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महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन न देना भेदभावपूर्ण और तर्कहीन: सुप्रीम कोर्ट

“हमें यह मानना ही पड़ेगा कि यह समाज पुरुषों द्वारा…पुरुषों के लिए बनाया गया है।कुछ ऐसे स्ट्रक्चर मौजूद हैं,जो भले नुकसानदेह ना लगें लेकिन महिलाओं के लिए वो बहुत नुकसानदेह हैं। ये स्ट्रक्चर चुपचाप से पैट्रियार्की को मजबूत करते रहते हैं। अगर इनमें बदलाव नहीं होता है तो महिलाओं को कभी भी समान अवसर नहीं मिल पाएगा।” महिलाओं को स्थायी कमीशन के लिए नियुक्त करने के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अंत में यह बात जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कही है।

सुप्रीम कोर्ट ने 25 जनवरी,गुरुवार को सेना में स्थायी कमीशन को लेकर महिलाओं के लिए मेडिकल फिटनेस की आवश्यकता को ‘मनमाना’ और ‘तर्कहीन’ माना है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हमारे समाज की संरचना पुरुषों द्वारा पुरुषों के लिए बनाई गई है, इसमें समानता की बात झूठी है।

कोर्ट ने इस मामले में कहा कि सेना ने मेडिकल के लिए जो नियम बनाए हैं, वो महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण रवैये को दिखाते हैं। लेकिन महिलाओं को बराबर अवसर दिए बिना रास्ता नहीं निकल सकता। कोर्ट ने 2 महीने में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए कहा है।

सुप्रीम कोर्ट : फिटनेस के आधार पर स्थायी कमीशन न देना गलत

सुप्रीम कोर्ट ने महिला अधिकारियों को फिटनेस के आधार पर स्थायी कमीशन नहीं देने को गलत बताया, वो भी तब जब अदालत पहले ही इस पर अपना फैसला सुना चुकी थी।कोर्ट ने कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट ने इस पर 2010 में पहला फैसला दिया था। इस फैसले को 10 साल बीत गए हैं और मेडिकल फिटनेस, शरीर के आकार के आधार पर स्थायी कमीशन न दिया जाना भेदभाव को दिखाता है और यह अनुचित है।

कोर्ट ने महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन न देने पर अप्रत्यक्ष रूप से भेदभाव करने के लिए सेना की आलोचना की। कोर्ट ने कहा कि भारत के लिए अलग अलग क्षेत्रों में गौरव अर्जित करने वाली महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन के अनुदान देने के लिए नजरअंदाज किया गया।कोर्ट ने सेना को दो महीने के भीतर महिला अधिकारियों के लिए परमानेंट कमीशन के अनुदान पर विचार करने के आदेश दिए हैं।

स्थायी कमीशन के लिए 80 महिला अधिकारियों ने दी याचिकाएं

जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने सरकार की इस दलील को विचलित करने वाला और समता के सिद्धांत के विपरीत बताया था जिसमें कहा गया था कि शारीरिक सीमाओं और सामाजिक चलन को देखते हुए महिला सैन्य अधिकारियों की कमान पदों पर नियुक्ति नहीं की जा रही है।कोर्ट ने निर्देश दिया था कि शॉर्ट सर्विस कमीशन में सेवारत सभी महिला सैन्य अधिकारियों को स्थायी कमीशन दिया जाए, भले ही मामला 14 साल का हो या 20 साल की सेवा का हो।

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सेना की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) मूल्यांकन और देर से लागू होने पर चिकित्सा फिटनेस मानदंड महिला अधिकारियों के खिलाफ भेदभाव करता है। अदालत ने कहा, ‘मूल्यांकन के पैटर्न से एसएससी (शॉर्ट सर्विस कमीशन) महिला अधिकारियों को आर्थिक और मनोवैज्ञानिक नुकसान होता है।’ महिला अधिकारी चाहती थीं कि उन लोगों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की जाए जिन्होंने कथित रूप से अदालत के पहले के फैसले का पालन नहीं किया था।

सेना में स्थायी कमीशन के लिए 80 महिला अधिकारियों की तरफ से याचिकाएं दायर की गईं थीं, जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाया है।

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