नई दिल्ली। कांग्रेस कोरोना संकट को लेकर निरंतर केंद्र सरकार को घेर रही है। इसी रणनीति के तहत उसने लोकसभा चुनाव के बाद एक बार फिर विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश की है, लेकिन विपक्षी पार्टियों की राजनीतिक मजबूरियां उन्हें ऐसा करने से रोक रही हैं। विपक्षी दल नहीं चाहते कि वे अपनी कीमत पर कांग्रेस को खड़ा होने का मौका दें। सबसे ज्यादा खतरा समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को महसूस हो रहा है। इन दोनों दलों को लगता है कि यूपी जहां उनकी जमीन है, वहां कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी जिस तरह सक्रिय हैं उसका फायदा आखिरकार कांग्रेस को एवं नुकसान उन्हें ही होगा। लिहाजा वे आ बैल मुझे मार वाली कहावत क्यों चरितार्थ करें। यही वजह है कि इन दोनों दलों ने कोरोना संकट जैसे गंभीर विषय पर कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की ओर से बुलाई गई विपक्ष की एक बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया। इसे विपक्ष की फूट के तौर पर देखा जा रहा है।
दरअसल, यह बात सच है कि राष्ट्रीय स्तर पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का कोई खास अस्तित्व नहीं है। दोनों दल भी भलीभांति जानते हैं कि उत्तर प्रदेश के बूते ही वे राजनीति में टिके रह सकते हैं। अगर यहां भी कांग्रेस मजबूत हो गई तो फिर उनके लिए जीना मुश्किल हो जाएगा। जानकारों के मुताबिक समाजवादी पार्टी यह संदेश नहीं देना चाहती है कि वह कांग्रेस के साथ खड़ी है क्योंकि इससे यूपी में सक्रिय प्रिंयका की लोकप्रियता बढ़ सकती है। दूसरी तरफ बसपा अब यूपी में किसी भी पार्टी के साथ दिखने के बजाय अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने के लिए छटपटा रही है। यही वजह है कि बसपा प्रमुख मायावती ने लोकसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी के साथ हुए गठबंधन को खत्म करने में देरी नहीं की। बसपा अब इस मूड में दिखाई देती है कि वह अपनी परंपरागत विचारधारा के साथ ही बहुजन समाज की लड़ाई लड़े। ऐसे में वह यह संदेश नहीं देना चाहेगी कि वह किसी पार्टी के साथ खड़ी है।
-दाताराम चमोली