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नीतीश की प्रेशर पॉलिटिक्स

नीतीश कुमार राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर जिस तरह केंद्र सरकार के खिलाफ मुखर हैं, उससे भाजपा भारी दबाव में है। बिहार में नीतीश का एनडीए से अलग होना भाजपा के लिए घाटे का सौदा साबित हो सकता है

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा के लिए नई मुसीबत बनते जा रहे हैं। वह राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों पर खासकर जाति आधारित जनगणना को लेकर जिस तरह मुखर होकर भाजपा विरोधी लाइन लिये हुए हैं, उसे देखकर यही लगता है कि वह या तो भाजपा को पूरी तरह अपने दबाव में रखना चाहते हैं या फिर भाजपा से अलग होने में ही अपना फायदा समझ रहे हैं?

राजनीतिक पंडित मानते हैं कि नीतीश बेशक एनडीए गठबंधन से अलग न हों, लेकिन वह 2024 के आगामी लोकसभा चुनाव से पहले जिस तरह के तेवर दिखा रहे हैं, वह भाजपा को दबाव में रखने की रणनीति ही कही जा सकती है। दरअसल, अभी नीतीश राज्य में एनडीए का नेतृत्व कर रहे हैं। भाजपा बाखूबी जानती है कि राज्य में सरकार चलाने के लिए अभी उन जैसा कद्दावर और अनुभवी नेता एनडीए के पास कोई दूसरा नहीं है। यदि वे आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा से अलग राह पकड़ते हैं, तो जाहिर है कि इससे राज्य में भाजपा को भारी नुकसान होने का खतरा रहेगा। नीतीश कुमार की मुखरता का अंदाजा इसी से लाया जा सकता है कि जनता दल यूनाइटेड के नेता उपेन्द्र कुशवाह ने दो टूक कहा है कि जाति आधारित जनगणना की अनुमति नहीं देना ‘बेईमानी’ होगी। खासकर तब जबकि 2010 में मनमोहन सिंह सरकार के दौरान संसद ने इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित किया था और एनडीए सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान भी केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने इस बारे में भरोसा दिलाया था। वह प्रधानमंत्री से भी सवाल करते हैं कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद को पिछड़े समुदाय का बताया था तब हम बहुत गौरवान्वित हुए थे। हम उम्मीद करते हैं कि वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जाति जनगणना की मांग पर विचार करेंगे। उन्होंने तंज भी कसा। नरेंद्र मोदी ऐसा नहीं करते हैं, तो फिर सभा-सम्मेलनों में अपने को पिछड़ा कहने से उन्हें बचना होगा और हम भविष्य में इसका विरोध करेंगे। पिछड़े हैं तो पिछड़ों के हक-हकूक पर उन्हें गंभीर होना होगा। नीतीश कुमार ने तीन मुद्दों पर बीजेपी से अलग लाइन ले रखी है। बीजेपी का अपना एजेंडा है, लेकिन नीतीश के रहते

बीजेपी अपने एजेंडे को बिहार में तो लागू नहीं करा सकती है। बीजेपी की मजबूरी बिहार में यह है कि तमाम दावों के बावजूद उसके पास नीतीश कुमार का ही चेहरा है। इसलिए नीतीश कुमार जनसंख्या नियंत्रण कानून, धर्मांतरण, जाति जनगणना या पेगासस पर बीजेपी को घेरते हैं। जनसंख्या नियंत्रण कानून पर नीतीश कुमार ने साफ-साफ बीजेपी को संदेश दिया, यह कदम सही नहीं है। जनसंख्या कानून से नहीं रोकी जा सकती, लोगों को जागरूक करना होगा और महिलाओं को शिक्षित करना होगा, तभी इस मसले को सुलझाया जा सकता है। उन्होंने इसके लिए चीन की मिसाल भी दी थी। जदयू अब बीजेपी और केंद्र सरकार को जाति जनगणना के मुद्दे पर लगातार घेर रहा है।

जाति जनगणना को लेकर बिहार में सियासी कोहराम मचा है। केंद्र सरकार ने जनगणना शुरू करने का एलान किया है। कायदे से तो जनगणना पूरी हो जानी चाहिए थी, लेकिन कोरोना की वजह से इसमें देर हुई। केंद्र सरकार ने कहा है कि जनगणना के दौरान एससी-एसटी के लोगों की भी गणना की जाएगी। लेकिन जदयू जातीय आधार पर जनगणना की मांग कर रहा है। यानी जनगणना के दौरान सरकार इसका भी रिकॉर्ड रखे कि किस जाति के कितने लोग हैं। फिर जातिवार लोगों का डेटा सार्वजनिक किया जाए। नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार से मांग की कि फिर वे बिहार के सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के साथ प्रधानमंत्री से भी मिले और उनसे कहा कि वे जाति के आधार पर जनगणना कराएं। नीतीश के मुताबिक जाति आधारित जनगणना होनी चाहिए। बिहार विधानमंडल ने 18 फरवरी, 2019 और फिर बिहार विधानसभा ने 27 फरवरी, 2020 को सर्वसम्मति से इस आशय का प्रस्ताव पास कर इसे केंद्र सरकार को भेजा था। केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर विचार करना चाहिए। जाति जनगणना के मुद्दे पर फिलहाल बीजेपी और जदयू में तलवारें तनी हुई हैं। बीजेपी नेताओं का कहना है कि किसी भी कीमत पर जाति जनगणना नहीं होगी। बीजेपी विधायक हरि भूषण ठाकुर ने साफ किया कि बिहार में जाति जनगणना नहीं होने दी जाएगी। उन्होंने कहा कि जाति जनगणना अब तक देश में नहीं हुई है और अगर शुरू से कोई व्यवस्था बनी हुई है तो इसमें बदलाव का सवाल ही नहीं है। ठाकुर ने कहा कि जनसंख्या को लेकर नीति निर्धारण करने वाले लोग बेवकूफ नहीं थे। उन्होंने बहुत सोच समझकर जाति जनगणना की इजाज़त नहीं दी। जाति जनगणना से समाज में दूरी बढ़ेगी और इससे देश के टुकड़े हो जाएंगे।

जाति आधारित जनगणना को लेकर न सिर्फ जनता दल यू बल्कि एनडीए के अन्य सहयोगी दल ‘हम’ और वीआईपी भी उग्र तेवर दिखा रहे हैं। लेकिन इन दोनों दलों के उग्र तेवर दिखाने के इसलिए भी कोई खास मायने नहीं हैं कि वक्त पड़ने पर इनके विधायक कभी भी भाजपा में शामिल हो सकते हैं। इसलिए भाजपा को अपने छोटे सहयोगियों से तो कोई खतरा नहीं हैं, लेकिन नीतीश की अलग राह अवश्य उसे असहज कर सकती है। यदि नीतीश लोकसभा चुनाव अलग लड़ते हैं और तेजस्वी यादव के साथ उनका गठबंधन हो जाता है, तो तब भाजपा की मुश्किल काफी बढ़ जाएगी।

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