कोरोना संकट के बीच देश में फिलहाल अनाज और फल-सब्जी की कोई किल्लत नहीं है। पर कृषि विशेषज्ञों और खाद्य एवं कृषि संगठन (फाओ) ने आगाह किया है कि अगर 20 अप्रैल के बाद लॉकडाउन में छूट से सप्लाई चेन बहाल नहीं हो पाई तो संकट की स्थिति आ सकती है। माना जा रहा है कि चुंकि होटल, रेस्तरां आदि के तरफ से लॉकडाउन होने के कारण अचानक मांग खत्म हो गया जिसके कारण चीजों की कीमत बहुत हद तक नियंत्रण में है पर साल के उत्तरार्द्ध में अचानक मांग बढ़ेगा और संकट आएगी।
जाने-माने कृषि विशेषज्ञ और मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के नाबार्ड चेयर प्रोफेसर आर रामकुमार का कहना है, “फसल की कटाई और खरीद-बिक्री पर लॉकडाउन के कारण बुरा असर पड़ा है। क्योंकि सरकारी एजेंसियों से अनाज की खरीद प्रक्रिया प्रभावित हो गई; निजी व्यापारी खेतों से अनाज नहीं उठा सके; खेतीहर मजदरों में कमी के कारण रबी की बुवाई नहीं हो सकी; परिवहन क्षेत्र में ड्राइवरों की कमी हो गई; राजमार्गों पर आवागमन के रुक जाने के चलते कृषि उत्पाद एक जगह से दूसरी जगह नहीं पहुंच सके; मंडियों में कामकाज या तो ठप पड़ गया या फिर नाम मात्र को रह गया; खुदरा कृषि बाजार में भी कामकाज ठप है।”
प्रोफेसर रामकुमार का कहना है कि इन कारकों के चलते सभी फसलों जैसे- गेहूं, अंगूर, तरबूज, खरबूज, केला, कपास, मिर्च, हल्दी, धनिया, प्याज, आलू वगैर के लिए संकट की स्थिति आ गई है। इसी वजह से उपज की कीमत कम हो गई है। संकट का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महाराष्ट्र में टमाटर उत्पादकों को प्रति किलो 2 रुपये भी नहीं मिल रहे। अंगूर उत्पादकों को कुल मिलाकर करीब एक हजार करोड़ का नुकसान उठाना पड़ रहा है। क्योंकि मांग खत्म हो गई है।
25 मार्च के आंकड़े बताते हैं कि गेहूं की कीमत मध्य प्रदेश में 2200 रुपये प्रति किवंटल से गिरकर 1600 रुपये प्रति क्विंटल रह गई है। कई फसलों की कीमतें तो न्यूतम समर्थन मूल्य से भी नीचे चली गई हैं। पंजाब में जो सब्जी 15 रुपये प्रति किलो बिक रही थी, आज 1 रुपये किलो के भाव से बिक रही है। दिल्ली की मंडियों में जनवरी 2020 में चिकेन की कीमत 55 रुपये प्रति किलो होती थी, लेकिन मार्च में घटकर 24 रुपये प्रति किलो रह गई है। तमिलनाडु में अंडे की कीमत 4 रुपये घटकर 1.95 रुपये रह गई।
लॉकडाउन के बाद बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों का दिल्ली, हरियाणा, गुजरात, केरल और पंजाब जैसे शहरों से भी संख्या में पलायान हुआ है जिसके चलते फसलों की कटाई के लिए संकट खड़ा हो गया है। कई किसान फसलों को खेत में ही छोड़ देने को मजबूर हुए हैं। जहां कहीं मशीन से कटाई होती है, वहां मशीनों को लाने और ले जाने में परेशानी हो रही है। दूसरी दिक्कत ये है कि कुछ इलाकों में इन मशीनों को चलाने वाले ड्राइवर/ऑपरेटर नहीं मिल रहे हैं। मशीन मरम्मत की दुकानें भी बंद हैं। बीते साल में इस्तेमाल हुई मशीनों के मरम्मत के लिए मेकैनिक नहीं मिल रहे हैं। स्पेयर पार्ट्स आसानी से नहीं मिल रहे। जिसके चलते कई मशीनें बेकार हो गई हैं।
हरियाणा किसानों का प्रदेश है और वहां अनाज की ऑनलाइन खरीद शुरू हो गई है। हालांकि, व्यापारियों की तरफ से इसका विरोध किया जा रहा है। चंडीगढ़ में रहने वाले कृषि विशेषज्ञ देवेंदर शर्मा ने बताया, “हरियाणा और पंजाब, दोनों राज्यों ने सही कदम उठाए हैं पर देखने वाली बात होगी कि वे इनपर किस तरह अमल कर पाते हैं।”
देवेंदर शर्मा आगे कहते हैं, “महामारी के कारण कई देशों में मजदूरों की कमी हो गई है। यहां तक कि इंग्लैंड में भी सरकार होटल वगैरह के कर्मचारियों को प्रोत्साहित कर रही है कि वे ग्रामीण इलाकों में जाकर किसानों के हाथ बंटाएं। फाओ ने भी मजदूरों की कमी को महसूस किया है। फाओ का आकलन है कि महामारी के बाद फ्रांस, इंग्लैंड और अमेरिका में क्रमशः दो लाख, 80 हजार और 60 हजार मौसमी मजदूरों की कमी आ गई है। सीमाओं के बंद हो जाने के कारण मैक्सिको के मजदूर अमेरिका नहीं जा पा रहे और यूक्रेन के मजदूर पोलैंड की मांग को पूरा नहीं कर पा रहे।”
ऐसे हालात को देखते हुए माना जा रहा है कि भारत में रबी की कटाई लंबे समय तक चललेगा। अनुमान है है कि यह जून या जुलाई तक भी खिंच सकती है। अगर अनाज खरीद की प्रक्रिया तेजी से ढर्रे पर नहीं आई तो किसान खरीफ की बुवाई ठीक से नहीं कर पाएंगे जिससे तकलीफें और अधिक बढ़ती चली जाएंगी।