सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को कोरोना महामारी और लॉकडाउन से संबंधित कई मामलों पर सुनवाई हुई। यह मामले लॉकडाउन की अवधि का वेतन देने, प्रवासी मजदूरों को उनके गृह राज्य पहुंचाने और कर्ज लौटाने पर मोरटोरियम से जुड़े हैं। 29 मार्च को गृह मंत्रालय ने दिशानिर्देश जारी किया था। दिशानिर्देश में सरकार ने कहा था कि लॉकडाउन की अवधि का पूरा वेतन कंपनियां अपने कर्मचारियों को दें।
सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ एमएसएमई कंपनियों ने याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कल कहा कि जो कंपनियां अपने कर्मचारियों को पूरा वेतन नहीं दे रही हैं उनके खिलाफ अगले हफ्ते तक कोई कार्रवाई नहीं किया जाए।
कोर्ट ने कहा कि अनेकों छोटी कंपनियां हैं जिनकी लॉकडाउन के दौरान कोई कमाई नहीं हो रही है। इसलिए हो सकता है वह अपने कर्मचारियों को वेतन न दे पा रही हों। कोर्ट ने आगे कहा कि हो सकता है कुछ कंपनियां 15 दिनों तक लॉकडाउन में अपने आप को खड़ी रख सकें। लेकिन अगर लॉकडाउन ज्यादा रहा तो वे अपने कर्मचारियों को वेतन कैसे देंगी। कोर्ट अगले हफ्ते इस मामले की फिर सुनवाई करेगा।
मुंबई से प्रवासी मजदूरों को उनके घर सुरक्षित पहुंचाने से जुड़ी एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के साथ-साथ उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र की सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट ने केंद्र और इन राज्यों से पूछा है कि प्रवासी मजदूरों के लिए सरकारें क्या कर रही हैं।
अपनी याचिका में वकील सगीर अहमद खान ने कहा है कि प्रवासी मजदूरों के पास मुंबई से उत्तर प्रदेश जाने के लिए कोई साधन नहीं है। एक नोडल अधिकारी सरकार ने जिले में नियुक्त कर दिया है पर उससे काम नहीं हो रहा है। यह मजदूर सरकार द्वारा तय किए की गई व्यवस्थाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। निचले स्तर पर मजदूरों की बात सुनने के लिए अधिकारी नियुक्त किए जाने चाहिए।
याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्होंने प्रवासी मजदूरों को ले जाने के लिए संत कबीर नगर के रहने वाले 25 लाख रुपए देने की पहल की है। इसके लिए उन्होंने उत्तर प्रदेश के नोडल अधिकारी से कई बार बात करने की कोशिश की पर टेलीफोन लाइन लगातार व्यस्त रहने के कारण बात नहीं हो सकी।
अपनी याचिका में रियल्टी डेवलपर्स की संस्था क्रेडाई ने आरोप लगाया कि यह बात स्पष्ट नहीं है कि रिजर्व बैंक ने कर्ज लौटाने पर मोरटोरियम की जो सुविधा दी है उसका लाभ रियल एस्टेट डेवलपर्स को मिलेगा या नहीं। कोर्ट ने इस मामले में केंद्र और रिजर्व बैंक से जवाब मांगा है।
वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने क्रेडाई की तरफ से कहा कि रिजर्व बैंक की तरफ से जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, रियल एस्टेट कंपनियों को भी मोरटोरियम का फायदा मिलना चाहिए पर कई बैंक इससे इनकार कर रहे हैं। रिजर्व बैंक को इस पर स्पष्टीकरण देना चाहिए। केंद्र सरकार की तरफ से मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस बारे में वे मंत्रालय और अन्य अथॉरिटी से बात करके कोर्ट को जानकारी देंगे। गौरतलब है कि रिजर्व बैंक ने 27 मार्च को दिशा-निर्देशों जारी किया था।