भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (ICMR) के एक अध्ययन में पाया गया कि 58.1 प्रतिशत लोग Covishield वैक्सीन की एक खुराक लेने के बाद डेल्टा वैरियंट के खिलाफ एंटीबॉडी का उत्पादन नहीं कर सके, जबकि 16.1 प्रतिशत लोग जिन्होंने दोनों खुराक ली फिर भी वैक्सीन ने एंटीबॉडी का उत्पादन नहीं किया।
वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में माइक्रोबायोलॉजी विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ. टी जैकब ने कहा, “एंटीबॉडी न मिलने का मतलब ये नहीं है कि वह मौजूद नहीं है।” इसमें एंटीबॉडी को निष्क्रिय करने के निम्न स्तर होने की संभावना है।लेकिन ऐसे एंटीबॉडी शरीर में मौजूद हो सकते हैं और इस तरह गंभीर लक्षणों से बचा सकते हैं।
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न्यूट्रलाइज़िंग एंटीबॉडी का त्रय Sars-CoV-2 वायरस के इस विशेष रूप से लड़ता है और इसे मानव शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करने से रोकता है। न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी का ट्राइट्रेस डेल्टा वेरिएंट में बी1 वेरिएंट की तुलना में कम है। B1 वेरिएंट भारत में कोरोना की पहली लहर थी। B1 वैरिएंट की तुलना में न्यूट्रलाइज़िंग एंटीबॉडी ट्राइट्रेस पहली खुराक में 78 प्रतिशत कम और दूसरी खुराक में 69 प्रतिशत कम था।
इसके अलावा, संक्रमित और गैर-टीकाकरण वाले लोगों में एंटीबॉडी ट्रायड को बेअसर करना 66 प्रतिशत कम पाया गया। साथ ही जिन लोगों को कोरोना का संक्रमण था और उन्होंने टीके की दोनों खुराक ले ली थी, उनमें एंटीबॉडी ट्राइटरपेन को बेअसर करने में 38 प्रतिशत की कमी आई थी। आईसीएमआर के इस अध्ययन से स्पष्ट है कि कुछ लोगों को भारत में टीकाकरण अभियान में Covishield की अतिरिक्त बूस्टर खुराक की आवश्यकता हो सकती है। जिन लोगों को पहले कोरोना संक्रमण हो चुका है, उनके लिए सिर्फ एक खुराक ही काफी है।