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मोदी सरकार में भी नहीं हुआ राष्ट्रीय पेंशन योजनाओं में बदलाव 

पिछली सरकारों की तरह भाजपा सरकार में भी राष्ट्रीय पेंशन योजनाओं के दायरे और धनराशि में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के राष्ट्रीय सामाजिक सहायता के आकड़ों के अनुसार, भारत में गरीबी रेखा से नीचे के करीब साढ़े तीन करोड़ पुरुष और महिलाएं है। इनमे से  करीब 2.15 करोड़ वृद्ध लोग, करीब 65 लाख विधवा महिलाएं और करीब 9 लाख विकलांग लोगों को पेंशन योजना के अंतर्गत आर्थिक सहायता दी जाती है। इस पेंशन योजना में देश के राज्य सरकारों का भी हिस्सा होता है। लेकिन अलग-अलग राज्य सरकारों की अलग-अलग हिस्सेदारी होती है। राज्य सरकारों का हिस्सा मिलाकर यह धनराशि इतनी नहीं होती है कि इसमें किसी व्यक्ति का खर्चा चल पाए। जो धनराशि इन योजनाओं के तहत दी रही है वह काफी नहीं है, साथ ही पिछले 8 वर्ष से इसमें महंगाई दर को भी नहीं जोड़ा गया है।

 वर्ष 1995 में गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को आर्थिक सहायता पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम की शुरुआत की थी। शुरुआती दौर में इन सभी योजनाओं में दी जाने वाली धनराशि में पूरी हिस्सेदारी केंद्र सरकार की होती थी। वर्ष 2009 में केंद्र सरकार ने विधवा और विकलांग पेंशन योजना लागू की थी।और केंद्र सरकार ने इन योजनाओं में राज्य सरकारों को भी हिस्सेदारी देने पर जोर दिया। लेकिन वर्ष 2014 आते-आते इन योजनाओं को राष्ट्रीय प्रायोजित योजनाओं में बदल दिया गया। राष्ट्रीय प्रायोजित योजनाएं वह योजनाएं होती हैं, उनका क्रियान्वयन राज्यों की देखरेख में होता है। राज्य सरकार इन योजनाओं के पात्र लोगों को चिन्हित करती है, साथ ही केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकार भी अपना हिस्सा देती हैं। 

मौजूदा समय में राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के तहत पांच योजनाएं है। इसमें वृद्धा पेंशन योजना, विधवा पेंशन योजना, विकलांग पेंशन योजना, राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना और अन्नपूर्णा योजना शामिल है। वृद्धा पेंशन योजना वर्ष 1995 में शुरू की गई। इस योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे के वृद्ध लोगों को आर्थिक सहायता पहुंचाने के लिए प्रतिमाह एक न्यूनतम धनराशि दी जाती है। वर्ष 1995 से वर्ष 2014 तक इस योजना में तीन बार बदलाव किए गए है, लेकिन मोदी जी के सत्ता में आने के बाद से इस योजना में कोई बदलाव नहीं हुआ है। राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के 1995 के दिशानिर्देशों के अनुसार इस योजना के तहत 65 साल से ऊपर के बुजुर्गों को 75 रुपये प्रतिमाह दिए जाते थे। जबकि वर्ष 2007 के दिशानिर्देशों के अनुसार इस धन राशि को बढ़कर 200 रुपये प्रतिमाह कर दिया गया। वर्ष 2011 के दिशानिर्देशों के अनुसार इस योजना की आयुसीमा में परिवर्तन किया और आयुसीमा को 65 साल से घटकर 60 साल कर दिया गया यानी 60 साल से 79 साल तक के बुजुर्गो को 200 रुपये प्रतिमाह और 80 साल से ऊपर के लोगों को 500 रुपये प्रतिमाह देने का फैसला लिया गया।

 केंद्र सरकार ने फरवरी 2009 में विधवा पेंशन योजना को लागू किया। इस योजना के तहत 40 से 64 साल की गरीबी रेखा से नीचे की विधवा महिलाओं को 200 रुपये प्रतिमाह की धनराशि दी गयी। केंद्र सरकार ने इस योजना में राज्य सरकारों को भी बराबर का हिस्सा देने के लिए जोर दिया। वर्ष 2012 में इस योजना की आयु सीमा को बढ़ाकर 40 से 79 साल कर दिया गया, साथ ही इसमें मिलने वाली धनराशि को बढ़ाकर 200 रुपये से 300 रुपये प्रतिमाह कर दिया गया। वर्ष 2014 के संशोधित दिशानिर्देशों में 40 साल से ऊपर की महिलाओं को 300 रुपये प्रतिमाह और 80 साल से ऊपर की महिलाओं को हर महीने  500 रुपये देने का फैसला लिया। 

 विधवा पेंशन योजना के साथ वर्ष 2009 में विकलांग पेंशन योजना को भी लागू किया था। इस योजना में 18 से 64 साल के विकलांग व्यक्तियों को जो गरीबी रेखा से नीचे है। उन्हें  हर महीने 200 रुपये देने का फैसला लिया गया। वर्ष 2012 में इस योजना की आयु सीमा को 18 साल से 79 साल कर दिया गया। साथ ही इसमें दी जाने वाली धनराशि को बढ़ाकर 200 रुपये प्रतिमाह से 300 रुपये प्रतिमाह कर दिया गया। वर्ष 2014 के संशोधित दिशानिर्देशों में 40 साल से ऊपर के विकलांग लोगों को 300 रुपये प्रतिमाह और 80 साल से ऊपर के लोगों को 500 रुपये प्रतिमाह कर दिया गया है।वर्ष 2014 के बाद से इन सभी पेंशन योजनाओं में कोई बदलाव नहीं किये गए है, सरकार को इन पेंशन योजनाओं के दायरे और इनमे दी जाने वाली धनराशि में बढ़ोतरी करने की जरूरत है।

इस पर विशेषज्ञ कहते हैं  कि  भारत में करीब 12 करोड़ लोग 60 साल की आयु से ऊपर है।इनमे से करीब 85 से 90 फीसदी लोग किसी भी तरह की संस्थागत पेंशन के अंतर्गत नहीं आते है साथ ही जमीनी स्तर पर बड़ी संख्या में वृद्ध लोग गरीबी रेखा से नीचे है, लेकिन उनको आधिकारिक तौर पर गरीबी रेखा से नीचे नहीं गिना जाता है। विकलांग लोगों में 80 फीसदी से ज़्यादा विकलांग लोगों को विकलांग पेंशन योजनाओं का लाभ मिलता है। विकलांग की सिर्फ 7 कैटेगरी के लोगों को इन योजनाओं का लाभ मिलता है। जबकि दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 में विकलांग की 21 कैटेगरी है।इसलिए इस योजना के दिशानिर्देशों में नए सिरे में सुधार किए जाए और दिव्यांगों की अन्य कैटेगरी को भी शामिल किया जाए।  

इस मामले को लेकर अन्य समाजसेवी संगठनों की मांग है कि राष्ट्रीय पेंशन योजनाओं में मिलने वाली धनराशि, न्यूनतम मजदूरी के आधे के करीब होनी चाहिए। हालांकि न्यूनतम मजदूरी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है, लेकिन अगर हम कुछ राज्यों में तय की गयी 300 रुपये की न्यूनतम मजदूरी को आधार मानें तो पेंशन की राशि 4,500 रुपये प्रतिमाह होती है लेकिन राष्ट्रीय पेंशन कम से कम 3,000 रुपये महीना होनी चाहिए।

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