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  • प्रियंका यादव, प्रशिक्षु

 

बिहार में सरकार जरूर बदल गई है लेकिन चुनौतियां वही हैं। अब नजर इस पर होगी कि जदयू और राजद का यह गठबंधन तमाम सियासी और नीतिगत विसंगतियों के बावजूद कितना सफर तय कर पाएगा। चर्चा यह भी है कि लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश डिप्टी सीएम तेजस्वी को सीएम बना कर राष्ट्रीय राजनीति का रुख करेंगे। वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति को देखें तो राज्य में कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार से जुड़े सवाल नीतीश को असहज करते रहे हैं

 

सुशासन बाबू के नाम से जाने जाते रहे नीतीश कुमार ने एक बार फिर आठवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है और नए
कैबिनेट का विस्तार कर दिया है। न चुनाव हुआ, न दलबदल, लेकिन बिहार में सरकार बदल गई। यह उनकी पुरानी शैली है। वे असहज करने वाले साझीदार से साझेदारी बीच मजधार में छोड़ कर नए पार्टनर के सहारे कुर्सी बनाए रखने के सफल बाजीगर साबित हुए हैं। अब नजर इस पर होगी कि जदयू और राजद का यह गठबंधन तमाम सियासी और नीतिगत विसंगतियों के
बावजूद कितना सफर तय कर पाएगा। शपथ के बाद ही बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने विपक्षी दलों से एकजुट होने का आह्नान कर राष्ट्रीय राजनीति में हाथ आजमाने की अपनी महत्वाकांक्षा जाहिर कर दी है। चर्चा यह भी है कि लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश डिप्टी सीएम तेजस्वी को सीएम बना कर राष्ट्रीय राजनीति का रुख करेंगे। हालांकि वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति को देखें तो नीतीश के लिए राष्ट्रीय राजनीतिक की डगर आसान नहीं है।

नीतीश के सामने सबसे पहली और सबसे बड़ी चुनौती बेहतर सरकार चलाने की है। राजद के साथ सरकार चलाने का उनका अनुभव बेहद कड़वा रहा है। खासतौर से कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार से जुड़े सवाल नीतीश को असहज करते रहे हैं। फिर तेजस्वी समेत राजद के कई नेता भ्रष्टाचार के मामले में केंद्रीय जांच एजेंसियों के निशाने पर हैं। इसके अलावा लालू परिवार में अरसे से सत्ता संघर्ष भी चल रहा है। ऐसे में आने वाला समय नीतीश और इस सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण होगा।


राजनीतिक पंडितों की मानें तो बिहार में नीतीश कुमार ने अपनी सियासी राह तो बदल ली लेकिन रास्ते में कई कांटे हैं। नीतीश और तेजस्वी के लिए चुनौतियों का अंबार है। सबसे पहली तो यही है कि जो हवाई वायदे किए हैं, उन्हें पूरा कैसे करेंगे? जब बिहार में कथित डबल इंजन की सरकार थी तो जो काम नहीं हुआ वह एक विरोधी पार्टी के केंद्र में रहते कैसे करेंगे? तेजस्वी ने सरकार में आने से पहले 10 लाख नौकरियां देने का वायदा किया था उसे पूरा करने का क्या प्लान है? सरकार बनने के बाद भी उन्होंने एक महीने में ही बंपर नौकरियां देने का वायदा कर दिया लेकिन ऐसी कोई जादू की छड़ी नहीं, जिसे घुमाते ही नौकरियां टपकने लगेंगी। इसके लिए प्लानिंग चाहिए, जमीन पर काम चाहिए उद्योग चाहिए, निजी क्षेत्र का निवेश चाहिए और समय चाहिए, 2025 यूं आ जाएगा वक्त नहीं है। कोई प्लान है? है तो पहले वह दिखाइए, तब यकीन होगा।

जीएसटी के बाद कौड़ी-कौड़ी को तरस रहे राज्यों के बूते की बात नहीं कि सरकारी विभागों में इतनी भर्तियां कर लें और सैलरी भी समय पर दे दें। दूसरी चुनौती नीतीश और तेजस्वी दोनों बिहार में नई-नई इंडस्ट्री लाने का वायदा कर चुके हैं। जब तेजस्वी विपक्ष में थे तो तब के उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन और सीएम नीतीश कुमार पर आरोप लगाते रहे कि उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए कुछ नहीं हो रहा है। अब कमान खुद उनके पास है, तो डिलिवर करना होगा। नहीं तो वही बेरोजगार जो तेजस्वी की रैलियों में उनका समर्थन करते थे वे सवालों की बौछार करेंगे।


तीसरी चुनौती 2017 में महागठबंधन के साथ भ्रष्टाचार के मुद्दे पर छेड़ा था। वह मुद्दा अब भी मौजूद हैं। ऊपर से बीजेपी के नेता अभी से भ्रष्टाचार को लेकर चेताने लगे हैं। सुशील मोदी ने तो प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यहां तक कह दिया है कि तेजस्वी जेल जा सकते हैं। इसका मतलब साफ है कि ऐसी कोई स्थिति आई तो नीतीश क्या करेंगे? जिस तरह से विपक्ष आरोप लगा रहा है कि केंद्रीय एजेंसियों को डबल स्पीड से विपक्षी नेताओं के खिलाफ लगा दिया गया है, वैसा ही कुछ बिहार के गैर बीजेपी नेताओं के साथ हो तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी।


चौथी चुनौती सरकार कितनी चलेगी और कैसी चलेगी यह इस पर निर्भर करता है कि सरकार में शामिल पार्टियों की सियासत कैसी चलेगी। जब भी आरजेडी सत्ता में होती है तो नॉन यादव ओबीसी वोटर शंका में पड़ जाता है तो सर्वण चिंता में पड़ जाते हैं। नीतीश इस शंका का निवारण कैसे करेंगे? गैर यादव ओबीसी चिढ़ा तो उनके सिर पर शिकन आएगी और उसका असर आरजेडी से संबंधों पर पड़ना तय है।


पांचवीं चुनौती बीजेपी से खुद को बचाने के लिए उससे अलग तो हो गए लेकिन सात पार्टियों से तालमेल बिठाना आसान काम नहीं, खासकर जब विवाद के मुद्दों की भरमार हो। चुनाव लड़े अलग मैनिफेस्टो पर, अब कॉमन मिनिमम एजेंडा बनाना होगा और उस पर सबको सहमत होना होगा। जाहिर है इतनी चुनौतियों को पार करना बहुत मुश्किल काम है। नीतीश जोश और तेजस्वी जश्न से लबरेज दिख रहे हैं लेकिन कांटों से भरे रास्ते पर चलते हुए सात पहियों की गाड़ी को मंजिल तक पहुंचाने के लिए जोश के साथ होश और हुनर की भी जरूरत है।


महागठबंधन वाली इस नई सरकार में कुल सात दल शामिल हैं। जो बिहार के शासन को संभालेंगे। जिनमें से मुख्य दल है ‘आरजेडी’, ‘जेडीयू’, कांग्रेस और जीतन राम मांझी की पार्टी ‘हिंदुस्तान आवाम मोर्चा’, है जो कि मंत्रिमंडल में शामिल हुए हैं। साथ ही एक निर्दलीय विधायक को भी मंत्री पद दिया गया है। नीतीश कुमार महागठबंधन के नेता के तौर पर बिहार के नए मुख्यमंत्री बन गए हैं। नीतीश कुमार अपने राजनीतिक करियर में आठवीं बार मुख्यमंत्री पद संभाल रहे हैं। वहीं, तेजस्वी यादव को डिप्टी सीएम बनाया गया है। गठबंधन में शामिल इन दलों के 31 सदस्यों को मंत्री पद दिए गए है।


नई सरकार की कई चुनौतियां
बिहार की समस्याएं नीतीश और तेजस्वी समेत अन्य दलों के महागठबंधन वाली इस नई सरकार के सामने चुनौतियां बनकर सामने आई हैं। राज्य में रोजगार, पलायन, महंगाई, स्वास्थ्य, शिक्षा, विशेष राज्य का दर्जा हासिल करने की चुनौती, समेत कई बुनियादी समस्याएं हैं। जो सरकार के लिए चुनौती से कम नहीं है।


राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव 2020 में जब विपक्ष में थे तब से सत्ता में आने तक 10 लाख नौकरियां पैदा करने का वायदा करते आए हैं। जिस पर नीतीश कुमार तंज कसते आएं हैं। हालांकि अब नीतीश कुमार आरजेडी के द्वारा किए गए सभी वायदों को सही ठहरा रहे हैं। नीतीश कुमार का अब कहना है कि वह सही हैं। ‘हम प्रयास कर रहे हैं और उसे पूरा करने के लिए हरसंभव कोशिश करेंगे। उन्होंने जो कुछ भी कहा है, सही है। हम उसके लिए सभी प्रयास करेंगे।’ इस मसले पर आरजेडी का कहना है कि फ्लोर टेस्ट में सरकार के पास होने के बाद इस पर फैसला लिया जाएगा। खबरों के अनुसार अब तेजस्वी यादव जनता से किए गए अपने वायदे से मुकरते नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि हम मुख्यमंत्री नहीं बने हैं।


राज्य में रोजगार की समस्या सबसे बड़ा मुद्दा है। जिसे लेकर हर दल सरकार बनने के बाद रोजगार बढ़ाने और देने की घोषणा करता है। राज्य में बेरोजगारी और उसकी वजह से लोगों द्वारा मुंबई दिल्ली जैसी शहरों में किया जा रहा पलायन आज भी बिहार के लिए गंभीर विषय बना हुआ है। प्रत्येक वर्ष हजारों लोग दूसरे प्रदेशों में रोजगार की खोज में जाते हैं। रोजगार मिलने के बाद कुछ वहीं बस जाते है। बेरोजगारी के मामले में यह राज्य राष्ट्रीय स्तर पर चौथे स्थान पर है। अर्थशास्त्रियों के अनुसार बिहार में जीडीपी तो बढ़ी है लेकिन उस अनुपात में रोजगार के अवसर नहीं बढ़े हैं। कृषि कैबिनेट लाया गया लेकिन कृषि विकास दर अब भी दो प्रतिशत के आस-पास ही है।

सरकार को चाहिए कि ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की ओर ध्यान केंद्रित करे और कृषि में निवेश बढ़ाया जाए। विश्व बैंक के रिपोर्ट के मुताबिक भी बिहार जैसे राज्यों का विकास तभी हो पाएगा जब कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़ेगा। सरकार को कोशिश करनी चाहिए कि किसानों की आय कैसे बढ़े और खेती के लिए उन्हें निर्बाध बिजली कैसे मिले। राज्य के किसानों के लिए तेजस्वी यादव कहते आए हैं कि उनकी सरकार बनने पर किसानों का कर्ज माफ कर दिया जाएगा। तकरीबन सभी राज्यों में हर पार्टी किसानों की कर्ज माफी अपने चुनावी वायदों में शामिल करती है लेकिन इसे पूरी तरह से अंजाम दे पाना उनके लिए संभव नहीं हो पाता।

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