- कृष्ण कुमार
त्रिवेन्द्र रावत सरकार और प्रदेश भाजपा संगठन के बीच मतभेद की खबरें कई बार सामने आती रही हैं, लेकिन अब तो सरकार के भीतर मतभेद की खबरें भी खुले तौर पर चर्चाओं में हैं। कभी एक मंत्री सरकार के कामकाज पर सवाल खड़ा कर देता है, तो दूसरा मंत्री पार्टी संगठन पर बयान देकर मामले को चर्चाओं में ले आता है। विधायक भी पीछे नहीं हैं। कभी-कभार वे भी बयानों की बहती गंगा में हाथ धोकर अपनी नाराजगी व्यक्त कर देते हैं। राजनीतिक तौर पर माना जाता है कि इस तरह के मतभेद एक सामान्य बात होती है, लेकिन जब संवैधानिक पदों पर बैठे हुये राजनेताओं के बीच आपसी मतभेद मनभेद में बदल जाते हैं, तो एक साथ कई राजनीतिक चर्चाओं का जन्म होता है। कुछ इसी तरह से प्रदेश में दिखाई दे रहा है। विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के बीच एक-दूसरे की काट करने के लिए दिए गये बयान आजकल राजनीतिक गलियारों में खूब सुनाई दे रहे हैं।
मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष के बीच बयानों का मामला इस बार गैरसैंण को लेकर सामने आया है। जहां विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल गैरसैंण में विधानसभा सत्र करवाये जाने के पक्ष में हैं, तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत वहां सुविधाओं की कमी होने की बात करते रहे। इसके बाद अध्यक्ष का बयान आया कि अब गैरसैंण में सभी सुविधायें जोड़ दी गई हैं, तो मुख्यमंत्री का बयान आया कि कई बुजुर्ग और उम्रदराज विधायकों को गैरसैंण में ठंड के चलते बहुत समस्या हो सकती है जिस कारण गैरसैंण मंे शीतकालीन सत्र करवाना ठीक नहीं है।
गैरसैंण पर अब सरकार के भीतर से ही मतभेद उभरने लगे हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत ठंड के चलते वहां शीतकालीन सत्र नहीं करवाना चाहते, तो विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल और कई भाजपा विधायक वहां सत्र कराने के पक्ष में हैं। मुख्यमंत्री ने वहां विट्टाायकों को ठंड लगने की जो बात कही उससे कांग्रेस और आंदोलनकारी संगठनों के तेवर गरम हैं
मुख्यमंत्री के इस बयान से प्रदेश की राजनीति गरमा गई है। कांग्रेस गैरसैंण के नाम पर छलावा करने के आरोप लगा रही है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करते हुये कहा है कि जब शिमला और शिलांग में विधानसभा सत्र चल सकते हैं, जबकि वहां सबसे ज्यादा ठंड होती है, तो गैरसैंण में सरकार सत्र चलाने से परहेज क्यों कर रही है। उम्रदराज विधायकांे का बहाना क्यों बना रही है। हांलाकि विधानसभा अध्यक्ष ने गैरसैंण में सत्र कराये जाने को लेकर सरकार के पाले में गेंद डाल दी है और कहा है कि सरकार की इच्छा पर ही तय होता है कि सरकार कहां सत्र बुलाये। ऐसा नहीं है कि केवल इसी मामले को लेकर प्रेमचंद अग्रवाल के बयान मीडिया में आये हैं। विधानसभा अध्यक्ष बनने के बाद से ही अग्रवाल कई विषयों पर सरकार से इतर अपनी राय रख चुके हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में संतुलित विकास और प्रदेश की राजधानी बनाये जाने को लेकर भी अग्रवाल अपनी राय रख चुके हैं। फिर चाहे वह सदन में सरकार के जवाबों से अंसतुष्ट विपक्ष की बात को मानने का मामला हो या सरकार के मंत्रियों को सदन में होमवर्क पूरा न करने पर फटकार लगाने का, अग्रवाल इस पर मुखर रहे हैं। उनके कड़े रूख से कई बार सदन में सरकार को असहज तक होना पड़ा है। इसके चलते सरकार खासतौर पर मुख्यमंत्री और प्रेमचंद अग्रवाल के संबंधों में खटास की चर्चायें जमकर समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई। चर्चा तो यहां तक उठी कि भाजपा और सरकार ने अग्रवाल के द्वारा सदन में सरकार को असहज करने का मामला भाजपा हाईकमान के सामने तक रखा। हालंाकि इसका कोई प्रमाण नहीं है, लेकिन सदन में प्रेमचंद
अग्रवाल पीठ पर बैठकर निष्पक्ष रहने का काम बखूबी करते रहे जिससे विपक्षी विधायकों द्वारा उनको जमकर सराहा गया।
भाजपा ने कभी भी गैरसैंण को राजधानी बनाये जाने के मामले में सीधा बयान नहीं दिया है। जबकि मौजूदा सरकार गैरसैंण में विधानसभा सत्र आहूत कर चुकी है। बावजूद इसके अभी तक न तो सरकार और न ही भाजपा ने गैरसैंण पर स्थिति स्पष्ट की है, जबकि प्रेमचंद अग्रवाल गैरसैंण को राजधानी बनाये जाने की बात कई बार सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं। अग्रवाल पर्वतीय क्षेत्रों में संतुलित विकास किये जाने की बात सार्वजनिक तौर पर कहते रहे हैं। राज्यसभा सांसद और भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी के पहाड़ों का विकास और पलायन जैसे मुद्दे को अग्रवाल का पूरा समर्थन मिला है। अनिल बलूनी ने पहाड़ी क्षेत्रों में दीवाली के 11वें दिन मनाई बाद जाने वाली ईगास दीवाली को अपने मूल गांव में मनाये जाने की बात की तो प्रेमचंद अग्रवाल ने इसे पूरा समर्थन दिया। अनिल बलूनी के अस्वस्थ होने के चलते उनके प्रतिनिधि भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा के साथ प्रेमचंद अग्रवाल भी अनिल बलूनी के गांव में गये और वहां ईगास दीवाली यानी ‘ईगास बग्वाल’ मनाई। इसकी स्थानीय मीडिया और सोशल मीडिया में सभी ने दिल खोलकर सराहना की।
अब एक बार फिर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत और विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल दोनों के बीच गैरसेंैण का मामला खड़ा हो गया है। नियमानुसार विधानसभा अध्यक्ष सरकार की इच्छा पर ही विधानसभा सत्र करवाने के लिए बाध्य हैं, लेकिन जिस तरह से मुख्यमंत्री ने गैरसैंण में विधानसभा सत्र करवाने के लिए ठण्ड का बहाना लिया है, वह किसी के गले नहीं उतर रहा है। कई सामाजिक सरोकारों से जुड़े लोगों को कहना है कि अगर सरकार अपने विधायकों को ठंड लगने के कारण गैरसैंण को गैर बना रही है, तो सरकार साफ तौर पर पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाली जनता का अपमान कर रही है जो कि अपना घरबार इन्हीं पहाड़ी क्षेत्रों में बसाये हुये हैं और कई माह तक शीत का प्रकोप सहते हैं।
अब यह तो स्पष्ट हो गया है कि सरकार गैरसैंण में शीतकालीन सत्र नहीं चालाने वाली, लेकिन इस से सरकार की नीयत और नीति पर गम्भीर सवाल खड़े होने लगे हैं। कभी गैरसैंण को लेकर सुर्खियों में ंरहे पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा जिनके शासन काल में पहली बार गैरसैंण में विधानसभा सत्र का आयोजन आरम्भ हुआ था आज वही कह रहे हैं कि गैरसैंण पर राजनीति हो रही है। साथ ही उनका कहना है कि गैरसैंण में जब 50 हजार करोड़ खर्च होंगे तब वहां राजधानी बन सकती है। बहुगुणा का यह बयान साफ करता है कि कांग्रेस से भाजपा में आने के बाद किस तरह से राजनीतिक निष्ठायें पार्टी के अनुसार बदलती हैं। इसी तरह से भाजपा और भाजपा सरकार पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन विधानसभा के नाम पर बयानबाजी करने वाली भाजपा महज इस बात से किनारा कर रही है कि विधायकों को ठंड लग सकती है। साफ है कि गैरसैंण एक बार फिर से गैर ही रहने वाला है।
जारी है आंदोलन
एक तरफ जहां मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत गैरसैंण में सत्र तक नहीं चलाना चाहते वहीं गैरसैंण मंे स्थाई राजधानी बनाए जाने की मांग को लेकर देहरादून से लेकर दिल्ली तक पिछले कई महीनों से आंदोलन चल रहा है। आंदोलनकारियों की मांग है कि पहाड़ी राज्य की राजधानी पहाड़ में ही होनी चाहिए। गैरसैंण राजधानी निर्माण अभियान के बैनर तलेे देहरादून में आंदोलनकारी सक्रिय हैं। इस बीच राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल और देव सिंह रावत आदि आंदोलनाकरियों के प्रयास से जंतर मंतर पर धरना आयोजित किया गया।
इसमें तमाम आंदोलनकारी संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। केंद्र सरकार को ज्ञापन दिया गया कि जल्द ही गैरसैंण में स्थाई राजधानी बनाई जाए। धरने को संबोधित करते हुए संयोजक लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल ने कहा कि जनता सिर्फ गैरसैंण में राजधानी चाहती हैं। वहां ठंड का बहाना बनाकर सरकार बच नहीं सकती। आखिर लोग भी तो वहां रह रहे हैं।
बात अपनी-अपनी
सरकार की इच्छा पर ही विधानसभा सत्र आहूत होते हैं। सरकार ने अब निर्णय ले लिया है कि 4 दिसम्बर से 10 दिसम्बर तक देहरादून में ही विधानसभ सत्र होगा, तो अब इस पर कोई बात करना या बयान देने का औचित्य ही नहीं है।
प्रेमचंद अग्रवाल, विधानसभा अध्यक्ष
अगर सरकार को गैरसैंण में विधायकों को ठंड लगने से परेशानी हो रही है, तो यह सरासर उत्तराखण्ड की जनभावनाओं का अपमान है। कई हिमालयी राज्य हैं जहां गैरसैंण से भी अधिक ठंड होती है, लेकिन वहां किसी ने नहीं कहा कि ठंड से परेशानी है। अगर ऐसा है तो पहाड़ के उन निवासियों का क्या होगा जो अपने घरबार पहाड़ में बसाये हुये हैं। सरकार का यह निर्णय हास्यास्पद है।
हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री
सरकार खुद ही गैरसैंण को नहीं चाहती है। हमने तो अपने समय में वहां सत्र करवाये थे और कम सुविधाओं में करवाये। मेरा मानना कि गैरसैंण राज्य की स्थाई राजधानी हो। हमने गैरसंैण में जो काम करवाये आज वे सब बरबाद होने की कगार पर हैं। सरकार इस पर कोई ध्यान नहीं दे रही है। यह निर्णय स्वयं सरकार का अपना है। किसी भी विधायक ने नहीं कहा है कि गैरसैंण में सत्र नहीं होना चाहिये।
गोविन्द सिंह कुंजवाल, पूर्व विट्टाानसभा अध्यक्ष
पहाड़ों में ठंड के समय धूप खिली रहती है। है। पहले भी दिसम्बर माह में गैरसैंण में सत्र हो चुका है। यह मामला ठंड का नहीं है, बल्कि परिस्थिति का है। सरकार ने निर्णय लिया है कि सत्र देहरादून में होगा। देहरादून में भी तो ठंड होती है। जिन विधायकों को सत्र में आना होता है वे आते हैं जिनको नहीं आना होता है तो वे चाहे गैरसैंण हो या देहरादून, सत्र में नहीं आते।
महेन्द्र प्रसाद भट्ट, विधायक बदरीनाथ
सरकार ने सही निर्णय लिया है। पिछली बार जब गैरसैंण में विधानसभा सत्र हुआ था तो इंदिरा हृदेश जी ने ही कहा था कि मुख्यमंत्री हमको मरवाने के लिए इस ठंड में लाये हैं। विधायकों को परेशानी तो होती ही है। यहां की जनता चाहे युवा हो या बुजुर्ग सभी को ठंड से परेशानी है। गैरसैंण में बहुत अधिक ठंड होती है यहां शीतकालीन सत्र नहीं होना चाहिये।
मुन्नी देवी, विधायक थराली