चौबीस बरस की तृणमूल कांग्रेस भीतर पहली बार ममता बनर्जी के नेतृत्व को अपरोक्ष रूप से चुनौती मिलती नजर आने लगी है। यह चुनौती उन्हें पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से नहीं बल्कि अपने ही भतीजे अभिषेक बनर्जी से मिलने के संकेत हैं। 2024 में विपक्षी दलों की तरफ से मोदी के बरस्क चेहरा बनने का सपना पालने वाली दीदी ने यदि समय रहते अपने घर भीतर सुलग रही असंतोष की आग को शांत नहीं किया तो उनका सपना समय पूर्व ही टूटना तय है
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी तेज रफ्तार के लिए पहचानी जाती हैं। 2021 में तीसरी बार राज्य की सीएम बनी ममता ने अपनी इस रफ्तार के चलते ही भाजपा की गाड़ी को पश्चिम बंगाल में रोक डाला था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और केंद्रीय जांच एजेंसियों की मिली जुली ताकत को धता बताने वाली दीदी ने इस जीत के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता का तानाबाना बुनना शुरू कर स्पष्ट संकेत दे डाले कि वे खुद को विपक्षी दलों की तरफ से मोदी के बरस्क चेहरा बनता देखना चाह रही हैं। ममता का यह ‘खेला’ अभी परवान चढ़ा भी नहीं है कि उन्हें अपनी पार्टी भीतर से ही अप्रत्याशित झटका लगने की खबरें आने लगी हैं।
दरअसल पार्टी में पिछले काफी अर्से से पुरानी बनाम नौजवान पीढ़ी के मध्य तनाव चल रहा है। इस तनाव के चलते ममता बनर्जी के रिश्ते अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी संग खराब होने लगे हैं। पुराने तृणमूल नेताओं का मानना है कि अभिषेक बनर्जी की कार्यशैली पार्टी के लिए अहितकारी है तो अभिषेक बनर्जी गुट इन पुराने नेताओं को तरजीह देने के बजाए अपनी आक्रमक राजनीति को सही बताने पर अड़ा हुआ है। हालात इतने विकट हो चले है कि राजधानी कोलकात्ता स्थित तृणमूल मुख्यालय में पूछा जाने लगा है कि आप ‘तृणमूल कालीघाट’ से हो या ‘तृणमूल कामक स्ट्रीट’ से। गौरतलब है कि ममता बनर्जी का घर कालीघाट में है। अभिषेक बनर्जी कामक स्ट्रीट में रहते हैं। हालांकि पार्टी कार्यकर्ता इस प्रश्न को एक दूसरे संग मजाक के बतौर पूछते हैं लेकिन इससे पार्टी भीतर उभर रही दरार को समझा जा सकता है। ममता बनर्जी गत् 2 फरवरी के दिन तृणमूल कांग्रेस की एक बार फिर से राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनी गईं थीं। इसी दिन उन्होंने पार्टी पदाधिकारियों को संबोधित करते हुए भतीजे अभिषेक पर कटाक्ष करते हुए कह डाला कि ‘नेता आसमान से नहीं टपका करते। नेता बनने के लिए कड़ी जमीनी मेहनत करनी पड़ती है।’ ममता की राजनीति और उनकी भाषा को समझने वाले मानते हैं कि उनका इशारा अभिषेक की तरफ था।
ममता बनाम अभिषेक का बड़ा असर तृणमूल सरकार के कामकाज पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है। तृणमूल सूत्रों की मानें तो राज्य की नौकरशाही भी दीदी और भतीजे के मध्य बंट रही है। जूनियर नौकरशाह अभिषेक के करीबी हैं तो सीनियर दीदी के। कहा तो यहां तक जा रहा है कि प्रदेश की आईपीएस लॉबी पर अभिषेक का प्रभाव ममता से कहीं ज्यादा हो चला है। कुछ अर्सा पहले कोलकाता पुलिस कमिश्नर की तैनाती का मुद्दा पार्टी के दोनों धड़ों के मध्य तनाव का कारण बना था। अभिषेक बनर्जी 1993 बैच के आईपीएस ज्ञानवंत सिंह को राजधानी का पुलिस कमिश्नर बनाना चाहते थे, लेकिन मुख्यमंत्री ने 1994 बैच के अधिकारी विनीत गोयल को कमिश्नर बना अभिषेक को तगड़ा झटका दे डाला। अब दीदी बड़े स्तर पर पुलिस विभाग में फेरबदल करने का मन बना रही हैं ताकि अभिषेक के करीबी समझे जाने वाले पुलिस अफसरों को साइड लाइन किया जा सके। पिछले दिनों तृणमूल भीतर पार्टी प्रमुख का एक आदेश खासी चर्चा का विषय रहा। ममता के करीब नेता और तृणमूल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुब्रत बख्सी ने तृणमूल के सभी जिला अध्यक्षों को कहा है कि पार्टी कार्यालयों में केवल ममता की तस्वीर लगाई जाए और किसी भी प्रकार की प्रचार सामग्री में भी इसका ध्यान रखा जाए। अभी तक ममता संग अभिषेक की तस्वीर पार्टी कार्यालयों और प्रचार सामग्री में लगाई जाती रही है।
12 फरवरी को ममता ने पार्टी भीतर बढ़ रहे असंतोष को थामने की नीयत से एक 20 सदस्यीयी समन्वय समिति का गठन करते हुए पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद को समाप्त करने की घोषणा करी। यह पद विशेष रूप से अभिषेक बनर्जी के लिए बनाया गया था।
राजनीतिक विशेषकों का मानना है कि तृणमूल के पुराने नेताओं को दरकिनार कर अपने भतीजे अभिषेक को नंबर दो की हैसियत पर ला ममता ने भारी भूल कर डाली। अभिषेक ने राष्ट्रीय महासचिव बनने के साथ ही पार्टी भीतर बड़े स्तर पर सुधार करने की घोषणा कर वरिष्ठ तृणमूल नेताओं को असुरक्षा बोध करा डाला। ममता के बेहद करीबी सिरामपोर से सांसद कल्याण बनर्जी ने इन पुराने नेताओं की तरफ से पहल करते हुए अभिषेक बनर्जी के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया। अभिषेक बनर्जी के समर्थकों ने भी कल्याण बनर्जी को सार्वजनिक तौर पर भला-बुरा कह मामले को ज्यादा बिगाड़ने का काम किया। पहले तो ममता ने दोनों धड़ों के बीच संतुलन बनाने के प्रयास किए लेकिन जब अभिषेक ने खुलकर दीदी के निर्देशों की अवहेलना करनी शुरू कर दी तो नाराज ममता ने 12 फरवरी के दिन उन्हें पद से मुक्त कर राष्ट्रीय महासचिव पद ही समाप्त कर डाला। लेकिन मात्र एक सप्ताह बाद ही ममता ने बैकफुट पर जाने का संकेत देते हुए अभिषेक को पुनः तृणमूल कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया है। हालांकि इस दफे ममता ने उन्हें पार्टी में नंबर दो की हैसियत में न रखते हुए वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा सहित दो अन्य वरिष्ठ नेताओं, सुब्रत बख्शी एवं चंद्रिका भट्टाचार्य को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है। कुल मिलाकर कोलकाता से निकल एक संदेश पूरे देश में फैल चुका है कि विपक्षी दलों को एकसूत्र में लाने का प्रयास करने वाली ममता बनर्जी खुद के घर में एकता बनाए नहीं रख पा रही हैं। जाहिर है इस संदेश का असर 2024 के लिए सुने गए ममता के सपने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने लगा है।