दिल्ली में एक बार फिर आम आदमी पार्टी की सरकार बन गई है। यह चुनाव न सिर्फ ‘आप’ की प्रचंड जीत और अरविंद केजरीवाल की तीसरी बार ताजपोशी के लिए याद की जाएगी, बल्कि इस चुनाव को कई और वजहों से भी लंबे समय तक याद किया जाएगा। राजधानी की गद्दी की रेस में चुनाव प्रचार के दौरान कुछ नामी नेताओं, खासकर बीजेपी नेताओं के अमर्यादित बयानों के लिए भी यह चुनाव लंबे समय तक याद किया जाएगा।
इसके साथ ही अरविंद केजरीवाल और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच अब तक की तमाम मर्यादाओं के ढह जाने और दोस्ती को दुश्मनी में बदल जाने का साक्षी भी रहा है। दरअसल, दिल्ली के चुनावी मैदान में बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी बीजेपी की स्टार प्रचारकों की फौज में एक सिपाही के तौर पर उतरे।
इस दौरान अपनी रैलियों से कुमार ने केजरीवाल पर हमला करते हुए उन्हें जमकर घेरा। सड़क, बिजली, पानी और शिक्षा पर केजरीवाल को घेरते हुए नीतीश ने दिल्ली में रह रहे बिहारियों से यहां तक कह दिया कि पिछली बार केजरीवाल को जो वोट मिला वो मिल गया, लेकिन अब आप अपना वोट बर्बाद न करें।
अच्छी तरह से यह बात जान लीजिए कि अगर इस बार बीजेपी को मौका मिल गया तो दिल्ली की तस्वीर बदल जाएगी। शिक्षा में सुधार के दावों पर नीतीश ने कहा कि केजरीवाल सरकार ने कोई नया स्कूल नहीं खोला, जबकि बिहार में हमारी सरकार ने 22 हजार प्राथमिक स्कूल खोले हैं। हालांकि उन्हें ढूंढने के लिए दिल्ली से दीया लेकर बिहार जाना होगा।
नीतीश कुमार के ये कटु बोल उसी केजरीवाल के लिए हैं जिन्होंने बिहार के 2015 के चुनाव में नीतीश को समर्थन देते हुए अपनी पार्टी से कोई उम्मीदवार नहीं उतारने का ऐलान किया था। ये वही नीतीश कुमार हैं जिन्होंने एक समय केजरीवाल के साथ दांत कटी रोटी का रिश्ता कायम किया था। ये वही नीतीश बाबू हैं जो केजरीवाल की प्रशंसा करते नहीं थकते थे।
लेकिन आज की परिस्थितियां बिल्कुल भिन्न हैं। ये वही नीतीश कुमार हैं जिन्हें अपनी कुर्सी बचाने के लिए किसी भी घातक खेल को अंजाम देने में महारथ हासिल है। दरअसल, नीतीश के राजनीतिक करियर का इतिहास रहा है कि जो भी उनकी कुर्सी के आड़े आया, उसे उन्होंने नहीं बख्शा और ‘कुर्सी कुमार’ के संबोधन से नवाजे गए। कुमार को अपनी कुर्सी इतनी प्रिय है कि वो जिसके प्रिय रहे उन्हें भी गाजर-मूली की तरह उखाड़ फेंका गया।
चाहे वो जाॅर्ज फर्नांडिस रहे हों, चाहे वो लालू प्रसाद यादव या फिर शरद यादव। शरद यादव जिन्होंने जनता दल यूनाइटेड को एक साथ, एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया। जिन्होंने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनने का मौका दिया, उस इंसान तक को नीतीश ने पार्टी से बे-आबरू कर चलता कर दिया।
सत्ता का अफीम चाटे नीतीश कुमार समय-समय पर ऐसी नजीर पेश करते रहे हैं। अभी हाल में इसका सबसे ताजा उदाहरण है- प्रशांत किशोर और पवन कुमार वर्मा की बिना विदाई समारोह किए पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा देना। हालांकि प्रशांत किशोर और थिंक टैंक माने जाने वाले पवन वर्मा के खिलाफ यह एक्शन पहले से ही तय माना जा रहा था।
प्रशांत किशोर जो कि अपनी ही सरकार के कई राजनीतिक मुद्दों के खिलाफ मुखर होकर बयान दे रहे थे। खासकर, सीएए, एनआरसी और एनपीआर के मसले पर पार्टी लाइन से बाहर जाकर लगातार ट्वीट कर रहे थे। जिसके कारण उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। जबकि पवन वर्मा ने नीतीश कुमार को खुला खत लिखकर अपने आदर्श याद करने को कहा। साथ ही एनआरसी और सीएए के मुद्दे पर उनकी क्या राय है, यह भी स्पष्ट करने को कहा।
पवन वर्मा की इस चिट्टी पर नीतीश कुमार ने कहा था कि इसे पत्र नहीं कहते हैं। इमेल पर कुछ भेज दीजिए और प्रेस में जारी कर दीजिए। यह बात जगजाहिर है कि जब नीतीश अगर कुछ बोलते हैं या कोई निर्णय लेते हैं तो उसके पीछे राजनीतिक नफे-नुकसान का हिसाब पहले ही लेते हैं। नीतीश को बिहार चुनाव से ठीक कुछ महीने पहले ऐसा कठोर कदम उठाने की आखिर क्या जरूरत आन पड़ी, इस पर तमाम तरह से टीका टिप्पणी का दौर अब चल रहा है।
इस सवाल पर जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने साफ-साफ कहा कि अमित शाह जी कहने पर प्रशांत किशोर को पार्टी में शामिल किया था। इस प्रतिउत्तर में प्रशांत किशोर ने ट्वीट किया कि नीतीश कुमार, इससे अधिक पतन क्या होगा कि आपको इस बारे में झूठ बोलना पड़ा कि आपने कैसे और क्यों मुझे जेडीयू जाइन कराई थी। आपने मुझे अपनी तरह साबित करने की नाकाम कोशिश की। लेकिन अगर आप सच बोल रहे हैं, तो कौन यह मानेगा कि आप में अब भी इतना साहस है कि आप किसी ऐसे व्यक्ति को नकार सकें जिसकी सिफारिश अमित शाह ने की हो।
इस पूरे प्रकरण में कई लोगों का कहना था कि प्रशांत किशोर खुद को नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी घोषित कर रहे थे जिससे नीतीश खफा चल रहे थे और पार्टी में उनके शामिल होने के साथ यह भी खबरें उड़ने लगी थी कि पीके बक्सर से चुनाव लड़ सकते हैं। उसी शाम नीतीश ने अपने साथ के करीबी नेताओं से साफ कह दिया था कि प्रशांत किशोर की भूमिका सिर्फ पार्टी से छात्र और युवा वर्ग के लोगों को जोड़ने तक सीमित रहेगी।
यह बात तब ज्यादा बिगड़नी शुरू हुई जब पटना विश्वविद्यालय में छात्र संघ के हुए चुनाव में बीजेपी की छात्र संघ इकाई एबीवीपी के उम्मीदवार को प्रशांत किशोर पटकनी देने में कामयाब हो गए थे। इससे बीजेपी आलाकमान पीके के खासे नाराज हुए और पार्टी के कुछ वरिष्ठ मंत्रियों ने नीतीश कुमार से मिलकर साफ कर दिया कि प्रशांत किशोर को बिहार की राजनीति से अलग रखा जाए।