार्ड खेलते हुए उनके निधन के बाद उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह को यहां से खड़ा किया। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने अपने पति (वीरभद्र सिंह) को श्रद्धांजलि के रूप में जनता से वोट मांग जीत का परचम लहराया। गौरतलब है कि मंडी सीट से वीरभद्र सिंह तीन बार सांसद चुने गए थे। 1971 में पहली बार यहां के सांसद बने वीरभद्र सिंह 1980 और 2009 में भी यहीं से संसद पहुंचे थे। 2004 में पहली बार चुनाव मैदान में उतरी उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह ने यहां से प्रचंड बहुमत प्राप्त किया था। 2013 में इस सीट पर हुए उपचुनाव में भी प्रतिभा सिंह ने जीत दर्ज की थी। 2014 के आम चुनाव में मोदी लहर के चलते उन्हें भाजपा के रामस्वरूप वर्मा से हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2019 में भी राम स्वरूप वर्मा भी भारी मतों से यहां कमल खिलाया था। मार्च, 2021 में उनके निधन के चलते इस सीट पर उपचुनाव हुआ। जिसमें भाजपा प्रत्याशी को करारी हार मिली है।
मंडी लोकसभा के अतिरिक्त तीन विधानसभा सीटों पर की नतीजे भी भाजपा के खिलाफ गए हैं।
फतेहपुर विधानसभा सीट हमेशा से ही कांग्रेस का गढ़ रही है। 2017 में यहां के चुनाव जीते कांग्रेस के सुजान सिंह पठानिया की फरवरी, 2021 में मृत्यु हो गई थी। इस उपचुनाव में कांग्रेस ने उनके पुत्र भवानी सिंह पठानिया को मैदान में उतारा। अर्की विधानसभा सीट पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह के निधन से खाली हुई थी। यहां भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। जुब्बल-कोटखाई विधानसभा भाजपा नेता नरिंदर जरागटा के निधन के चलते खाली हुई थी। जरागटा इस सीट से दो बार के विधायक रह चुके थे। भाजपा को इस सीट पर सबसे करारी हार का सामना करना पड़ा।
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के लिए सबसे बड़ी समस्या मंडी लोकसभा चुनाव में हार होना है। 2019 में इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी की जीत का अंतर करीब चार लाख था। मंडी लोकसभा के तहत 17 विधानसभा सीट हैं। 2019 में इस सीट पर भाजपा को 68.75 प्रतिशत मत मिले थे जबकि कांग्रेस प्रत्याशी को मात्र 25.68 वोट प्राप्त हुए थे। मात्र दो साल के भीतर हुए उपचुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़कर 49.3 प्रतिशत हो गया तो भाजपा का वोट प्रतिशत 20.7 से घटकर 48.05 प्रतिशत रह गया।
महंगाई की मार हिमाचल प्रदेश में 2017 से भाजपा की सरकार है और वहां के लोग लगातार बढ़ती महंगाई से परेशान हैं। चुनाव प्रचार के दौरान लोगों ने इस मुद्दे पर बेबाकी से अपनी राय भी रखी। वहां के लोगों में पार्टी के प्रति नाराजगी साफ झलकती है। हिमाचल प्रदेश के लोगों का मानना है कि 4 बरसों में न तो लोगों को रोजगार मिला और न ही विकास के काम हुए। ऐसे में उन्होंने अपना गुस्सा उपचुनाव में कांग्रेस को वोट देकर निकाला। उपचुनाव के नतीजे आने के बाद खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने माना कि महंगाई ही भाजपा की हार की वजह रही।
भाजपा का वोट बैंक समझा जाने वाला यूथ इस उपचुनाव में वोट डालने ही नहीं आया। भाजपा के इस वोट बैंक की बेरुखी इसी बात से समझी जा सकती है कि मंडी संसदीय सीट पर महज 57.73 प्रतिशत मतदान हुआ।
प्रदेश भाजपा में अंतर्कलह
पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल के बीच पुराने मतभेद हैं। किसी समय हिमाचल के सबसे ताकतवर नेता रहे धूमल ने ही सीएम रहते हुए नड्डा को हिमाचल की राजनीति से बाहर करने के मकसद से राज्यसभा भेजा, लेकिन समय ने ऐसी पलटी खाई कि नड्डा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। जिसके बाद धूमल और उनके नेता एक पार्टी में होने के बावजूद भी अलग हैं।
नड्डा-धूमल की इस लड़ाई की वजह से ही पार्टी ने जुब्बल-कोटखाई से चेतन बरागटा का टिकट काटते हुए नीलम सरैइक को उम्मीदवार बनाया था जिन्हें महज 2644 वोट मिले। भाजपा से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले बरागटा ने उपचुनाव में 23662 वोट हासिल किए। अगर भाजपा आपसी खींचतान को छोड़कर जुब्बल कोटखाई से चेतन को टिकट देती तो शायद यहां का नतीजा कुछ और रहता।
पांच सीएम बदल चुकी है पार्टी
गुजरात के सीएम विजय रुपाणी पिछले छह महीने में हटाए जाने वाले बीजेपी के 5वें मुख्यमंत्री हैं। इससे पहले असम में चुनाव नतीजों के साथ ही नेतृत्व परिवर्तन किया गया। असम में सर्बानंद सोनोवाल की जगह हेमंत बिस्वा सरमा मुख्यमंत्री बनाए गए। उत्तराखण्ड में दो सीएम बदले गए, पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर तीरथ सिंह रावत को सत्ता की कमान सौंपी गई। फिर महज तीन महीने बाद ही उनकी जगह पुष्कर धामी को सीएम बनाया गया है।
कर्नाटक से बीएस येदियुरप्पा की विदाई हुई और उनकी जगह बीएस बोम्मई को मुख्यमंत्री की कमान सौंपी गई। इसके बाद बारी आई गुजरात की। वहां केंद्रीय ग्रह मंत्री के करीबी माने जाने वाले विजय रुपाणी को हटाकर भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बना गया है। माना जा रहा है कि बीजेपी ऐसे ही कई दूसरे राज्यों में भी सीएम का चेहरा बदलने का दांव चल सकती है। ताकि जनता की नाराजगी को कम किया जा सके। इनमें उपचुनाव के नतीजों के बाद जयराम ठाकुर का नंबर सबसे आगे चल रहा है।
भाजपा की राजनीति
दरअसल, 2014 के लोकसभा चुनाव के बादबीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने विभिन्न राज्यों में नई लीडरशिप बनाना शुरू कर दिया था। हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बीजेपी ने नए चेहरों को सत्ता की कुर्सी पर बैठाया। जहां-जहां ये दांव असरदार नहीं रहा, वहां वहां बीजेपी सरकार बदलाव करने में जुट गयी। पांच महीनों में चार राज्यों में जो बदलाव हुए हैं, उससे बाकी राज्यों में बीजेपी सरकार को लेकर सवाल उठने लगे हैं कि क्या गोवा, हिमाचल, हरियाणा, त्रिपुरा,मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भी यही फॉर्मूला लागू हो सकता है?
भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने अभी तक जितने भी मुख्यमंत्री बदलने के फैसले किए हैं उनमें सरकार का मुख्य उद्देश्य पार्टी को आलोचनाओं से बचाना है। ताकि जनता को यह संदेश पहुंचाया जा सके कि सरकार जनता के हित को लेकर जागरूक है। इसका सीधा-सीधा प्रभाव अब जयराम ठाकुर की कुर्सी पर पड़ता दिख रहा है।