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DU में ऑनलाइन परीक्षा पर नहीं बनी सहमति, अब UGC के निर्देशों का इंतजार

DU में ऑनलाइन परीक्षा पर नहीं बनी सहमति, अब UGC के निर्देशों का इंतजार

दिल्‍ली यूनिवर्सिटी (डीयू) में ऑनलाइन परीक्षा को लेकर अभी कोई सहमति नहीं बन पाई। इससे पहले डीयू के अधिकारियों की ओर से ऑनलाइन परीक्षाएं करवाने के लिए एक प्रस्ताव रखा गया था। जिसके तहत सवालों के जवाब में स्टूडेंट्स को एक वीडियो क्लिप अपलोड करके जवाब देना था। लेकिन डीयू के अधिकारियों के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया है। विभिन्‍न विभागों के डीन्‍स ने इसे सिरे से नकार दिया है।

दरअसल, यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ अधिकारियों और विभिन्न विभागों के डीन ऑफ एग्जामिनेशन विनय गुप्ता के साथ वीडियो लिंक के जरिए बैठक की। बैठक में अधिकार‍ियों ने सुझाव दिया कि स्‍टूडेंट्स को आठ प्रश्‍न भेजे जाएंगे और उन्हें जवाब में पांच मिनट की वीडियो क्लिप अपलोड करके उनमें से चार के जवाब देने होंगे। सूत्रों के मुताबिक, अधिकतर डीन्‍स की ओर से इस प्रक्रिया को ‘व्यावहारिक रूप से असंभव’ और ‘असंगत’ बताया गया है।

फ़िलहाल अभी ऑनलाइन परीक्षाओं को लेकर डीयू उलझन में है, लेकिन वह यूजीसी के निर्देशों की प्रतीक्षा कर रही है। बैठक में मौजूद एक प्रोफेसर के मुताबिक, डीन ने कहा कि कई स्‍टूडेंट ऐसे इलाकों में रहते हैं जहां कनेक्टिविटी का मुद्दा है और उनमें से कई लिखने में अच्छे हो सकते हैं लेकिन बोलने में अच्‍छे नहीं हैं। परीक्षा का यह तरीका स्‍टूडेंट का मूल्‍यांकन सही से नहीं कर पाएगा।

एकेडमिक्स फॉर एक्शन एंड डेवलपमेंट ने की प्रस्ताव की निंदा

डीन ने एक और सम्भावना जताई कि अगर किसी विभाग में 2 हजार स्‍टूडेंट हैं, जिसके अनुसार तो प्रोफेसरों को 16 हजार अलग-अलग प्रश्‍न तैयार करने पड़ेगे।  प्रोफेसर ने कहा, “एक प्रोफेसर अगर किसी स्‍टूडेंट से एक सवाल पूछ चुका है तो वह दूसरे से वैसा ही सवाल नहीं पूछ पाएगा तो अगर एक विभाग में 2 हजार स्‍टूडेंट्स हैं और उनमें से प्रत्‍येक स्‍टूडेंट को 8 सवाल देने हैं तो इस हिसाब से प्रोफेसर को 16 हजार प्रश्‍न तैयार करने होंगे, जो कि नामुमकिन है।”

इस बीच कांग्रेस-समर्थित शिक्षक समूह अकेडमिक्स फॉर ऐक्शन एंड डेवलपमेंट (AAD) ने ऑनलाइन परीक्षाओं के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन के मनमाने और सत्तावादी प्रस्ताव की निंदा की। AAD के मुताबिक, ”डीयू में परीक्षा एक वैधानिक प्रक्रिया है जिसे अकादमिक परिषद और कार्यकारी परिषद की मंजूरी के बिना बदला नहीं जा सकता है। पेपर सेटिंग की ऑनलाइन प्रक्रिया, जवाब देने और मूल्यांकन में छेड़छाड़ की बहुत अधिक आशंका है।” इस क्रम में डूटा की ओर से यूजीसी चेयरमैन को सुझाव भी भेजा गया है। जिसमें बताया गया है कि ई संसाधनों के जरिए से शिक्षण को कक्षा में मूर्त रूप में लाने का विकल्प नहीं हो सकता है।

छात्रों के वर्तमान बैच के लिए 180 दिनों के शिक्षण की न्यूनतम आवश्यकता का पालन किया जाना चाहिए और अगले सत्रों को आगे बढ़ाने और अवकाश अवधि को सीमित करने से इसे प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। साथ ही अवगत कराते हुए कहा कि ऑनलाइन केंद्रीकृत परीक्षाओं के संचालन को पूरी तरह से रद्द कर दिया जाना चाहिए क्योंकि विश्वविद्यालय के पास न तो बुनियादी ढांचा है और न क्षमता।

डूटा के सुझाव

  • विश्वविद्यालय खुलते ही अंतिम वर्ष के छात्रों को प्राथमिकता देते हुए शेष शैक्षणिक दिनों को पूरा करने के बाद जल्द से जल्द आंतरिक मूल्यांकन सहित परीक्षा का आयोजन होना चाहिए।
  • अंतिम वर्ष के छात्रों को पिछले सेमेस्टर और सीजीपीए के आधार पर व एसजीपीए के विवरण के साथ प्रोविजनल प्रमाण पत्र प्रदान किए जा सकते हैं और पाठ्यक्रम के काम में किए गए सभी कागजात सूचीबद्ध कर सकते हैं। इससे उच्च अध्ययन के लिए अन्य संस्थानों में आवेदन करने वाले छात्रों को भी लाभ होगा, क्योंकि वे परीक्षाओं के पूरा होने और परिणामों की घोषणा का इंतजार कर रहे हैं।
  • यदि विश्वविद्यालयों को केवल चरणबद्ध तरीके से खोलने की अनुमति है, तो अंतिम वर्ष के छात्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। ऐसी स्थिति में, अध्ययन के अन्य वर्षों के लिए परीक्षाएं या तो आयोजित की जा सकती हैं। यदि परिस्थितियां इतनी अनुमति देती हैं या बाद की तारीख को आगे बढ़ाया जा सकता है तो कॉलेज या विभाग खोलने के 15 दिनों के भीतर आंतरिक मूल्यांकन पूरा किया जा सकता है।
  • विश्वविद्यालयों को छात्रों के वर्तमान बैचों की पाठ्यक्रम आवश्यकताओं को समायोजित करने के लिए आवश्यक समय को ध्यान में रखते हुए अगले वर्ष का शैक्षणिक कैलेंडर तैयार करना चाहिए। इसके लिए सेमेस्टर परीक्षा में भाग लेने या वार्षिक मोड में परीक्षा आयोजित करवाई जा सकती है।
  • इस तरह की विषम परिस्थिति में स्नातक स्तर पर शिक्षण के लिए परीक्षा वार्षिक मोड में आयोजित करने पर गंभीरता से विचार किया जा सकता है। इसके अलावा विद्यार्थियों को द्वितीय व तृतीय वर्ष पर पदोन्नत करने पर भी विचार किया जा सकता है।
  • विश्वविद्यालयों को स्थिति से निपटने के लिए तैयार करने के लिए संकाय और विभागों सहित विभिन्न वैधानिक निकाय को विचार विर्मश के लिए कहा जाना चाहिए।  और जो भी निर्णय लिए जाएं या कदम उठाए जाएं उसके बारे में छात्रों को जानकारी दी जाए, भले ही विश्वविद्यालय को आगामी परिस्थितियों के अनुसार उसमें कुछ फेरबदल करना पड़े।

गौरतलब है कि दिल्‍ली यूनिवर्सिटी ने कोरोनावायरस के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए पिछले हफ्ते अगले नोटिस तक सभी तरह की प्रैक्टिकल और लिखित परीक्षाएं स्थगित कर दी गई थीं।

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